 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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देवराज इन्द्र के पुरोहित विश्वरूप के तीन मस्तक थे। किसी कारणवश इन्द्र ने क्रोधवश उनके मस्तक काट डाले। इस ब्रह्म हत्या के फलस्वरूप इन्द्र के सारे पुण्य व यज्ञों का फल नष्ट हो गया। उन्हें इन्द्रलोक छोड़ना पड़ा। तब चंद्रवंशी राजा "नहुष को इन्द्र का राज्य सौंपा गया।
राजा नहुष स्वर्ग लोक पाने के पश्चात् इन्द्राणी को पत्नी रूप में प्राप्त करने हेतु प्रयास करने लगे किंतु शची नहुष की पत्नी बनने के लिए कतई तैयार नहीं थी। फिर भी शची ने विचार कर नहुष से कहा कि यदि तुम मेरे पास उस पालकी पर बैठकर आओ, जिसे ऋषि अपने कंधों पर उठाये हों, तो मैं आपकी पत्नी बन सकती हूँ।
नहुष तो काम ग्रस्त था; नहुष ने दो तपस्वी ब्राह्मणों को आदेश दिया कि वे पालकी उठाकर इन्द्राणी शची के पास ले चलें।
नहुष को शची के पास पहुंचने की जल्दी थी। पालकी में बैठकर तपस्वियों से कहते ‘सर्प सर्प' (जल्दी चलो, जल्दी चलो) इसी कारण एक तपस्वी ने क्रोधवश कुपित होकर नहुष को 'सर्प' (साँप) होने का शाप दे दिया। राजा नहुष तुरंत अजगर बनकर स्वर्ग लोक से पृथ्वी लोक में गिर पड़े।
नहुष के ही वंशज पांडव थे। पांडवों के वनवास काल में नहुष रूपी अजगर ने भीम का पाँव पकड़ लिया, तब उनकी प्रार्थना करने पर युधिष्ठिर ने इन्हें अजगर योनि से मुक्त कराया।
लखनऊ जनपद में निगोहाँ जिले का अहिनिवार ताल ही वह जलाशय है जहां युधिष्ठिर ने यक्ष के प्रश्नों का उत्तर दिया था। निगोहाँ की पुरानी बस्ती में नहुष का चबूतरा प्रामाणिक स्थल है।
 
 
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