Published By:धर्म पुराण डेस्क

हाई रिस्क प्रेग्नेंसी उचित देखभाल और विशेष जांचें

-डॉ. अर्चना सिंह के मुताबिक क्या है यह स्थिति ?

हाई रिस्क प्रेग्नेंसी या जोखिम से भरपूर गर्भावस्था अर्थात वह स्थिति जब किसी महिला को गर्भावस्था के पूर्व से ही किसी प्रकार की चिकित्सा या अन्य समस्या से गुजरना पड़ रहा हो और इसका परिणाम उसकी गर्भावस्था या प्रसव की जटिलता के रूप में सामने आ सकता हो तो इस स्थिति में गर्भवती महिला और होने वाले शिशु की विशेष देखभाल, जांच और मॉनिटरिंग की आवश्यकता हो सकती है। 

हाई रिस्क की स्थिति कई कारणों से सामने आ सकती है। इनमें शामिल हैं-

● अधिक उम्र में मातृत्व 35 वर्ष या इससे अधिक की उम्र में प्रेगनेंसी रिस्क अत्यधिक हो सकती है।

● किसी प्रकार की मेडिकल हिस्ट्री का होना। जैसे पहले बच्चे के समय सिजेरियन डिलीवरी, समय से पहले बच्चे का होना (37 हफ्तों से पूर्व) या जन्म के समय बच्चे का वजन बहुत कम होना या परिवार में किसी विशेष प्रकार की जेनेटिक हिस्ट्री होना जिनमें गर्भपात या जन्म के तुरंत बाद बच्चे की मृत्यु आदि शामिल हैं।

● शारीरिक-मानसिक स्थितियां जिनमें डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, एपिलेप्सी, किसी प्रकार की रक्त संबंधी समस्या या संक्रमण या अन्य मानसिक स्थितियां।

● जीवनशैली संबंधी स्थितियां जैसे धूम्रपान, मद्यपान या अन्य किसी नशीले पदार्थ की लत।

● गर्भावस्था से जुड़ी जटिलताएं जिनमें यूटरस, सर्विक्स या प्लेसेंटा से संबंधित समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा बहुत अधिक या कम एमनियोटिक फ्लूड का होना (पॉलिहाइड्रेमनियोस या ओलिगोहाइड्रेमनियोस), भ्रूण के विकास में बाधा या आरएच (रिसस) सेंसिटाइजेशन यानी मां के ब्लड ग्रुप का आरएच पॉजिटिव और शिशु के ब्लड ग्रुप का आरएच नेगेटिव होना, मल्टीपल प्रेगनेंसी यानी जुड़वां या इससे अधिक संख्या में शिशुओं का गर्भ में होना आदि कारण भी इसमें सम्मिलित हैं।

इन बातों का रखें ध्यान-

• हाई रिस्क प्रेग्नेंसी के दौरान कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। जैसे-

• परिवार आगे बढ़ाने से पहले अपनी स्थिति को लेकर डॉक्टर से पूरी जानकारी लेना और लगातार डॉक्टर से परामर्श लेते रहना। यदि आप एआरटी जैसी तकनीक उपयोग में ला रही है तो विशेष तौर पर डॉक्टर से परामर्श लें। सही खान-पान रखें और जीवनचर्या को संतुलित रखें जिसमें नींद और व्यायाम खासतौर पर शामिल हो। वजन को लेकर संतुलित रहें और वजन पर नजर रखें। किसी भी नुकसान पहुंचाने वाली चीज से दूरी बनाएं।

• डॉक्टर की सलाह से कुछ विशेष जांच जैसे टार्गेटेड अल्ट्रासाउंड, एमिनो सेंटेसिस, सर्वाइकल लेंथ मेजरमेंट, कोरियोनिक विलस सैम्पलिंग (सीवीएस), कोरडे सेंटेसिस, बायोफिजिकल प्रोफाइल तथा लैब टेस्ट आदि करवाएं।

• यदि किसी महिला को डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, सीज़र डिसऑर्डर (दौरे पड़ना) या अन्य मेडिकल कंडीशन हों, वह प्रीक्लेम्पसिया, प्रीमैच्योर लेबर या गंभीर एनीमिया की जद में हो या गर्भ में उसके शिशु की पोजीशन सही न हो तो भी सावधानी रखनी जरूरी है।

• गर्भावस्था के दौरान समय से पहले ब्लीडिंग, लगातार सिर दर्द, पेडू में दर्द, वेजाइनल डिस्चार्ज या पानी जाना, पेट में खिंचाव का महसूस होना, गर्भ में बच्चे की एक्टिविटी का कम होना, पेशाब के दौरान जलन या दर्द होना या दृश्य संबंधी कोई समस्या होना- धुंधला दिखाई देना आदि जैसे लक्षण सामने आएं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।


 

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