 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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कोई व्यक्ति दान करता है, प्याऊ या धर्मशाला' बनवाता है तो वहां अपने नाम का शिलालेख नहीं भूलता। यह अहंकार है। आप अभिमान करके अकड़ दिखाकर और दूसरों पर रौब डाल करके ही अहंकार कर रहे हों ऐसी ही बात नहीं है।
आप विनम्रता, सौजन्यता और हमदर्दी प्रकट करके भी अहंकार कर सकते हैं। आत्म प्रशंसा और यश प्राप्त करने की भावना से किये गये सभी कार्य अहंकार के ही रूप हैं और तब आपकी विनम्रता भी आपके अहंकार का रूप हो जाएगी। आपकी सज्जनता आपके अहंकार का रूप धारण कर लेगी।
आप बड़ी विनम्रता से कहेंगे, मैं तो आपका सेवक हूं जी, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो हाजिर हूं लेकिन अगर वाकई कोई आपको आदेश देकर सेवक की तरह काम करने को कहे तो आपके मान सम्मान को ठेस लगेगी और आपका अहंकार प्रकट हो जाएगा।
अहंकार के कितने रूप हैं, अभिमान किस किस तरह से प्रकट होता है, स्त्री का अहंकार क्या है और उसका अहंकार क्या है सेवा और अहंकार का क्या संबंध है।
अहंकार एक अहम् विषय है जिसे विभिन्न रूपों में व्यक्त किया जा सकता है। इसके कुछ मुख्य रूपों को निम्नलिखित किया जा सकता है:
अभिमान: अभिमान एक अहंकार का रूप है जहां व्यक्ति अपने आप में गर्व, मान, और अपनी महत्ता को महसूस करता है। यह अहंकार उसकी आत्म-प्रशंसा और आत्मगौरव के साथ आता है।
स्त्री का अहंकार: स्त्री का अहंकार उसके लिए हो सकता है जब वह अपनी स्त्रीत्व और नारीत्व की महत्ता में खुद को महसूस करती है। यह अहंकार स्त्री के विशेषताओं, योग्यताओं और सामरिकताओं के साथ जुड़ा हो सकता है।
सेवा और अहंकार: जब व्यक्ति सेवा का कार्य करता है, तो उसका अहंकार उसके योग्यता और उसके सेवा योग्यता के प्रति महसूस हो सकता है। व्यक्ति सेवा में अपनी महत्ता देख सकता है और यह अहंकार बन सकता है।
अहंकार का संबंध स्वाभाविक रूप से मानवीय होने के साथ ही हर व्यक्ति से संबंधित होता है, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। यह व्यक्ति के अंदर की आत्म-प्रशंसा, उनकी स्वामित्व भावना और सम्मान की इच्छा के साथ जुड़ा होता है।
अहंकार और सेवा का संबंध यह है कि जब एक व्यक्ति सेवा का कार्य करता है, तो उसका अहंकार उसके योग्यताओं, समर्पण के अनुसार, महसूस हो सकता है। यदि उसका अहंकार योग्यता और सेवा के प्रति विनम्रता के साथ संगत होता है, तो यह सकारात्मक हो सकता है। हालांकि, यदि अहंकार उच्चारण और सेवा के प्रति अनुकरण के साथ जुड़ा होता है, तो यह असकारात्मक अहंकार बन सकता है और दूसरों को ठेस पहुंचा सकता है।
अहंकार से बचने के लिए, संतुलित और विनम्र बने रहने का प्रयास करें और अपने अहंकार की पहचान करें। दूसरों की भावनाओं का आदर करें और गर्व और मान के साथ अहंकार को संतुष्टि से स्वीकार करें। सेवा के द्वारा और समर्पण के साथ कार्य करें और आत्म-प्रशंसा की भावना को छोड़ें। इस तरीके से, आप अहंकार को संतुष्टिजनक और सकारात्मक रूप में परिवर्तित कर सकते हैं।
 
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