 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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ऐसे देखे कि संसार में जो कुछ क्रिया, पदार्थ, घटना आदि है, वह सब भगवान का रूप है। चाहे उत्पत्ति हो, चाहे प्रलय हो; चाहे अनुकूलता हो, चाहे प्रतिकूलता हो; चाहे अमृत हो, चाहे मृत्यु हो; चाहे स्वर्ग हो, चाहे नरक हो; यह सब भगवान की लीला है। भगवान की लीला में बालकांड भी है, अयोध्याकाण्ड भी है, अरण्यकाण्ड भी है और लंकाकाण्ड भी है।
पुरियों में देखा जाए तो अयोध्यापुरी में भगवान का प्राकट्य है; राजा, रानी और प्रजा का वात्सल्यभाव है। जनकपुर में राम जी के प्रति राजा जनक, महारानी सुनयना और प्रजा के विलक्षण-विलक्षण भाव है। वे रामजी को दामाद रूप से खेलते हैं, खिलाते हैं, विनोद करते हैं। वन में (अरण्यकाण्ड में) भक्तों का मिलना भी है और राक्षसों का मिलना भी लंकापुरी में युद्ध होता है, मार-काट होती है, खून की नदियाँ बहती हैं। इस तरह अलग-अलग पुरियों में, अलग-अलग काण्डों में भगवान की तरह-तरह की लीलाएं होती हैं।
जब हम संसार को इस दृष्टिकोण से देखते हैं कि सभी क्रियाएं, पदार्थ, और घटनाएँ भगवान की लीला है, तो हम जीवन को एक नई प्रकार से समझ सकते हैं। इस दृष्टिकोण से, हम संसार के हर पहलू में भगवान की प्रतिष्ठा देखते हैं, चाहे वो अच्छा हो या बुरा, अनुकूल हो या प्रतिकूल, सुख हो या दुख, स्वर्ग हो या नरक।
यह दृष्टिकोण हमें संसार के सभी पहलू को स्वीकार करने में मदद करता है और हमें समग्र जीवन को एक सांसारिक और दिव्य मान्यता में जीने की क्षमता प्रदान करता है। यह सोचने की प्रक्रिया हमें आध्यात्मिक उन्नति, समर्पण, और आंतरिक शांति की दिशा में मदद कर सकती है।
इस दृष्टिकोण को अपनाकर हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और आनंदमय बना सकते हैं, और समस्त संसार को हमारे आत्मा के विकास का एक माध्यम बना सकते हैं।
Swami Ramsukhdas Ji
 
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