 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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लाइफ में बिना लक्ष्य के चलना ठीक उसी तरह होता है जैसे बिना मंजिल के यात्रा करना।
इंसान को ईश्वर ने जन्म दिया है तो उसे कुछ लक्ष्य भी दिए हैं आमतौर पर इंसान जॉब और करियर को अपना लक्ष्य मानता है लेकिन जॉब और करियर जीवन का लक्ष्य नहीं होते जीवन का लक्ष्य कोई ना कोई ईश्वरीय गुण सीखना होता है। आज हम जीवन के ध्येय के बारे में ही समझेंगे।
ज्यादातर मनुष्य इस तरह से जीवन जी रहे हैं कि जैसे जीना कोई मजबूरी हो। बस जैसे तैसे ज़िन्दगी की गाड़ी खींचे जा रहे हैं। सुबह से शाम तक एक रूटीन के अनुसार जीवन जी रहे हैं,
रोजमर्रा के दरें में डाली हुई जिंदगी जी रहे है पर कभी इस मुद्दे पर शायद ही विचार करते हों कि आखिर हमारी ज़िन्दगी के इस सफ़र की मंज़िल क्या है? इस जीवन का ध्येय क्या है? हम इस ज़िन्दगी में आये क्यों है? हमें जाना कहां है और हम जा कहां रहे हैं? बस यूं ही चले जा रहे हैं, चले जा रहे हैं!
एक सज्जन रेल में यात्रा कर रहे थे। टिकट चेकर ने टिकट मांगा। उन्होंने टिकट निकालने के लिए जेब में हाथ डाला। उस जेब में टिकट नहीं मिला। दूसरी जेब में हाथ डाला उसमें भी टिकट नहीं मिला तो उन्होंने सब जेबे टटोल डाली पर टिकट नहीं मिला। उन्होंने सूटकेस खोला और टिकिट ढूंढते ढूंढते सब सामान उलट पुलट कर डाला सूटकेस में टिकट नहीं मिला तब बिस्तर खोल डाला फिर भी टिकट नहीं मिला। टिकट चेकर भला आदमी था यह सब देखकर बोला रहने दीजिए कहीं रखा गया होगा।
आराम से खोजकर बता दीजिएगा आप शरीफ आदमी दिखाई देते हैं, आप विदाउट टिकिट नहीं होंगे। वे सज्जन झुंझला कर बोले ऐसी तैसी विदाउट टिकिट की, मैं सिर्फ इसीलिए थोड़े ही टिकिट ढूँढ रहा हूँ। टिकिट चेकर हैरत के साथ बोला तो फिर किसलिए खोज रहे हैं ? वे सज्जन खोई हुई नज़रों से देखते हुए बोले- ताकि यह जान सकूं कि मुझे जाना कहाँ है!
हमें ईश्वर ने कौन सा लक्ष्य दिया है। यह जानने के लिए हमें जीवन के उन पहलुओं की तरफ देखना चाहिए जो कमजोर है। हमें यह देखना चाहिए कि जहां भी कमजोर पहलू है उसके जरिए हमें ईश्वर क्या सिखाना चाहता है।
मान लीजिए कि हमारी नौकरी नहीं लग रही और हम अधीर हो रहे हैं इसका अर्थ यह है कि ईश्वर आपके धैर्य की परीक्षा ले रहा है। आप यदि धैर्यवान होकर सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देते हैं तो आपकी नौकरी लग जाएगी। ईश्वर जो सिखाना चाहता है यदि हम वह पहले ही सीखने तो हमें कष्ट नहीं झेलने पड़ते।
 
 
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