हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता को बहुत ही पवित्र ग्रंथ के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि जो भी इसका श्रवण या पाठन करता है उसे जीवन के कई रहस्यों का ज्ञान हो जाता है।
भगवत गीता में ना केवल महाभारत के युद्ध का वर्णन किया गया है, बल्कि धर्म, जय, पराजय, व्यवहार इन सभी विषयों को सम्मिलित किया गया है। भगवान श्रीकृष्ण ने जिस तरह महाभारत के युद्ध भूमि में धनुर्धर अर्जुन का मार्गदर्शन किया था। उसी तरह वर्तमान समय में गीता अनेकों लोगों का मार्गदर्शन कर रही है।
गीता में यह भी बताया गया है कि जीवन को बिना किसी अड़चनों के कैसे जिया जाता है। आइए गीता ज्ञान के इस भाग में जानते हैं कि श्रद्धा किसे कहते हैं और जीवन कैसे बनाया जा सकता है सरल।
भगवान श्रीकृष्ण ने जीवन और धर्म के विषय में कहा है कि-
यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि जो व्यक्ति सभी परिस्थितियों में अनासक्त अर्थात् एक समान रहता है। ना सौभाग्य में प्रसन्न होता है और ना ही किसी विवाद या क्लेश में निराश होता है। उसे ही ज्ञान से पूर्ण व्यक्ति कहा जाता है।
इस श्लोक के माध्यम से यह बताया गया है कि व्यक्ति को किसी भी परिस्थिति में अपना आपा या अपना व्यवहार नहीं बदलना चाहिए। जो व्यक्ति सुख एवं दुख में एक समान व्यवहार रखता है और अपने काम को पूर्ण करता है। फल की चिंता किए बिना कर्मों को पूरा करता है। वही सबसे श्रेष्ठ व्यक्ति कहलाता है। अन्यथा जो खुशी में लोभी हो जाता है और दुख में क्रोध का साथ देता है। ऐसे व्यक्ति से न केवल मनुष्य बल्कि देवता भी क्रोधित हो जाते हैं।
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि हे अर्जुन जो भक्त दूसरे या अन्य देवताओं की पूजा श्रद्धा पूर्वक करता है, वह भी मेरा ही पूजन कर रहा है। लेकिन उसकी यह पूजा अवधि पूर्वक होती है।
इस श्लोक में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया है कि व्यक्ति विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करता है। जिस तरह बुद्धि के लिए माता सरस्वती की पूजा, धन के लिए माता लक्ष्मी की और बल के लिए हनुमान जी की पूजा की जाती है उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी कार्य की पूर्ति के लिए अन्य देवी-देवताओं की पूजा करता है। लेकिन वह श्रद्धा भाव अंत में मेरे लिए ही होता है।
इस पूजा में व्यक्ति प्रत्यक्ष रूप से मेरा नाम स्मरण नहीं कर रहा है, बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए देवताओं की पूजा कर रहा है। धार्मिक ग्रंथों ने सदियों से ही मानवता की सही दिशा और जीवनशैली सिखाई है।
हम जिस भी धर्म को मानते हैं उसी आदशी पर आगे बढ़ते हैं, ये आदर्श हमें धार्मिक ग्रंथों के माध्यम से मिलते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी हम इन्हीं आदर्शों का पालन करते आए हैं।
हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता को सबसे पवित्र माना गया है। यह सबसे रहस्यमयी ग्रंथ हैं। गीता मुश्किलों में राह दिखाती है, उलझनों को सुलझाने का तरीका बताती है, जिंदगी और मृत्यु का सत्य सुनाती है। इसमें सभी प्रश्नों का उत्तर है, जीवन जीने का तरीका बताया गया हैं। आज-कल, जन्म-मृत्यु, धन-संपदा, प्रकृति, जलवायु, आदि-अंत, परमात्मा सभी का पूर्ण वर्णन है। यह बहुत ही सरल है लेकिन बहुत ही रहस्यमयी पुस्तक है।
अगर श्रीमद्भागवत गीता का अध्ययन नित्य किया जाए तो इस बात का आभास होता है कि उसमें सिखाया कुछ नहीं गया है, बल्कि समझाया गया है कि इस संसार का स्वरूप क्या है? उसमें यह कहीं नहीं कहा गया कि आप इस तरह चलें या फिर उस तरह चलें, बल्कि यह बताया गया है कि किस तरह की चाल से आप किस तरह की छवि बनाएंगे? उसे पढ़कर आदमी कोई नया भाव नहीं सीखता बल्कि संपूर्ण जीवन सहजता से व्यतीत करें, इसका मार्ग बताया गया है।
ये स्वयं परमपिता परमेश्वर के मुख कमल से प्रकट हुई है, भगवान ने स्वयं सारे रहस्य का वर्णन स्वयं किया है। सभी मनुष्यों को समय गंवाए बिना श्रीमद्भागवत गीता अवश्य पढ़नी चाहिए|
गीता में कहा गया है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है जिससे बुद्धि व्यग्र हो जाती है। भ्रमित मनुष्य अपने मार्ग से भटक जाता है। तब सारे तर्कों का नाश हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य का पतन हो जाता है। इसलिए हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए।
गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को सदैव सत्कर्म करने चाहिए। गीता में कही गई इन बातों को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में मानना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्ममंथन करके स्वयं को पहचानो क्योंकि जब स्वयं को पहचानोगे तभी क्षमता का आंकलन कर पाओगे। ज्ञान रूपी तलवार से अज्ञान को काटकर अलग कर देना चाहिए। जब व्यक्ति अपनी क्षमता का आंकलन कर लेता है तभी उसका उद्धार हो पाता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि मृत्यु एक अटल सत्य है, किंतु केवल यह शरीर नश्वर है। आत्मा अजर अमर है, आत्मा को कोई काट नहीं सकता, अग्नि जला नहीं सकती और पानी गीला नहीं कर सकता। जिस प्रकार से एक वस्त्र बदलकर दूसरे वस्त्र धारण किए जाते हैं उसी प्रकार आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरे जीव में प्रवेश करती है।
ओम
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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