Published By:धर्म पुराण डेस्क

विश्व कल्याण में ही स्वदेश-कल्याण, बच्चों में जगाएं देशहित का भाव

बच्चों की फुलवारी स्वदेश भक्ति-

बालक किसी भी राष्ट्र की सर्वाधिक मूल्यवान संपत्ति है. क्योंकि उन्हीं से आगामी परिवार एवं राष्ट्र का निर्माण होता है। इसी कारण कहा जाता है कि बालक राष्ट्र के भावी निर्माता एवं कर्णधार होते हैं। जैसे अच्छे या बुरे, निर्बल या बलवान, अशिक्षित या शिक्षित बालक होंगे, वैसा ही राष्ट्र होगा। 

हम जैसे राष्ट्र का निर्माण करना चाहते हैं, जैसे परिवार और जैसे समाज का निर्माण करना चाहते हैं, पहले वैसे ही बालक-बालिकाओं का चरित्र निर्माण करना होगा। बालकों का पालन-पोषण और निर्माण सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य है।

योग ऋषि स्वामी रामदेव भी बालकों के चरित्र निर्माण पर काफी बल देते हैं। उनका मानना है कि आज के बालक भविष्य की धरोहर हैं। इनका पालन-पोषण, शिक्षा-दीक्षा, आहार-व्यवहार सात्विक और संयमित होनी चाहिए। 

स्वामी जी का योग शिविर जहां भी लगाये जाते हैं वहां वे बच्चों के लिए निःशुल्क एक सत्र अवश्य रखते हैं। उनका सपना है कि भारत में वशिष्ठ, गौतम, कणादि, जैमिनी, महाराणा प्रताप, शिवाजी, गौतम बुद्ध, महावीर, बिस्मिल, भगत सिंह जैसे बच्चे फिर जन्म लें, इससे भारत का खोया हुआ गौरव पुनः वापस मिलेगा।

जिस भूमि के फल-फूल और अन खाकर हमारा और हमारे बंधु-बांधवों का शरीर बढ़ा है, जो हम सबका माता के समान पालन-पोषण करती है. उस जननी जन्मभूमि का हम पर भारी ऋण है। देश-प्रेम के भाव को जागृत करने के लिए बच्चों को स्वदेश और विदेश के उन महात्माओं और देश-भक्तों के उज्जवल क्रियाकलापों का वर्णन कहानी के रूप में सुनाना चाहिए, जिन्होंने देश के उद्धार और कल्याण के लिए अपने जीवन की आहुति दे दी हो।

प्रताप, शिवाजी, भगत, झांसी की रानी, तिलक, अरविन्द, सुभाष, बिस्मिल, गुरु गोविन्द सिंह तथा ईसा मसीह और मुहम्मद साहब के वृत्तान्त सुनाकर बच्चों में देश-सेवा और आध्यात्मिकता की भावना जगाई जा सकती है।

इटली के उद्धारक मेजिनी और गैरीबाल्डी तथा जापान की उस विधवा माता की चर्चा करके जिसने रूस-जापान युद्ध के दिनों में इसलिए आत्महत्या कर ली थी कि उसका इकलौता लड़का भी देश सेवा के लिए युद्ध में जा सके। बच्चों में देश हित के लिए त्याग और आत्म बलिदान का भाव उत्पन्न करें।

हमारे ऋषि महर्षि हमारे कल्याण के लिए जो अमूल्य ज्ञान का भंडार छोड़ गये हैं। और राम तथा कृष्ण आदि महापुरुष अपने पवित्र चरित्रों से हमारे सामने मानव जीवन का जो उच्च और नैसर्गिक आदर्श स्थापित कर गये हैं उससे बालकों के हृदय में उनके प्रति श्रद्धा तथा पूज्य बुद्धि पैदा करना चाहिए। 

प्रत्येक बालक देशहित और समाज कल्याण के लिए आलस्य छोड़कर परिश्रम से काम करने को अपना परम कर्तव्य समझे।

स्वदेश भक्ति का उपदेश देते समय इस बात का ध्यान देना चाहिए कि दूसरे देशों तथा जातियों के प्रति द्वेष और घृणा का भाव न उत्पन्न किया जाए। विश्व कल्याण में ही स्वदेश-कल्याण समझना चाहिए।


 

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