 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है और आठ दिन बाद समाप्त होता है। होलाष्टक के दौरान शुभ और मांगलिक कार्यों की मनाही होती है। होलाष्टक 07 मार्च को समाप्त हो रहा है। होलाष्टक के दौरान कर्मकांड सहित कोई भी शुभ कार्य करना वर्जित होता है। हालांकि, पूजा, जप, यज्ञ और दान आदि गतिविधियों पर कोई प्रतिबंध नहीं है।
ऐसा माना जाता है कि होलाष्टक के दिनों में वैदिक अनुष्ठान, यज्ञ और पूजा करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है। हिंदू धर्म में होलाष्टक का विशेष महत्व है।
होलिका दहन फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होता है लेकिन इससे पहले फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाता है। इसे होलिका अष्टक या होला अष्टक भी कहते हैं। होलाष्टक यानी होली से आठ दिन पहले। इन आठ दिनों में शुभ और मांगलिक कार्य पूरे नहीं होते हैं।
होलाष्टक में क्यों वर्जित है शुभ और मांगलिक कार्य?
धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक के 8 वें दिन राजा हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु की पूजा करने से रोक दिया था। हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को रोकने के लिए अनेक प्रकार के कष्ट और यातनाएं दीं। जब प्रहलाद नहीं माना तो अंत में हिरण्यकश्यप अपनी बहन होलिका के पास गया और प्रह्लाद को उसकी गोद में अग्नि में बैठने का आदेश दिया। क्योंकि होलिका को आग से न जलने का वरदान प्राप्त था। होलिका प्रहलाद को लेकर आग में बैठ गई। लेकिन प्रहलाद आग से बच गया और होलिका उसमें जलकर राख हो गई। इसलिए होली से पहले होलिका दहन जलाने की परंपरा है।
माना जाता है कि होलिका दहन से आठ दिन पहले हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को तरह-तरह से प्रताड़ित किया, जो उसके लिए बहुत मुश्किल था। यही वजह है कि होलाष्टक के आठ दिनों को हिंदू धर्म में अशुभ माना जाता है।
 
 
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