इनको शुक्र(वीनस) नाम कैसे और कब मिला इस विषय में वामन पुराण में कहा गया है |
दानवराज अंधकासुर और महादेव के मध्य घोर युद्ध चल रहा था | अन्धक के प्रमुख सेनानी युद्ध में मारे गए पर भार्गव ने अपनी संजीवनी विद्या से उन्हें पुनर्जीवित कर दिया |
पुनः जीवित हो कर कुजम्भ आदि दैत्य फिर से युद्ध करने लगे | इस पर नंदी आदि गण महादेव से कहने लगे कि जिन दैत्यों को हम मार गिराते हैं उन्हें दैत्य गुरु संजीवनी विद्या से पुनः जीवित कर देते हैं, ऐसे में हमारे बल पौरुष का क्या महत्व है |
यह सुनकर महादेव ने दैत्य गुरु को अपने मुख से निगल कर उदरस्थ कर लिया| उदर में जाकर कवि ने शंकर की स्तुति आरम्भ कर दी जिस से प्रसन्न होकर शिव ने उनको बाहर निकलने की अनुमति दे दी |
भार्गव श्रेष्ठ एक दिव्य वर्ष तक महादेव के उदर में ही विचरते रहे पर कोई छोर न मिलने पर पुनः शिव स्तुति करने लगे | बार बार प्रार्थना करने पर भगवान शंकर ने हंसकर कहा कि मेरे उदर में होने के कारण तुम मेरे पुत्र हो गए हो अतः मेरे शिश्न से बाहर आ जाओ |
आज से समस्त चराचर जगत में तुम शुक्र(वीनस) के नाम से ही जाने जाओगे |
शुक्र(वीनस)त्व पाकर भार्गव भगवान शंकर के शिश्न से निकल आये और दैत्य सेना की और प्रस्थान कर गए | तब से कवि शुक्र(वीनस)आचार्य के नाम से विख्यात हुए |
ज्योतिष शास्त्र में शुक्र(वीनस) का कारक भी शुक्र(वीनस) ग्रह(प्लेनेट) को ही माना जाता है |
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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