 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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लक्ष्मी जी की कृपा-
कई बार व्यक्ति अथक प्रयास करने के बाद भी आर्थिक रूप से अत्यधिक परेशान रहता है। इसके लिए वह समय को और कभी-कभी अपने भाग्य को दोष देता है, लेकिन कभी भी इसके लिये स्वयं में कोई कमजोरी तलाशने का प्रयास नहीं करता है।
लक्ष्मी की कृपा उन्हीं को मिलती है जो इस योग्य होता है। यदि किसी कारणवश लक्ष्मी जी किसी ऐसे व्यक्ति पर मेहरबान हो जाये, जो इसके लायक नहीं है तो कुछ समय पश्चात् लक्ष्मी वह स्थान त्याग देती है। व्यक्ति सम्पन्नता से गिर कर विपत्रता में घिर जाता है।
लक्ष्मी जी की कृपा असुरों पर बनी हुई थी। देवता लक्ष्मी की कृपा से वंचित थे। उन्होंने सामूहिक रूप से लक्ष्मीजी से देवलोक में निवास करने का आग्रह किया। देवताओं की प्रार्थना स्वीकार हो गई। लक्ष्मी जी असुरों का वास स्थान सदैव के लिये परित्याग कर देवताओं के आश्रय पहुंच गई।
देवराज इंद्र को लक्ष्मीजी के इस व्यवहार पर प्रसन्नता भी हुई और आश्चर्य भी हुआ। उन्होंने विस्मय से पूछा- असुरों के पास से आपके चले आने का | कारण जानने की प्रबल उत्कंठा है। कृपया मेरी इस उत्सुकता को शांत करें। आगे बढ़कर स्वागत करते हुए इंद्र ने और भी कहा, अंबे, पहले हमने आपसे बहुत अनुनय विनय किया कि आप देवलोक में आयें, लेकिन आपने हमारी विनती नहीं सुनी, इसका भी कारण बताइये ?
इंद्र देव के आमंत्रण और स्वागत से महालक्ष्मी गद्गद् हो गई। अपना वरदहस्त उठाकर बोली- देवराज, जब किसी राष्ट्र में प्रजा सदाचार खो देती है, तो वहां की भूमि, जल, अग्नि कोई भी मुझे पसंद नहीं। वहां मैं रहना भी पसंद नहीं करती हूं।
व्यक्ति के सदाचारी मानस में ही मैं अचल निवास करती हूं। जहां लोग रीति पूर्वक रहते हैं और परिश्रमपूर्वक अपना कार्य करते रहते हैं उस स्थान को मैं कभी नहीं छोड़ती, पर जहां आक्रमण, वैरभाव, हिंसा, क्रोध, प्रमाद, अत्याचार आदि बढ़ जाते हैं, उस स्थान को छोड़कर मैं तत्काल चली जाती हूं।
मैं शुभ कार्यों से उत्पन्न होती हूं, उद्योग से बढ़ती हूं और हूं. संयम से स्थिर रहती हूं। जहां इन गुणों का अभाव होता है, उस स्थान को छोड़ जाती हूं। बस, इतने से ही मैंने असुरों का निवास छोड़ने और देवताओं की प्रार्थना स्वीकार कर लेने का मन बना लिया।
आज भी लक्ष्मी जी का वास वहां बिलकुल नहीं होता जहां लोग चौरी, डकैती, बेईमानी आदि में संलग्न रहते हैं जो लोग अपने काम से जी चुराते हैं, दूसरों का हक छीनकर खाते हैं. दूसरों की पीड़ा में आनंद की अनुभूति करते हैं, वहां पर लक्ष्मी जी कभी नहीं आती।
जो व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी अपना धैर्य नहीं खोते, पूरी ईमानदारी के साथ अपना कार्य करते हैं, दूसरों की मदद करने को तत्काल तत्पर हो उठते हैं उन पर लक्ष्मी जी की सदैव कृपा बनी रहती है।
इससे इतना तो संदेश मिलता ही है कि जो व्यक्ति गलत तरीकों से धनार्जन करते हैं उन्हें लक्ष्मी जी की कृपा से वंचित होना ही पड़ता है। यह संदेश समाज और राष्ट्र पर भी लागू होता है। जिस देश में हमेशा साम्प्रदायिक झगड़े, एक- दूसरे को लूटने की घटनाएं होती है, अराजकता फैलती जाती है, वहां पर भी लक्ष्मी जी की कृपा नहीं होती है।
वह देश अन्य देशों के मुकाबले पिछड़ा हुआ दिखाई देता है। जहां पर व्यक्ति समय के महत्व को समझते हैं, पूरी तरह से मेहनत करते हैं वह देश दुनिया में सबसे आगे बढ़ता दिखाई देता है। इस संदेश की गूढ़ता को समझकर व्यक्ति अपने व्यवहार को व्यवस्थित करें तो निश्चित रूप से सभी को लाभ प्राप्त होता है।
लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिये इस योग्य होना अत्यंत आवश्यक है। ऐसा होने पर व्यक्ति जीवन में कभी अभाव की स्थिति में नहीं आता है।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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