 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मानसिक शांति-
भौतिक दृष्टि से व्यक्ति कितनी ही सफलताओं के शिखर छू ले पर उसके जीवन में धर्म, अध्यात्म या साधना का अभाव है तो उन्हें मानसिक शांति मिलना असंभव है, भौतिक साधन सुविधाएं दे सकते हैं, पर शांति नहीं, शांति तो व्यक्ति को अध्यात्म साधना से ही मिलेगी, आप स्वयं सोचिए, रेत को रौंद कर तेल कैसे मिलेगा? पानी का बिलोना करके नवनीत पाने की कामना भी हास्यास्पद है.
आज जो असंतुलन एवं विभिन्न प्रकार की विषमताएं जीवन में दिखलाई देती हैं वे आध्यात्मिक शून्य भौतिक दृष्टिकोण की उपज है. अध्यात्म की खोज व्यक्ति को अपने स्तर से ऊंचा उठाती है, ज्यों-ज्यों गहराई में उतरते हैं भौतिक सुख-साधन व्यर्थ लगने लगते है.
आध्यात्मिक दृष्टिकोण बनते ही व्यक्ति की हर प्रवृत्ति में अद्भुत संतुलन आ जाता है, वह तनाव मुक्त होकर शांतिपूर्वक जीवन जीने लगता है.
आत्मज्ञान-
शरीर, मन और मस्तिष्क का संतुलन ही ध्यान है. विचारों से मुक्ति पाकर योग और ध्यान की कक्षा में प्रवेश मिलता है. जीवन की पूर्णता और तृप्ति ही मानव को बड़ा और आशीर्वाद देने के लायक बनाती है.
सबसे बड़ा रस है- आत्मज्ञान, जिसने इसे चख लिया उसके सामने संसार के सारे वैभव और रस फीके हैं. इसीलिए क्रमशः और सहजता से इसकी तरफ बढ़ो. प्रेम इसे पाने का सबसे सुगम मार्ग है.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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