 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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मनुष्य का मन अत्यंत चंचल होता है और यह एक जगह पर स्थित रहना सरल नहीं होता है। इस चंचल स्वभाव के कारण मन की शक्तियाँ बिखर जाती हैं और कई बार मन अपनी असार्थकता में अटक जाता है। कुछ लोगों की स्थिति तो यह हो जाती है कि उनका मन अत्यल्प प्रतिफलक प्रतीत होता है और उन्हें रुग्ण बना देता है।
यदि हम मन को समझें, उसके स्वभाव को जानें, उसके लक्षणों को पहचानें, और उसके कार्य करने के तरीकों को समझें, तो हम उसे नियंत्रित कर सकते हैं।
मन का विकास कैसे करें:
ध्यान और मेधा विकास: ध्यान और मेधा विकास की प्रक्रिया के माध्यम से हम मन को नियंत्रित कर सकते हैं। योग और ध्यान प्रैक्टिस करने से मन को शांति और संयम प्राप्त हो सकता है, जिससे हम अपने विचारों को साकार और सात्विक बना सकते हैं।
सकारात्मक विचार: सकारात्मक विचार अपनाने से हम मन को सकारात्मक दिशा में प्रवृत्त कर सकते हैं। अपने दुखद या नकारात्मक विचारों को सकारात्मकता में परिवर्तित करने के लिए प्रयास करें।
सामंजस्य और संतोष: आंतरिक सामंजस्य और संतोष मन को स्थिर करने में मदद कर सकते हैं। आपके और आपके आस-पास के लोगों के बीच सहमति और सदस्यता बनाए रखने का प्रयास करें।
स्वसंवाद (सेल्फ-टॉक): समय-समय पर अपने मन के साथ स्वसंवाद करना मन को स्वस्थ बनाए रखने में मदद कर सकता है। यह आपके अंतरात्मा के साथ संवाद करने का एक तरीका हो सकता है और आपको अपने आदर्शों और लक्ष्यों के प्रति स्पष्टता प्राप्त कर सकता है।
मन के महत्व का समझार्थ गौतम बुद्ध के विचार:
गौतम बुद्ध के अनुसार, मन समस्त इंद्रियों की शक्तियों में उत्कृष्ट है और सभी संवेदनाएँ मन में ही पैदा होती हैं। वह सभी विषयों और चेतनाओं का प्रधान होता है और समस्त तत्वों की अपेक्षा मन सबसे सूक्ष्म है। मन का अद्वितीय और अद्वितीय शक्तियों के साथ संबंधित होना मनुष्य को अपरिमित संभावनाओं के द्वार खोल सकता है।
मन का सही दिशा में उपयोग करने के लिए हमें अपने विचारों की गुणवत्ता पर ध्यान देना चाहिए, सकारात्मक विचारों को प्राथमिकता देना चाहिए, और समाजसेवा और स्वाध्याय के माध्यम से मन की शक्तियों का उचित उपयोग करना चाहिए। यह सभी को एक संतुलित और सुखमय जीवन की दिशा में मदद कर सकता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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