1- जिस नींद में स्वप्न बनता है उस नींद को अज्ञान की नींद कहते हैं। स्वप्न के पात्र का घर नींद में होता है तथा उनका शरीर स्वप्न का होता है तथा वे उस नींद से बाहर तभी आ सकते हैं जब नींद का स्वामी अपनी नींद तोड़ दे।
2- यह अज्ञान रूपी नींद माया की है जिसमें स्वप्न का पात्र जीव खेल रहा होता है। इस अज्ञान रूपी भ्रम की नींद से जागकर अपने मूल स्वरूप को जान लेना परा ज्ञान के द्वारा ही संभव है तथा इस ज्ञान को सद्गुरु के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है।
3- यह कोई साधारण नींद नहीं है जिससे इस स्वप्न के पात्र को जगाया जा सके क्योंकि स्वप्न की रचना करने वाले की नींद को बिना तोड़े इस जीव को भ्रम रुपी अज्ञान की नींद से जगाकर बाहर निकालना होता है।
4- सद्गुरु के द्वारा माया के विष का प्रभाव समाप्त होने पर जीव जाग जाता है तथा उसे अपने मूल स्वरूप का ज्ञान हो जाता है परंतु माया के विष का नशा पुन: चढने पर उसे भ्रम की नींद पुनः घेर लेती है।
5- जीव जितने समय तक अज्ञान की नींद में सोया रहेगा, वह इस माया के विष को ग्रहण करता रहेगा और इसका आदि हो जाएगा। फिर वह इस माया के विष के बिना जीवित नहीं रह सकेगा।
6- जीव का मानव शरीर प्राप्त करना उसके लिए प्रभात है। जीव की संध्या उसके लिए मृत्यु है। चौरासी लाख योनि में भटकना ही जीव के लिए रात है। जीव की मानव योनि में ही माया के विष को मारकर सद्गुरु उसे अज्ञान की नींद से बाहर निकाल सकता है।
7- जीवन की संध्या (मानव का स्थूल शरीर) होने तक ही सतगुरु की कृपा प्राप्त की जा सकती है। अतः इस अज्ञान रुपी भ्रम की निंद्रा का परित्याग कर, अपने मूल स्वरूप को पहचान कर असीम सुख प्राप्त करें।
8- चौरासी लाख योनि रुपी इस लंबी यात्रा के बाद आने वाला प्रभात (मानव तन) तो बहुत दूर होगा क्योंकि इस रात का कोई अंत नहीं है। अत: मानव के स्थूल शरीर के रहते ही तुमको इस अज्ञान की भ्रम रुपी नींद से बाहर निकलना है।
9- अज्ञान की नींद में सर्वत्र माया विष व्याप्त है। स्वप्न का पात्र मोह जल में पैदा होता है, मोह को छोड़ नहीं सकता है। मोह तो माया का ही रूप है। जीव माया के विष से कैसे बच सकता है। सद्गुरु के परम ज्ञान से जीव जागता है और माया के विष से ग्रसित होकर पुनः सो जाता है।
10- अज्ञान की नींद के तीन हिस्से हैं - पहला हिस्सा सुषुप्ति अवस्था (गहरी नींद) , दूसरा हिस्सा स्वप्नावस्था तथा तीसरा हिस्सा जाग्रत अवस्था है। इन तीनों में ही माया रूपी विष सर्वत्र व्याप्त है। इनके बाहर भी चारों तरफ विष की आंधी चल रही है। इस माया रुपी विष से जीव नहीं बच सकता है।
11- स्वप्न के पात्र मानव जीव को इस माया के विष से बचने के लिए सद्गुरु के परा ज्ञान का कवच अपने ऊपर हमेशा लगाए रखना होगा। जिससे माया रुपी सर्प जीव को डस न सके तथा वह माया के विष से बीच सके।
बजरंग लाल शर्मा
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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