जैसा कि उपरोकानुसार वर्णित है, मूसली मूलतः एक कंदरूपी पौधा है जो कि हमारे देश के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगता है। क्योंकि यह प्राकृतिक रूप में उगता है। इसकी विधिवत खेती काफी सफल रही है। इसकी खेती से संबंधित किए गए सफल प्रयोगों के आधार पर इसकी खेती के लिए विकसित की गई कृषि तकनीक के विभिन्न पहलुओं पर निम्नानुसार देखा जा सकता है-
खेती के लिए उपयुक्त भूमि-
मूसली की बढ़ोत्तरी जमीन के अंदर होती है अतः इसकी खेती के लिए प्रयुक्त की जाने वाली जमीन नर्म होनी चाहिए। वैसे अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा हो, इसकी खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है।
भूमि ज्यादा नर्म (पोली) भी नहीं हो, अन्यथा कंद की फिंगर्स पतली रह जाएगी जिससे इसका उत्पादन प्रभावित होगा।
फसल के लिए पानी की आवश्यकता-
मूसली की अच्छी फसल के लिए पानी की काफी आवश्यकता होती है। यूं तो जून माह में लगाए जाने के कारण जून-जुलाई-अगस्त के महीनों से प्राकृतिक बरसात होने के कारण इन महीनों में कृत्रिम रूप से सिंचाई करने की आवश्यकता नहीं होती, फिर भी यह ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि जब तक फसल उखाड़ न ली जाए तब तक भूमि गीली रहनी चाहिए।
अतः बरसात के उपरांत लगभग प्रत्येक 10 दिन के अंतराल पर खेत में पानी देना उपयुक्त होगा। पौधों के पत्ते सूखकर झड़ जाने के उपरांत भी जब तक कंद खेत में हो, हल्की-हल्की सिंचाई प्रत्येक दस दिन में करते रहना चाहिए जिससे भूमिगत कंदों को विधिवत बढ़ोत्तरी होती रहे।
सिंचाई के लिए यदि खेत में स्प्रिंकलर्स लगे हों, तो यह सर्वाधिक उपयुक्त होगा परंतु ऐसा अनिवार्य नहीं है। सिंचाई का माध्यम तो कोई भी प्रयुक्त किया जा सकता है, परंतु सिंचाई नियमित रूप से होते रहना चाहिए।
यद्यपि सिंचाई की जाना आवश्यक है परंतु खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए। अन्यथा इससे फसल का उत्पादन प्रभावित होगा, सिंचाई के लिए कुआं, ट्यूबवेल, नहर आदि जो भी संभव हो, माध्यम का उपयोग किया जा सकता है।
खाद की आवश्यकता-
मूसली की खेती के लिए पांच प्रकार की खाद/तत्व प्रयुक्त किए जा सकते हैं- गोबर खाद, रासायनिक खाद, हरी खाद (ग्रीन मैन्योर), हड्डी खाद, साइल कंडीशनर आदि।
मूसली की खेती हेतु इनकी आवश्यकता निम्नानुसार होगी-
गोबर अथवा कम्पोस्ट खाद गोबर की खाद अथवा कंपोस्ट खाद मूसली की फसल के लिये अत्यधिक उपयोगी रही है। यद्यपि यह संबंधित कृषक की क्षमता, खाद की उपलब्धता आदि पर निर्भर है।
(उदाहरणार्थ कई फार्मों पर प्रति एकड़ 65 ट्राली तक गोबर की खाद डाले जाने संबंधी प्रयोग किए गए हैं।) फिर भी अच्छी फसल के लिए प्रति एकड़ 5 से 10 ट्राली गोबर की खाद खेत को तैयार करते समय बिजाई से पूर्व डाली जानी चाहिए तथा खेत में अच्छी तरह मिला दी जानी चाहिए।
रासायनिक खाद यद्यपि रासायनिक खाद का उपयोग लाभकारी रहा है परंतु यथासंभव इसका उपयोग न किया जाए उपयुक्त रहेगा। खरीदारों के दृष्टिकोण से भी जहाँ तक संभव हो इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।
हरी खाद (ग्रीन मैन्योर) - जनवरी-फरवरी में मूसली के कंदों की खुदाई के बाद अगली फसल (मई-जून) तक खेत खाली रहता है। ऐसे में खेत में अल्पावधि वाली कोई फसल जैसे सन, बरू या धतूरा उगा लेना चाहिए तथा मई-जून में खेत में तैयारी करते समय इस फसल में हल चला कर इसे खेत में ही मिला दिया जाना चाहिए। इस प्रकार की हरी खाद डालने से काफी अच्छे परिणाम देखे गए हैं।
हड्डी खाद प्राय: कंदयुक्त फसलों के लिए हड्डी खाद काफी लाभकारी सिद्ध हुई है, पर इसकी प्रति एकड़ मात्र किसान की क्षमता पर निर्भर है। चूंकि इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स रहते हैं अत: न्यूनाधिक मात्रा में इसका डाला जाना फसल के लिए उपयोगी पाया गया है।
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