Published By:धर्म पुराण डेस्क

हिन्दू संस्कार, वैज्ञानिक आधार, जानिए, शौच विज्ञान और स्नान का महत्व

ऋषि स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में):

* ऋषि स्नान का मूल उद्देश्य ब्रह्म-परमात्मा का ध्यान और देव नदियों का स्मरण है।

मानव स्नान (सूर्योदय से पूर्व):

* इस स्नान के समय ताजगी और ऊर्जा मिलती है, जो दिनभर की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है।

दानव स्नान (सूर्योदय के बाद 8-9 बजे):

* इस स्नान से आपका दिन शुभ और सकारात्मक ऊर्जा से भरा रहता है।

आदर्श दिनचर्या:

* शौच जाते समय कानों और सिर पर कपड़ा बांधना शुभ होता है, और दाँत भींच कर मलत्याग करना है।

* शौच के बाद पहने हुए कपड़ों को धोना शुद्धता बनाए रखने में मदद करता है।

दंत सुरक्षा:

* नीम की दातुन या आयुर्वेदिक मंजन से दांत साफ रखना दांतों की सुरक्षा के लिए है।

स्नान:

* ठंडे पानी से स्नान करना मानसिक और शारीरिक ताजगी और स्वच्छता प्रदान करता है।

* स्नान करते समय "ॐ ह्रीं गंगायें, ॐ ह्रीं स्वाहा" मंत्र बोलना शुभ होता है।

ये संस्कृति और विज्ञान के संरेखित तत्व हैं, जो शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करने में मदद कर सकते हैं।

एक शिशु संस्कारों से समाज का सुधारक बन सकता है और कुसंस्कारों से समाज का संहारक बन सकता है। इस परिप्रेक्ष्य में यदि माता-पिता अपनी संतान को श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम बनाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने को तत्पर रहते हैं; किंतु परिस्थितियों से प्रताड़ित सबकी आशाएँ मूर्त रूप नहीं ले पातीं। फिर भी हमें प्रयास करना चाहिए कि दुर्लभ मानव जीवन को पाकर इसकी सार्थकता के लिए क्या-क्या करें। इस परिप्रेक्ष्य में षोडश संस्कारों को अपनाने की आवश्यकता प्राचीन तथा आधुनिक जीवन शैली की समन्वयात्मकता से ही संभव है।

प्राचीन और आधुनिक समाज की शिष्टता, बल-बुद्धि और विवेक की संपन्नता, संवेदनशीलता, भौतिक एवं आध्यात्मिक उपलब्धता, नैतिक तथा चारित्रिक विशिष्टता आदि के परिप्रेक्ष्य में जीवन जीने का मूल्यांकन किया जाना चाहिए; तभी समाज का सर्वांगीण विकास होगा, सभी प्राणी सुख-शांति का जीवन व्यतीत कर सकेंगे।

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