 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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स्नान-
स्नान मानव जीवन की दिनचर्या का एक जरूरी हिस्सा है। शारीरिक स्वच्छता, मानसिक शुद्धि स्नीर आरोग्य के लिए इसका बड़ा महत्व है। नहा-धोकर आदमी अपने को हल्का-फुल्का और प्रस्तावित महसूस करता है।
महर्षि चरक के अनुसार स्नान पवित्रता कारक, वीर्य बढ़ाने वाला, आयुवर्द्धक, बकान और पसीने को गए करने वाला, मल निवारक, जल वृद्धि करने वाला और ओज-तेज उत्पन्न करने वाला है। समय-कुसमय, कई बार दूषित जल, वर्जित और निषिद्ध परिस्थितियों में स्नान करना हानिकारक माना गया है।
गरम पानी से स्नान करना मस्तिष्क और नेत्रों को हानि पहुंचाता है। भोजन के तुरंत बाद, व्यायाम और रतिक्रिया के तुरंत बाद, कंद-मूल, फल शर्बत और औषधि आदि का सेवन करने के तुरंत बाद स्नान करना वर्जित है। इससे शरीर में कुछ ऐसी प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, जो कई रोगों का कारण बन सकती है।
ठंडी प्रकृति वाले व्यक्तियों को खुली ठंडी हवा में स्नान करना हानि पहुंचाता है। इसी तरह कफ प्रकृति वालों को भी अधिक स्नान न करने का परामर्श दिया जाता है। अतिसार के रोगी, नजले के रोगी, छोटे बच्चे, बड़े और ज्वरप्रस्त व्यक्ति अगर ठंडे पानी से स्नान करते हैं, तो उन्हें हानि पहुंचेगी। बरसाती नदी-नालों और तालाबों के जल में स्नान करना भी मना है, क्योंकि वह जल विषाक्त रहता है।
भोजन-
होटल और रेस्टोरेंट का मोह त्याग कर घर का सादा और सात्विक भोजन अपनाएं। संयोग विरुद्ध पदार्थ नहीं खाने चाहिए। गरिष्ठ पदार्थ, अधिक चिकनाई वाले पदार्थ, मिर्च-मसाले तथा तेल से तर साग-सब्जी भले ही स्वादिष्ट लगे, परन्तु यह सब रोगों को जन्म देने वाले होते हैं।
रोज-रोज पकवान खाना भी रोगों को बुलाना है। संयोग विरुद्ध पदार्थ ऐसे हैं, जो अपने आप में गुणकारी होते हुए भी किसी दूसरी चीज के साथ मिलाकर खाने से विषाक्त हो जाते हैं।
उदाहरणार्थ- दूध-नींबू, दूध-नमक, दूध-दही, दूध और बेल (फल) आदि।
परशुराम संबल
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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