Published By:दिनेश मालवीय

प्रशांत महासागर के देशों में हिन्दू धर्म,  इंडोनेशिया की पूर्व राष्ट्रपति लौटीं हिन्दू धर्म में.. दिनेश मालवीय

प्रशांत महासागर के देशों में हिन्दू धर्म,  इंडोनेशिया की पूर्व राष्ट्रपति लौटीं हिन्दू धर्म में.. दिनेश मालवीय

 

हाल ही में इंडोनेशिया की पूर्व राष्ट्रपति सुकुमावती सुकर्णोंपुत्री ने इस्लाम धर्म को त्यागकर फिर से हिन्दू धर्म को अपना लिया है. जिन लोगों को प्रशांत महासागर के देशों में हिन्दू धर्म-संस्कृति के इतिहास के बारे में जानकारी नहीं है, उन्हें यह बहुत विचित्र बात लग सकती है. लेकिन इस विषय में ज्ञान होने पर यह बहुत आश्चर्य नहीं होगा. प्रशांत महासागर के एक तरफ चीन है तो दूसरी तरफ अमेरिका का महाद्वीप. इन दोनों के बीच हज़ारों छोटे-बड़े द्वीप हैं, जिनमें से अधिकतर में प्राचीनकाल में हिन्दू संस्कृति थी. वहां अनेक हिन्दू राज्यों का उत्कर्ष और पतन हुआ, जिनके चिन्ह आज भी जहाँ-तहाँ बिखरे मिल जाते हैं.

चीन

भारत के इतिहास-पुराणों में चीन के विषय में विस्तृत उल्लेख बहुत प्राचीनकाल से ही मिलता है. वाल्मीकि रामायण के “किष्किन्धाकाण्ड” में जब सीताजी के खोजे के लिए सुग्रीव वानरों को विभिन्न देशों में जाने को कहते हैं, तो उन्होंने चीन का भी नाम लिया था. महाभारत में कई स्थानों पर चीन तथा चीनी लोगों  का उल्लेख मिलता है. विष्णुपुराण में कहा गया है, कि “मनु ने यवन, शक, किरात, चीनी आदि को आचार-भ्रष्ट क्षत्रिय बतलाया है. ईसा के 500 वर्ष पूर्व चीन में “ता-ओ” मत का बहुत प्रचलन हुआ, जिसके प्रवर्तक लओ-त्से थे. इसमें श्रृष्टि निर्माण के दो तत्व माने गए हैं-“यांग” और “यीन”, जिनका अभिप्राय पुरुष और प्रकृति से है. इसकी शिक्षा वेदान्त दर्शन से बहुत मिलती है. यह निवृत्ति मार्गी पंथ है. इसके विपरीत कनफ्यूशस ने जो सम्प्रदाय चलाया, वह प्रवृत्तिमूलक है. इसमें पितरों का पूजन और उनकी श्रद्धा के साथ उपासना का उपदेश दिया गया है.  इस सम्प्रदाय पर वैदिक सनातन धर्म का स्पष्ट प्रभाव है.

हिन्दचीन

यह प्रदेश चीन के दक्षिण में है. इसका प्राचीन नाम “चम्पा” और आधुनिक नाम ”अनाम” है. यह बहुत लम्बे समय तक हिन्दुओं के अधीन रहा. यहाँ के हिन्दू नरेश स्वयं को “श्रीमार” के वंशज कहते थे. “अनाम” के प्राचीन ग्रंथों में बताया गया है, कि वहां के प्राचीन निवासी वानरों की संतान हैं. उन लोगों की मान्यता है, कि रामायण की घटना चम्पा में ही हुयी. वहां के राजा शिव के उपासक थे.  शिव की मूर्ति तथा लिंग दोनों रूपों में पूजा की जाती थी. वहां शक्ति उपासना का भी प्रचलन था. वहां के साहित्य में रामायण, महाभारत, शिवपुराण, लिंगपुराण आदि की बहुत-सी कथाएं हैं. कम्बोडिया इसके दक्षिण-पूर्व में आधुनिक “कम्बोडिया” देश है, जहाँ पहले हिन्दू राज्य था. उस समय इसका नाम “काम्बोज” था. यहाँ के राजा स्वयं को चंद्रवंशी मानते थे. इस राजघराने का सम्बंध सूर्यवंश से भी माना गया है. इस विषय में कहावा है- महर्षि कम्बु, स्वायम्भुव और अप्सरा मेरा ने, जिसे उन्होंने शिव के प्रसाद के रूप में प्राप्त किया था, वहां सूर्यवंश का प्रसार किया. वहां इस्वी सन की दूसरी से चौदहवीं शताब्दी तक  हिन्दुओं का शासन था. वहाँ के राजा “वर्मा” की उपाधि धारण करते थे. वे शैव मत के अनुयायी थे. सातवीं शताब्दी में वहाँ बौद्ध धर्म के प्रवेश पर वहाँ के राजाओं ने उसे राज्य का संरक्षण प्रदान किया. वहाँ हिन्दू धर्म-संस्कृति के अवशेष आज भी मौजूद हैं.

