 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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हृदय संबंधी परेशानी प्रायः 45 वर्ष की आयु के बाद ही हुआ करती है। लेकिन आजकल दूषित वातावरण और अनियमित खानपान के कारण कम उम्र के लोगों में भी यह रोग होने लगा है।
प्रारंभ में हृदय में दर्द उत्पन्न होता है, जो थोड़ी देर तक रहता है। यह दर्द आधे घंटे से अधिक देर तक रहे तो दिल में रक्त की गुठली सी जम जाने से 'हृदय धमनी काठिन्य' (CORONARY THROMOSIS) का संदेह करना चाहिए।
हृदय का दर्द प्रारंभ होने से पहले रोगी को हृदय के स्थान पर बोझ और बेचैनी-सी प्रतीत हुआ करती है। कभी-कभी यह दर्द बिना कुछ पता चले ही अचानक शुरू हो जाता है। यह दर्द हृदय के बाएं बाजू स्थान और छाती की बायीं ओर तथा बायें बाजू में होता है और कभी दाय ओर की छाती में होता है।
कई बार यह दर्द, दिल, छाती, के अतिरिक्त गर्दन, निचले जबड़े, दांतों और कमर तक जाता है। कुछ रोगियों को दर्द बिल्कुल ही नहीं होता है बल्कि सांस लेने में दिक्कत होने लगती है।
इस दर्द में रोगी की छाती जकड़ी हुई प्रतीत होती है। काम करने. चलने-फिरने, दौड़ने, सीढ़ियां या ऊंचाई पर चढ़ने, भोजन के बाद पेट फूल जाने, पाचन अंगों के दोष के कारण और सर्दियों में यह दर्द अधिक होता है।
मानसिक उत्तेजना एवं क्रोध करने से भी हृदय का दर्द शुरू हो जाता है। रोगी अपनी छाती को रस्सी से कसा हुआ अनुभव करता है। पेट फूला हुआ मालूम पड़ता है। इस दर्द को पाचन दोष समझ कर रोगी डकार लेकर दूर करने का असफल प्रयास करता है।
सर्दी के मौसम में हृदय के दर्द का सर्वाधिक खतरा रहता है। भोजन करके शारीरिक या मानसिक कार्य करने से भी यह रोग हो सकता है। इसलिए खाना खाने के बाद कुछ समय तक लेटकर आराम कर लेना चाहिए। देर से पचने वाले भोजन, कॉफी, चाय, मांस-मसाले युक्त भारी भोजन आदि नहीं खाना चाहिए। तम्बाकू, सिगरेट, शराब का सेवन भी नहीं करना चाहिए। ये सब चीजें हृदय रोग को और बढ़ाती हैं।
हृदय को बल देने वाली, उसे स्वस्थ और निरोग रखने वाली औषधियों का प्रयोग यहाँ दिया जा रहा है। आप अपनी प्रकृति और सामर्थ्य के अनुसार इन औषधियों में से कुछेक का प्रयोग निःसंदेह रूप से कर सकते हैं।
औषधीय प्रयोग-
* अर्जुन की छाल और अकरकरा चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में दो बार आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कंपन और कमजोरी में लाभ होता है।
* कुलंजन, सौंठ और अकरकरा के 20-25 मि.ग्रा. मात्रा को 400 मिली. पानी में औटाकर चतुर्थांश क्वाथ पिलाने से हृदय रोग मिटता है।
* अनार के 10 ग्राम ताजे पत्तों को 100 ग्राम जल में पीसकर छानकर सुबह-सायं पिलाने से हृदय की धड़कन में लाभ होता है।
* अनार का शर्बत 20-25 मि.ली. का नित्य सेवन करने से भी हृदय रोग में लाभ होता है। छाया में सुखाया हुआ अनार के पत्ते का चूर्ण ताजे जल के साथ सेवन करने से दिल की धड़कन, रक्तविकार, कुष्ठ, प्रमेह, नासूर, पित्त ज्वर, वात-कफ ज्वर आदि में आश्चर्यजनक रूप से लाभ होता है।
* हृदय में दर्द होने पर मुनक्का कल्क 3 भाग. शहद एक भाग तथा लौंग आधा भाग मिलाकर कुछ दिन देने से लाभ होता है।
* हृदय की सामान्य धड़कन जब 72 से बढ़कर 150 से ऊपर रहने लगे तो एक गिलास टमाटर के रस में एक चम्मच अर्जुन की छाल का चूर्ण मिलाकर नियमित सेवन करने से शीघ्र ही धड़कन सामान्य हो जाती है।
* अर्जुन की मोटी छाल का चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में मलाई निकाले एक कप दूध के साथ सुबह-शाम नियमित सेवन करते रहने से हृदय के सारे रोगों में लाभ होता है। हृदय को बल मिलता है। और कमजोरी दूर होती है। हृदय की बढ़ी हुई धड़कन सामान्य होती है।
* गेहूं का आटा 20 ग्रा. 30 ग्रा. गाय के घी में भूनकर गुलाबी कर लें और उसमें अर्जुन की छाल का चूर्ण 3 ग्रा. तथा मिश्री 40 ग्रा. एवं खौलता हुआ जल 100 ग्राम डालकर पकाएं। जब हलवा तैयार हो जाए तब प्रातः सेवन करें। इसका नित्य सेवन करने से हृदय की पीड़ा, घबराहट, धड़कन बढ़ जाना आदि शिकायतें दूर हो जाती हैं।
* गेहूं और अर्जुन की अंतर छाल को बकरी के दूध और गाय के घी में पका कर इसमें मिश्री और शहद मिलाकर चाटने से अति उग्र हृदय रोग मिटता है।
* हृदय की शिथिलता और उसमें उत्पन्न शोध में अर्जुन की छाल का चूर्ण (6 ग्राम से 10 ग्रा.) तक गुड़ और दूध के साथ पकाकर और छानकर पिलाने से रक्त लसीका का जल रक्त वाहिनियों में नहीं भर पाता है, जिससे हृदय की शिथिलता दूर हो जाती है।
* हार्ट अटैक (दिल का दौरा) के हो जाने पर 40 मि.ली. अर्जुन की छाल का काढ़ा सुबह तथा रात दोनों समय सेवन करें। यह अत्यंत ही हृदय शक्तिवर्द्धक है।
 
 
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