 Published By:धर्म पुराण डेस्क
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आदर्श बालक वह होता है जो सत्यनिष्ठा, बुद्धिमान, और सद्गुणों से सम्पन्न होता है। उसकी पहचान उसके विचारों, वचनों, और कृतियों से होती है।
बुद्धि और शक्ति:
आदर्श बालक की बुद्धि तीव्र और सुगम होती है। उसमें समस्याओं का समाधान निकालने की क्षमता होती है और उसका सोचने का तरीका समृद्धि और उद्यम से भरा होता है। वह हमेशा नए विचारों की ओर बढ़ता है और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए उद्यमशील होता है।
आज्ञाकारी और शांत स्वभाव:
आदर्श बालक आज्ञाकारी होता है, जिससे उसके जीवन में कर्म और आत्म-नियंत्रण बना रहता है। उसकी शक्ति इसमें है कि वह आत्म-नियंत्रण के साथ सभी परिस्थितियों का सामना कर सकता है, और वह हमेशा शांत और स्थिर रहता है।
धर्मनिष्ठा और दान:
आदर्श बालक धर्मनिष्ठा होता है और उसमें दान और सेवा की भावना होती है। उसे अपनी सफलता को साझा करने का आत्मसमर्पण होता है और वह समाज में उपयोगी बनने के लिए सदैव तैयार रहता है।
मातृ-पितृ भक्ति:
आदर्श बालक मातृ-पितृ भक्ति में आदर्श होता है। उसकी शिक्षा में आदर्शों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और वह अपने माता-पिता के प्रति समर्पित रहता है।
स्वाध्यायी और आत्म-प्रशिक्षण:
आदर्श बालक निरंतर स्वाध्याय करता है और आत्म-प्रशिक्षण में रुचि रखता है। उसकी प्राथमिकता व्यक्तिगत और आध्यात्मिक विकास की होती है, जो उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफल बनाती है।
उद्यमी और सहानुभूति:
आदर्श बालक उद्यमी होता है और उसमें सहानुभूति और समर्पण की भावना होती है। उसे समाज में उच्चतम मूल्यों की प्राप्ति के लिए कार्य करने का उत्साह होता है।
सद्गुणों का प्रतीक:
आदर्श बालक सद्गुणों का प्रतीक होता है, जो उसे एक आदर्श समाज का सदस्य बनाते हैं। उसका जीवन सत्य, नैतिकता, और सेवा के मूल्यों पर आधारित होता है, जो उसे आत्मनिर्भर और समर्थ बनाता है।
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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