 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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विदुर नीति-
जो मनुष्य अपने साथ जैसा बर्ताव करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए नीति धर्म है। कपट का आचरण करने के साथ कपटपूर्ण बर्ताव करें और अच्छा बर्ताव करने वाले के साथ साधुभाव से बर्ताव करना चाहिए।
बुढ़ापा रूप का, आशा धैर्य का मृत्यु प्राण का असूया धर्माचरण का काम लज्जा का नीच पुरुषों की सेवा सदाचार का क्रोध लक्ष्मी का और अभिमान सर्वस्व का ही नाश कर देता है।
जब सभी वेदों में पुरुष को सौ वर्ष की आयु वाला बताया गया है, तो वह किस कारण से अपनी पूर्ण आयु को नहीं पाता है।
अत्यंत अभिमान अधिक बोलना, त्याग का अभाव क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिंता और मित्र दोहये छह तीखी तलवारें देह धारियों की आयु को काटती है। ये ही मनुष्यों का वध करती हैं. मृत्यु नहीं।
जो अपने ऊपर विश्वास करने वाली स्त्री के साथ छल करता है, जो गुरु स्त्री गामी है तथा जो बड़ों पर हुक्म चलाने वाला, दूसरों की जीविका नष्ट करने वाला और शरणागत की हिंसा करने वाला है ये सब के सब ब्रह्महत्या के समान है, इनका संग हो जाने पर प्रायश्चित करें - यह वेदों की आज्ञा है।
सदा प्रिय वचन बोलने वाले मनुष्य तो सहज में ही मिल सकते हैं, किंतु जो अप्रिय होता हुआ हितकारी हो, ऐसे वचन के वक्ता और श्रोता दोनों ही दुर्लभ है।
कुल की रक्षा के लिए एक मनुष्य का ग्राम की रक्षा के लिए कुल का, देश की रक्षा के लिए गाँव का और आत्मा के कल्याण के लिए सारी पृथ्वी का त्याग कर देना चाहिए।
पति के लिए धन की रक्षा करें, धन के द्वारा स्त्री की रक्षा करें और स्त्री एवं धन दोनों के द्वारा सदा अपनी रक्षा करें। → पहले कर्तव्य, आय-व्यय और उचित वेतन आदि का निश्चय करके फिर सुयोग्य सहायकों का संग्रह करें, क्योंकि कठिन से कठिन कार्य भी सहायकों द्वारा साध्य होते हैं।
जो सेवक, स्वामी के अभिप्राय को समझकर आलस्य रहित हो. समस्त कार्यों को पूरा करता है, जो हित की बात कहने वाला, स्वामीभक्त, सज्जन और राजा की शक्ति को जानने वाला हो, उसे अपने समान समझकर कृपा करनी चाहिए।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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