 Published By:अतुल विनोद
 Published By:अतुल विनोद
					 
					
                    
कैंसे बदलें अपने भाग्य को? कहते हैं अपना भाग्य अपने ही हाथ में होता है . लेकिन हमारा भाग्य कैसे हमारे हाथ में हो सकता है. ये भी तो कहा जाता है कि भाग्य का विधाता तो ईश्वर है. कौन सी बात सही है और कौनसी गलत ? हम अपने भाग्य के विधाता हैं भी और नहीं भी. सब कुछ पहले से तय होता है और नहीं भी. दरअसल भाग्य की कुंजी की Key हासिल करना आसान भी है और सबसे मुश्किल भी. क्यूंकि दुनिया में सब कुछ तय भी है और नहीं भी, इस दुनिया में संयोग का बहुत बड़ा स्थान है. संयोग से ही सफलता से हमारा वियोग हो जाता है. संयोग है तो उसके पीछे दुर्योग भी छिपा है. यहाँ आकस्मिक घटनाएँ भी होती हैं.
एक शरीर जो बहुत अच्छे ढंग से काम कर रहा है उसका एक सेल गलत रस्ते पर चल पड़े तो कैंसर हो जाता है फिर इसे बचाना कठिन हो जाता है. राह में चलते किसी का भी एक्सीडेंट हो सकता है. यहाँ ज़्यादातर प्रत्याशित होता है लेकिन थोड़ा बहुत अप्रत्याशित भी होता है. ऐसा नहीं है कि यहाँ सब कुछ एट-रेंडम होता है. 95 फीसदी मामलों में हमारे काम और कदम उम्मीद के मुताबिक ही परिणाम देते हैं यदि उनके साथ आत्मविश्वास और प्रसन्नता जुड़ी हुयी हो तो कहते हैं कि प्रकृति ईश्वर ने बनायी है, लेकिन ये सच्चाई नही है ईश्वर कुछ भी बनाता नही, उसके होने मात्र से सब बन जाता है. जैसे अनुकूल वातावरण हो तो बीज अंकुरित हो जाता है वैसे ही ईश्वर की मौजूदगी होते ही सृष्टि का कण-कण नव सृजन में लग जाता है.
ईश्वर हवा है, पानी है, नमी है, खाद है हम बीज हैं, दुनिया सारे बीज वैसे ही आकार ले सकते हैं जैसे उनका ब्लू-Print है. लेकिन मनुष्य एकमात्र ऐसा प्राणी है जो ब्लू-Print को मॉडिफाई भी कर सकता है. उसमे समझ है जो उसे अपने मन से अपना विस्तार करने की इजाज़त भी देती है. निश्चित ही माँ बाप से मिले शरीर का एक ब्लूप्रिंट होता है जो उस खानदान के बुनियादी अनुभव और कार्यकलाप से मिलकर हैरिडिटी के रूप में मिलता है. संस्कार भी हमारे ब्लू-प्रिंट का हिस्सा बन जाते हैं. इन सब में देश काल और परिस्थियों का भी योगदान होता है. लेकिन इस सब के बावजूद हमारी प्रसन्नता और आत्मविश्वास बहुत कुछ बदलने की क्षमता रखते हैं. आत्मविश्वास के सामने समस्याएं छोटी नज़र आने लगती हैं. ख़ुश रहने से हमारी आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है.
दोनों के चलते हमारा नजरिया सकारात्मक हो जाता है. प्रार्थना भी असर करती है, प्रार्थना से हम परिस्थियों को नही बदल सकते बल्कि इससे हम खुद को बदल देते हैं. हमारे अंदर का देव ही उस परिस्थिति को बदल देता है. संसार में वो सब पहले से मौजूद था जिसके ज़रिये हमने 2000 सालों में आधुनिक उपकरण और तकनीकें विकसित की. ईश्वर चाहता तो मानव जाति को ये 1 लाख साल पहले भी दे देता लेकिन उसने सीधे कोई मदद नहीं की न ही वो सीधे मदद करता है.
उसकी दुनिया में सब कुछ है लेकिन उसे एक्सप्लोर हमे करना है. भरोसे की भैंस पाड़ा भी जनती. इंसान सदियों तक उसके भरोसे बैठा रहे उसे नही मिलेगा. हाँ वो आशान्वित रहें| बस अपनी कामनाओं के बारे में सोचें आप एक कदम बढ़ाएं वो 2 कदम बढाता है. जो हमारे हाथ में है वो हम मन से करें, बाकी ब्रम्हांड पर छोड़ दें.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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