ठीक समय पर शौच ठीक नहीं होता, पेट तना सा ही रहता है, बार-बार शौच जाता है, शौच थोड़ा सा होकर बंद हो जाता है, मन प्रसन्न नहीं होता। इस कब्ज का मूल कारण रुक्ष भोजन, व्यायाम न करना, निठल्ला पड़ा रहना आदि है।
चिकित्सा सूत्र– चोकर समेत आटे की रोटी खाएं। दूध मीठा लें, शक्कर-गुड़ प्रायः पेट साफ रखते हैं। सब्जियों में पत्ती समेत मूली, काली तोरई, घीया, बैंगन, गाजर, परवल, पपीता, टमाटर आदि। दालें छिलके समेत लें। पतली बनवायें ।
रात को अधिक मीठा दूध जरूर लें। खूब व्यायाम करें, चलें, कूदें, खुश रहें, चिंता न करें। फिर भी दवा की जरूरत हो तो थोड़ा-सा खाने का सोडा पानी में घोलकर पी जाएं तो पेट हलका रहेगा और शौच भी।
इमली में गुड़ डालकर मीठी चटनी सेवन करें, पेट साफ रहेगा। बैंगन बनाएं, आराम देगा। भोजन के साथ टमाटर लें, नमक पेट साफ रखता है। कभी कभी थोड़ा-सा पंचसकार चूर्ण भी ले लें। द्राक्षासव, सैंधवादि चूर्ण पेट हल्का रखता है।
भोजन के बाद सौंफ-मिश्री चबाने से पेट ठीक रहता है। चित्रकादि वटी खाते ही तुरंत लाभ होता है। किशमिश, त्रिफला, अभयारिष्ट बहुत अच्छे हैं, पेट हल्का हो जाता है। सिंहनाद गुग्गुल दूध से रात को ले, आराम रहेगा।
भोजन के साथ कुमार्यासव, द्राक्षारिष्ट अथवा पुनर्नवाद्यारिष्ट ले। मधु के साथ रोटी खाने से पेट साफ रहता है। घीक्वार की सब्जी रोजाना ले तो पेट साफ रहेगा। बथुवे का रायता या साग, इमली की चटनी, नींबू से रचाकर पत्ती समेत खाये। पेट साफ रहेगा। अमरूद, पका हुआ केला, टमाटर, बेर, परवल, बैंगन, पपीता, अंगूर, अंजीर, आलूबुखारा, मुनक्का, आडू, उन्नाभ आदि का सेवन करें। कब्ज दूर रहेगा।
बवासीर (अर्श)..
प्रायः ठीक समय अथवा शौच का वेग होने पर शौच न जाने के कारण यह रोग पनपता है एवं रुक्ष, पेट में खुश्की, कब्ज करने वाला भोजन या उचित समय पर ऊटपटांग चीजें खाने से पेट या यकृत-जिगर खराब होने से यह रोग हुआ करता है।
शौच में लापरवाही होने से गुदा में सूजन होकर मस्से हो जाते हैं। शौच के समय दर्द आदि से बड़ा कष्ट होने लगता है। अतः रोगी हाजत होते हुए भी कष्ट से डरकर शौच नहीं जाता। परिणाम यह होता है कि शौच के साथ खून भी आने लगता है। रोगी कमजोर होने लगता है और बेचैन रहता है।
चिकित्सा सूत्र– समय पर शौच से निवृत्त जरूर हो। कभी हाजत मत रोको। अजीर्ण और क़ब्ज़ करने वाला भोजन मत करो। सारा दिन केवल बैठने में मत गुजारे, थोड़ा व्यायाम अवश्य करो, जिससे शरीर और खास तौर पर पेट ठीक रहे। कम-से-कम शौचादि से निवृत्त होकर सीधे खड़े होकर बार-बार पैरों में जमीन पर हाथों को लगाओ। टांगें चौड़ी करके दायाँ हाथ बायें पैर में एवं बायें हाथ दाँयें पैर पर बार-बार लगाओ। हर बार सीधे जरूर खड़े रहो, जिससे पेट में हरकत हो।
एक ही जगह खड़े-खड़े जैसे भाग रहे हो काफी समय तक दौड़ते रहो। पेट हलका रहेगा, क़ब्ज दूर होगी। सुबह-शाम घूमने जाओ। दौड़ लगाओ, खेलो, सुस्ती दूर करो। चाट, पकौड़ी, तली चीजें मत खाओ, इनसे रोग बढ़ता है।
शौच के समय बवासीर पर कासीसादि घृत या कासीसादि तेल जितना अंदर हो सके अवश्य लगाया करो, दर्द घटता जाएगा, रोग दूर होगा ।
खाने में सैन्धवा चूर्ण, नवायस प्राणदा चूर्ण, आरोग्यवर्धिनी वटी ले । मुरब्बे की हरड लौह भस्म के साथ ले, सिद्ध हरीतकी, मण्डूर भस्म अथवा पुनर्नवा मण्डूर चार चार गोली दिन में दो-तीन बार छाछ के साथ सेवन करें ।
भोजन के साथ कुमार्यासव या अभयारिष्ट अथवा पुनर्नवाद्यारिष्ट या लोहासव, द्राक्षारिष्ट आदि थोड़ा पानी मिलाकर भोजन के बीच में अथवा तुरंत बाद ले। बहुत जल्दी आराम होगा। शरीर बलवान होगा।
डॉ० जयकुमारजी
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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