 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मित्रों जीवन तीन गुणों का समुच्चय है तमोगुण, रजोगुण और तमोगुण। तमोगुण के अंदर ही नेगेटिविटी आती है. नेगेटिविटी व्यक्ति को कहां से कहां ले जाती है। एक अच्छा खासा व्यक्ति नेगेटिविटी के चलते बहुत नीचे गिर जाता है।
हर व्यक्ति जीवन से पहले पॉजिटिव रहने का संकल्प लेकर आता है। लेकिन पैदा होने के बाद अपने ही द्वारा तय किए गए संघर्ष प्रकृति के विधान और कष्टों से घबराकर नकारात्मकता की तरफ चला जाता है।
सकारात्मकता जीवन की स्वाभाविक स्थिति है जो भी कष्ट दुख रोग हैं वह सब व्यक्ति ने जन्म से पहले खुद ही तय किए होते हैं। व्यक्ति का अंतर्मन ही उसके लिए रोग कठिन परिस्थितियां और चुनौतियां तय करता है ताकि वह उन विकारों और दुर्गुणों से मुक्त हो सके जिसके कारण वह भव रोगों से घिरता है।
त्रिविध तापों से मुक्ति के लिए ही आत्मा अपने लिए जन्म से पहले कष्ट चुनती है लेकिन जब कष्ट आते हैं तो व्यक्ति उन कष्टों से भागने लगता है। इसलिए जीवन को समझना है तो महा जीवन को समझना पड़ेगा। भागीरथ पुरोहित ने अपनी किताब अद्भुत जीवन की ओर में जीवन को बहुत गहराई से समझाने का प्रयत्न किया है।
किसी के द्वारा धक्का मार कर गड्ढे में गिरा दिया जाये तो इसके लिये धक्का मारने वाले को दोष दिया जा सकता है, किन्तु जब व्यक्ति स्वयं ही अपने कर्मों से गड्ढे में गिर पड़े तो इसके लिये दोष किसे दिया जा सकता है?
आज के समय में व्यक्ति की सोच तथा उसके व्यवहार में अत्यधिक परिवर्तन देखने को मिल रहा है। यह सकारात्मक कम और नकारात्मक अधिक है। इस प्रकार का व्यवहार करने वालों की मानसिकता विचित्र होती है।
वे अपने लाभ और स्वार्थ के लिये ऐसे कार्य कर जाते हैं जहां उन्हें इच्छित लाभ के स्थान पर अनेक प्रकार समस्याएं तथा कष्टों को झेलना पड़ता है। अधिकांश लोगों की सोच-समझ पर स्वार्थ का ऐसा परदा गिरा हुआ है जो उसे ठीक से देखने नहीं देता है।
यही परदा उसे हमेशा अन्धकार में धकेले रहता है। यह लोगों का स्वार्थ ही है कि दहेज के लिये बहू को प्रताड़ित किया जाता है, उसे जिंदा जला कर मार दिया जाता है, बेटा अपने माता-पिता की सेवा करने के स्थान पर यही सोचता है कि उसे इनकी सम्पत्ति में से कितना कुछ मिलने वाला है।
अनेक लोग अपने भविष्य के बनाने के लिये ऐसे-ऐसे कार्य कर डालते हैं जिसके कारण से उनका वर्तमान बिगड़ जाता है। व्यक्ति के द्वारा किये जाने वाले प्रयेक कार्य की प्रतिक्रिया अवश्य होती है। हमेशा वह सच नहीं होता जिसे हम देख रहे हैं और न हमेशा ऐसे परिणाम आते हैं जिसकी कामना की जाती है।
इस पर हमारी सोच और स्वार्थ का प्रभाव अवश्य पड़ता है। उसी अनुरूप परिणाम प्राप्त होते हैं जो कभी-कभी आशा के एकदम विपरीत होते हैं। सभी को किये गये कर्मों के परिणाम भोगने पड़ते हैं, तब व्यक्ति विचार करने को विवश हो जाता है कि ऐसा भी हो सकता है।
अद्भुत जीवन की ओर... पुस्तक व्यक्ति द्वारा किये जाने वाले व्यवहार का ऐसा दर्पण है जिसमें उसे अच्छा-बुरा सब दिखाई देता है। यह पुस्तक असंख्य व्यक्तियों को अपने भीतर झांकने को विवश करेगी। अगर इस पुस्तक को गम्भीरता से समझने का प्रयास किया जाता है तो असंख्य लोग समस्याओं से बचे रह सकते हैं। यह पुस्तक समस्त पाठकों के लिये अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होगी।
 
 
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