थाईलैंड

यह देश कम्बोडिया के पश्चिम में है. इसे पहले “श्याम” देश कहा जाता था. इसका प्राचीन नाम “द्वारावती” है. यहाँ का प्राचीन इतिहास अभी पूरी तरह प्राप्त होना शेष है. ईस्वी सन की पांचवीं और छठवीं शातादी के जो लेख मिले हैं, उनसे पता चलता है, कि वैदिक धर्म और “हीनयान बौद्ध मत” दोनों का वहाँ प्रचलन था. आजकल इस देश का राजधर्म बौद्ध है. वहाँ रीति-रिवाज़ों में हिन्दू धर्म की बहुत कुछ छाया दिखाई देती है. वहां के राजा रामचंद्र के अवतार माने जाते हैं और उनका नाम के साथ भी प्राय: “राम” जुड़ा होता है. थाईलैंड में एक मंदिर में विष्णु, लक्ष्मी और अनेक ऋषियों की मूर्तियाँ हैं. सुखोदय और स्वर्गलोक नाम के नगरों में भी कुछ मंदिर हैं. राजधानी बैंकाक के प्रधान बौद्ध्विहर के चाँदी के मुख्य द्वार पर रामायण के दृश्य अंकित हैं. इस देश में कुछ भेद के साथ रामायण की कथा का प्रचार है. वहाँ के मुस्लिमों तक में मुंडन संस्कार और उपनयन संस्कार का प्रचलन है. कम्बोडिया में विशाल हिन्दू मंदिर है, जो करीब 162 हेक्टेयर में फैला है. इसका निर्माण राजा सूर्यवर्मन ने 1125 में करवाया था.

मलाया प्रायद्वीप

यह प्रायद्वीप एशिया का सबसे दक्षिणी भाग है. वहां ईसवीं की दूसरी शताब्दी में हिन्दुओं का पता चलता है. पुराणों में “कटाहद्वीप” का उल्लेख मिलता है. वहाँ “कटाह” नाम का एक राज्य था. केडाह (कटाह) नाम की छोटी पहाड़ी है, जिस पर एक टूटा हुआ मंदिर पाया गया है. इसमें दुर्गा, गणेश और नंदी की मूर्तियाँ मिली हैं. जावा, सुमात्रा, श्याम आदि हिन्दू राज्यों से इसका घनिष्ट सम्बंध था. वहा रामायण का “हिकायत सेरी राम” के नाम से प्रचार है. इस देश में आज भी “श्रीथमरात” में ब्राहमणों की कुछ बस्तियाँ हैं.

सुमात्रा

वाल्मीकीय रामायण में “सुवर्णभूमि” या “सुवर्णद्वीप” का उल्लेख आता है. कौटिल्य ने अपने “अर्थशास्त्र” में लिखा है, कि स्वर्णभूमि में उत्पन होने वाला चन्दन चिकना और पीला होता है. “कथासरित्सागर” की अनेक कथाओं में “सुवर्णद्वीप” का उल्लेख मिलता है.

जापान

जापान “सूर्योदय का देश” है. वहाँ पांचवीं शताब्दी में  बौद्ध धर्म का प्रवेश हुआ. जापान में इससे बहुत पहले वैदिक धर्म के चिन्ह मिलते हैं. जापानियों के सामाजिक जीवन और रीति-रिवाज़ों में हिन्दू धर्म का प्रभाव झलकता है. वहां सूर्य की उपासना प्रमुख है. लेकिन इसमें सूर्य को देवता नहीं, बल्कि देवी माना जता है. जापान के सम्राट स्वयं को “सूर्यपुत्र” कहते हैं. जापान में सामाजिक विभाजन तीन रूपों में है-  सिनावेत्सु” युआनी देवपुत्र या ब्राह्मण; “वक्त्वोवेस्तु” अर्थात राजवंश या क्षत्रिय और “वेनवत्सु”  अर्थात विदेशी.

अमेरिका

प्रशांतसागर की पूर्वी सीमा पर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका है. वहां के प्राचीन निवासी रेड इन्डियन कहलते थे. उनकी प्राचीन संस्कृति के अध्ययन से यह माना जाता है, कि किसी समय वहां हिन्दू संस्कृति का पूरा ज़ोर था. इन लोगों का जीवन बहुत कुछ भारतीयों से मिलता है. पहले वहाँ सती प्रथा का भी चलन था. मृतक का प्राय: अग्नि संस्कार किया जाता है. मेक्सिको में राज्याभिषेक हिन्दू रीति-रिवाज़ से ही किया जाता था. पेरू में भी हिन्दू संस्कृति के प्रचलन के चिन्ह पाये जाते हैं. सबसे उल्लेखनीय बात है अमेरिका में विजयादशमी का महोत्सव “रामसीतत्व” के नाम से मनाया जाता है. मेक्सिको के लोग रंगमंच पर राम-रावण युद्ध का अभिनय करते हैं. पेरू में राम सूर्वंशी, सीतापति और महारानी कौशल्या के पुत्र माने गए हैं. वहाँ की “इन्का” जाति के लोग अपने को गर्वपूर्वक इसी वंश का मानते हैं. वे राम-सीता उत्सव मनाते हैं.

 

 

धर्म जगत

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