Published By:धर्म पुराण डेस्क

आदर्श तो श्री राम हैं और वे ही रहेंगे

भारत में युगों-युगों से दशहरा पर्व मनाया जा रहा है। इसे विजयादशमी भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्रीराम ने लंका के आततायी रावण का वध किया था। इसी दिन मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस को मारा था। इसीलिए इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की और असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। समय के साथ इस त्यौहार को मनाने के तरीकों में भले ही बदलाव आया हो लेकिन एक बात बिल्कुतल तय है कि यह असत्य पर सत्य की विजय का संदेश देता रहा है। हाल ही के कुछ वर्षों में कतिपय लोगों द्वारा रावण को महिमामंडित कर उसे आदर्श महापुरूष बताने की प्रवृत्ति चल पड़ी है। ऐसा करने वाले यह तर्क देते हैं कि रावण एक महान पंडित, ज्ञानी और वीर ब्राह्मण था।

उसे चारों वेदों तथा सभी शास्त्रों  का अद्भुत ज्ञान था। उसकी और भी अनेक खूबियों को बताया जाता है। इसमें कोई शक नहीं है कि रावण में यह सब गुण थे। भगवान श्रीराम तक इन गुणों के कारण उसका सम्मन करते थे। यह इस बात से स्पष्ट हो जाता है कि जब रावण मरने वाला था तो श्रीराम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण से कहा कि विश्व का एक महान पंडित और ज्ञानी इस पृथ्वी से विदा ले रहा है, जाकर उससे कुछ ज्ञान हासिल करो। लक्ष्‍मण रावण के पास पहुँचकर उसके सिर की तरफ खड़े हो गये और उपदेश देने की प्रार्थना की। रावण कुछ नहीं बोला। लक्ष्मण लौटकर श्रीराम के पास आए और बताया कि रावण ने कुछ कहा नहीं। इस पर श्रीराम ने कहा कि यदि किसीसे ज्ञान प्राप्त करना है तो उसके सिर के पास नहीं, पैरों के पास खड़ा होना चाहिए। लक्ष्मण जाकर रावण के पैरों के पास खड़े हुए त‍ब रावण ने उन्हें तीन उपदेश दिये। रावण ने लक्ष्‍मण से कहा कि शुभ काम में देरी नहीं करनी चाहिए और अशुभ काम को टालने का प्रयास करना चाहिए। मैंने सीता को लौटाने के शुभ काम में देरी की और उनके हरण के अशुभ काम को टालने का प्रयास नहीं किया। दूसरा उपदेश ये है कि अपने शत्रु को कभी कमजोर और छोटा नहीं समझना चाहिए। मैंने मनुष्य और बानरों को कमजोर समझा। तीसरा उपदेश ये है कि ऐसा रहस्य किसी को नहीं बताना चाहिए, जिसका संबंध आपके जीवन से हो | मैंने अपनी नाभि में अमृत का रहस्य अपने भाई वि‍भीषण को बता दिया। ये तीनों गलतियां ही मेरे विनाश का कारण बनीं। इससे यह बात तो स्पष्ट होती है कि रावण को बहुत ज्ञान था। लेकिन यह ज्ञान केवल सैंद्धा़तिक था। उसने इस ज्ञान को जीवन में नहीं उतारा और उसे अपने आचरण का अंग नहीं बनाया। इसलिए आचरण में लाए बिना ज्ञान उसका शत्रु बन गया। अत: यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सिर्फ किताबी ज्ञान हो जाने से कोई ज्ञानी नहीं हो जाता। असल बात आचरण की है। यदि किसी व्यक्ति को किताबी ज्ञान नहीं है लेकिन उसका आचरण अच्छा हो तो उसे पंडित और ज्ञानी माना जाएगा।

हमारे पूर्वजों ने युगों से श्रीराम को उनके सदाचरण और मानवोचित उच्च गुणों के कारण ही आदर्श और मर्यादा पुरूषोत्तम मानकर उनकी पूजा की है। देश के कई भागों में रावण की पूजा किए जाने की बात सामने आई है, लेकिन रावण की पूजा करने वाले भी श्रीराम की महानता को नकारते नहीं हैं। वे रावण के प्रशंसक भले ही हों लेकिन श्रीराम के विरोधी नहीं हैं। भारतीय संस्कृकति में विरोध के स्वर का सदा सम्मान किया गया है। रावण को महान बताने के लिए कितने भी प्रयास किए जाएं लेकिन भारत के आदर्श तो श्रीराम ही थे, हैं और सदा रहेंगे।                                                                                                                                                                                                                                                        

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