Published By:बजरंग लाल शर्मा

स्वप्न के जीव नींद के बाहर कैसे जाएंगे…

स्वप्न के जीव नींद के बाहर कैसे जाएंगे…

"असत मण्डल में सब कोई भूल्या, पर अखंड किने न बताया।

नींद का खेल खेलत सब नींद में, जाग के किने न दिखाया ।। "                   

महामति प्राणनाथ जी कहते हैं यह नश्वर संसार स्वप्नवत है, असत्य है तथा मिटने वाला है। इस असत मंडल में सभी स्वप्न के पात्र भूल गए हैं कि वे कौन है? कहाँ से आए हैं ? वे इस संसार को सत्य मानते हैं। इनको क्या पता कि अखंड (नहीं मिटने वाली) भूमि कहाँ है? किसी ने भी यह नहीं बताया यह खेल नींद का है तथा सभी सपने के पात्र की तरह इसमे खेल रहे हैं। इस नींद के बाहर क्या है? इसका किसी को भी पता नहीं है।

 " सुपन की सृष्ट वैराट सुपन का, झूठे  सांच  ढंपाया । 

असत आपे सो क्यों सत को पेंखें,  इन पर पेड़ ना पाया ।। "                         

यह सारी नश्वर सृष्टि अक्षर पुरुष की नींद में स्वप्नवत है । यह वैराट ब्रह्मांड भी सपने का ही हैं तथा मिटने वाला है । यहाँ यह कहा गया है कि झूठ ने  सच को ढक दिया । इसका तात्पर्य यह है कि अक्षर पुरुष की नींद ने अपने अंदर बनने वाले स्वप्न के झूठे पात्रों को ढक दिया जिससे वे सभी सपने के टूटने के बाद भी नींद के बाहर नहीं जा सके । इस प्रकार नींद ने झूठे स्वप्न के पात्रों के लिए सत्य को ओझल कर दिया ताकि वे रचना करने वाले को कभी देख नहीं सके ।

महामति अपनी वाणी में पुनः कहते हैं कि--

" रे  मन  सृष्टि  सकल  सुपन  की, तू  तामें  करे  पुकार ।

असत सत से न मिल सके, तू  छोड़  आप  विकार ।। "                   

रे जीव ! यह समस्त सृष्टि सपने की है तुम इसमें किसको पुकार कर रहे हो । तुम्हारे कोई भी शब्द इस सपने के बाहर नहीं जा सकते हैं । तुम्हारा  यह  शरीर, यह मन तथा वचन कोई भी इस सपने के बाहर नहीं जा सकता है । तुम्हें यह शरीर स्वप्न में ही मिला है तथा माया के तीन गुणों से बना है । यदि तुम्हे इस नींद के बाहर जाना है तो तुमको अपने माया के तीनों गुण (सत, रज, तम) रूपी विकार को छोड़ना होगा ।          

रे जीव ! तुम तो अनादि हो , तुम तो इस संसार की रचना के पहले भी थे, तुम्हारा घर अक्षरधाम में है। तुमने यह माया रूपी विकार की चादर अपने ऊपर ओढ़ ली है। यह माया रूपी चादर को जब तक तुम हटाओगे नहीं तब तक तुम अपने घर कैसे पहुंचोगे ? रे जीव तुम इस बात को अच्छी तरह समझ लो कि तुम पहले सत के साथ थे और अब तुम असत रूपी माया से जुड़ गए हो । तुमने अपने अंदर विकार पैदा कर लिया है , तुम असत हो गए हो ।         

यदि तुमको फिर सत के पास जाना है तो तुमको असत को छोड़ना  होगा। असत अंधकार स्वरूप है सत प्रकाश स्वरूप है। अंधकार और प्रकाश का तो कोई मेल ही नहीं है, ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते। अगर तुम्हें सत के निकट जाना है तो तुमको इस असत रूपी अंधकार से बाहर निकलना होगा। अपने इस माया रूपी  विकार  को  हटाना होगा।         

बजरंग लाल शर्मा, चिड़ावा

 


 

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