ऋग्वेद की शिक्षाएँ -
1. एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति । उस एक प्रभु को विद्वान लोग अनेक नामों से पुकारते हैं।
2. एको विश्वस्य भुवनस्य राजा ॥ वह सब लोकों का एकमात्र स्वामी है।
3. यस्तन्न वेद किमृचा करिष्यति ॥ जो उस ब्रह्म को नहीं जानता, वह वेद से क्या करेगा ?
4. सं गच्छध्वं सं वदध्वं। मिलकर चलो और मिलकर बोलो।
5. शुद्धाः पूता भवत यज्ञियासः ॥ शुद्ध और पवित्र बनो तथा परोपकारमय जीवन वाले हो ।
6. स्वस्ति पन्थामनु चरेम। कल्याण-मार्ग के पथिक हों।
7. देवानां सख्यमुप सेदिमा वयम् ॥ हम देवों (विद्वानों) की मैत्री करें।
8. उप सर्प मातरं भूमिम् । मातृभूमि की सेवा करो।
9. भद्रंभद्रं क्रतुमस्मासु धेहि । हे प्रभो! हम लोगों में सुख और कल्याणमय उत्तम संकल्प, ज्ञान और कर्म को धारण कराए।
यजुर्वेद की शिक्षाएं -
1. भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम । हम कानों से भद्र-मंगलकारी वचन ही सुनें।
2. स ओतः प्रोतश्च विभूः प्रजासु ॥ वह व्यापक प्रभु सब प्रजाओं में ओतप्रोत है।
3. मा गृधः कस्य स्विद् धनम् ॥ किसी के धन पर न ललचाए।
4. मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे ॥ हम सब परस्पर मित्र की दृष्टि से देखें।
5. तमेव विदित्वाति मृत्युमेति ॥ उस ब्रह्म (प्रभु) को जानकर ही मनुष्य मृत्यु को लाँघ जाता है।
6. ऋतस्य पथा प्रेत। सत्य के मार्ग पर चलो।
7. तन्मे मनः शिवसङ्कल्पमस्तु ॥ मेरा मन उत्तम संकल्पों वाला हो।
सामवेद की शिक्षाएं-
1. अध्वरे सत्यधर्माणं कविं अग्निं उप स्तुहि । हिंसा रहित यज्ञ में सत्य धर्म का प्रचार करने वाले अग्रि की स्तुति करो।
2. ऋचा वरेण्यं अवः यामि ॥ वेद मंत्रों से मैं श्रेष्ठ संरक्षण माँगता हूँ।
3. मन्त्रश्रुत्यं चरामसि ॥ वेद मंत्रों में जो कहा है, वही हम करते हैं।
4. ऋषीणां सप्त वाणी: अभि अनूषत् ॥ ऋषियों की सात छन्दों वाली वाणी कहो- वेद मन्त्र बोलो।
5. अमृताय आप्यायमानः दिवि उत्तमानि श्रवांसि धिष्व ॥ मोक्षप्राप्ती के लिये तू अपनी उन्नति करते हुए द्युलोक में उत्तम यश प्राप्त कर ।
6.यज्ञस्य ज्योतिः प्रियं मधु पवते। यज्ञ की ज्योति प्रिय और मधुर भाव उत्पन्न करती है।
अथर्ववेद की शिक्षाएं-
1. तस्य ते भक्तिवांसः स्याम ॥ हे प्रभो! हम तेरे भक्त हो।
2. एक एव नमस्यो विश्वीड्यः । एक परमेश्वर ही पूजा के योग्य और प्रजाओं में स्तुत्य है।
3. स नो मुञ्चत्वंहसः ॥ वह ईश्वर हमें पाप से मुक्त करे।
4. य इत् तद् विदुस्ते अमृतत्वमानशुः ॥ जो उस ब्रह्म को जान लेते हैं, वे मोक्षपद पाते हैं।
5. सं श्रुतेन गमेमहि ॥ हम वेदोपदेश से युक्त हों।
6. यज्ञो विश्वस्य भुवनस्य नाभिः ॥ यज्ञ ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को बांधने वाला नाभिस्थान है।
7. ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत। ब्रह्मचर्य रूपी तपोबल से ही विद्वान लोगों ने मृत्यु को जीता है।
8. मधुमतीं वाचमुदेयम् ॥ मैं मीठी वाणी बोलूं।
9. परैतु मृत्युरमृतं न ऐतु। मृत्यु हमसे दूर हो और अमृत-पद हमें प्राप्त हो ।
10. सर्वमेव शमस्तु नः ॥ हमारे लिये सब कुछ कल्याणकारी हो ।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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