Published By:धर्म पुराण डेस्क

Hyper acidity, हाइपर एसिडिटी की रामबाण चिकित्सा, आयुर्वेद में पेट में गैस बनने का उपाय, घर पर करें एसिडिटी का इलाज

हाइपर एसिडिटी पर रामबाण ..

हाइपर एसिडिटी या अम्लपित्त वर्तमान समय में सबसे अधिक पाये जाने वाले रोगों में से एक है, जो दोषपूर्ण जीवन शैली की उपज होता है। 

आज के दौर में लगभग 70 प्रतिशत लोग इसी रोग से पीड़ित है। हमारे शरीर में उपस्थित पित्त में अम्लता का गुण आने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है। इस रोग को सामान्य समझकर नगर अन्दाज नहीं समझना चाहिये, क्योंकि आगे चलकर इसी एसिडिटी के कारण अल्सर व गैस्ट्राइटिस आदि रोग हो जाते हैं। 

चिंता व तनाव एसिडिटी का प्रमुख कारण होता है आमतौर पर व्यक्ति इसे गैस मानकर चूर्ण वगैरह खा लेते हैं इसके कुछ समय तो आराम होता है मगर यह रोग पूरी तरह जड़ से खत्म नहीं होता।

आयुर्वेद के अनुसार, पित्त में अम्लता नहीं होती परन्तु अपथ्य 'सेवन तथा दोषपूर्ण दिनचर्या, से पित्त में उष्णता आती है जिससे अम्लता पैदा होने लगती है। आगे चलकर यही समस्या अम्लपित्त या हाइपर एसिडिटी का रूप लेती है।

अम्लपित्त रोग के कारण इस रोग में ..

खट्टी डकार आना तथा छाती में जलन होना सामान्य लक्षण है। इसके अतिरिक्त अन्य लक्षण जैसे पेट में भारीपन, खाली पेट गैस बनना, एक माह में चार-पांच बार सिर दर्द होना, जी मिचलाना पर शायद ही उल्टी होना, पैरों के तलवों में जलन, ठण्डे स्थान पर पैर रखने से अच्छा लगना, दिन में दो या तीन बार शौच जाना आदि। इसके अतिरिक्त अच्छी नींद लेने के बावजूद रोगी को थकावट महसूस होती है। इन लक्षणों की सहायता से रोग की पहचान की जा सकती हैं।

आयुर्वेदानुसार अपनी जीवन शैली को नियमित करके इस रोग से बचा जा सकता है। आहार निद्रा तथा ब्रह्मचर्य किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य के आधार होते हैं। जहां तक आहार का सम्बन्ध है हमें पौष्टिक, सादा तथा आसानी से पचने वाला भोजन करना चाहिए, विपरीत प्रकृति वाले खाद्य पदार्थों जैसे दूध तथा मछली का सेवन एक साथ नहीं करना चाहिए। 

स्मरण रहे नियमित दिनचर्या तथा आहार पर पैनी नजर आयुर्वेद के दो हथियार हैं जिनकी सहायता से आप हाइपर एसिडिटी से बच सकते हैं।

याद रखें- भोजन पेट भरने की वस्तु न होकर शारीरिक पोषण के लिए भी आवश्यक है। चिकित्सकीय मत "चिकित्सा से बेहतर है बचाव" का ध्यानांतर्गत उचित समय पर पौष्टिक, सादा तथा आसानी से पचने वाला ही आहार का सेवन कीजिए एवं प्रकृति से परे मत जाइयेगा।

वैध डॉ रामचंद्र के अनुसार इस रोग को घरेलू नुस्खों से भी ठीक किया जा सकता है। जो निम्नानुसार है-

1. अम्लपित्त की बीमारी में मूली और मिश्री चबाकर खाने से काफी आराम मिलेगा। 

2. आम खाने की बाद दूध पी लेने से फायदा होता है

3. आंवला ताजा खाते रहने से भी पेट साफ रहता है।

4. आंवला का चूर्ण 2 चाय के चम्मच रात में सोते समय पानी या दूध के साथ खाने से भी एसिडिटी दूर होती है।

5. सौंफ को अदरक के साथ सेवन करने से पेट की जलन व हाजमे में लाभ होता है।

6. 20 ग्राम सौंफ को 100 ग्राम पानी में आधे घंटे उबालकर बचे पानी का सेवन करने से एसिडिटी में राहत मिलती है।

7. भोजन के बाद या भोजन के साथ आधा कटोरी ताजे दही में थोड़ा सा काला नमक व आधा चम्मच अजवाइन लेने से भी एसिडिटी दूर होती है। 

8. हरड़ का आंवले के रस के साथ सेवन करने से एसिडिटी व सीने की जलन में लाभ होता है।

9. छुहारे व आंवले को रात को पानी में भिगो दें सुबह मसल कर व पानी को छानकर दिन में दो-तीन बार पीने से फायदा होगा।

10. पपीता व अमरूद नियमित प्रयोग करते रहने से एसिडिटी रोग नहीं होता है क्योकि ये स्वयं ही एसिडिटी की औषधि हैं।

11. सेव व चुकंदर के रस का सेवन भी इस रोग में लाभप्रद है।

12. हल्दी पाउडर एक चम्मच (चाय का) रात को सोने से पूर्व दूध के साथ लेने से एसिडिटी से छुटकारा मिलता है।

13. सोंठ का चूर्ण 2 ग्राम लेकर उसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर गर्म पानी से खाएं। 

14.अलसी के पत्तों की सब्जी खाने से भी एसिडिटी में बहुत आराम मिलता है। 

15. एक गिलास गर्म पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से गैस में आराम होता है। 

16. गाजर व टमाटर का रस भी एसिडिटी में काफी फायदेमंद रहता है।

17. एक या दो लहसुन की कलियों को दो-तीन मुनक्कों के साथ भोजन के बाद चबाकर निगल जाएं तो एसिडिटी दूर होती है।

18. चोकर सहित आटे की रोटी और छिलके सहित दाल का प्रयोग करने से पेट साफ रहता है।

जहां तक अच्छी दिनचर्या का प्रश्न है। उसके लिए जहां तक संभव हो सूर्योदय से लगभग आधा घंटा पहले उठें। हल्का व्यायाम तथा योगासन भी जरूरी है। दिनभर के कार्यों को प्रसन्नता पूर्वक करना जरूरी है। क्रोध न करें, खाने की आदतों में परिवर्तन करना जरूरी है।

गरिष्ठ, खटाई युक्त, तले हुए मिर्च मसालेदार खाद्य पदार्थों का प्रयोग नहीं करें। लाल मिर्च के सेवन से भी बचना चाहिये। रोग होने की अवस्था में रोगी को हरा धनिया, पुदीना, मुनक्का, सूखा धनिया, मुलेठी चूर्ण, मीठे फलों का रस, ताजी छाछ आदि से देने से रोग का निदान होने में सहायता मिलती है।


 

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