सच ये है कि कई लोग तुलसीदास जी की सभी रचनाओं से अनभिज्ञ है और अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं |
वस्तुतः रामचरित मानस के अलावा तुलसीदास जी ने कई अन्य ग्रंथो की भी रचना की है. तुलसीदास जी ने तुलसी शतक में इस घटना का विस्तार से विवरण भी दिया है.
हमारे वामपंथी विचारकों तथा इतिहासकारों ने ये भ्रम की स्थिति उत्पन्न की, कि रामचरितमानस में ऐसी कोई घटना का वर्णन नहीं है.
"तुलसी दोहा शतक " का अर्थ इलाहाबाद हाई कोर्ट में प्रस्तुत किया है |
प्रत्येक दोहे का अर्थ उनके नीचे दिया गया है, ध्यान से पढ़ें |
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि क्रोध से ओतप्रोत यवनों ने बहुत सारे मन्त्र (संहिता), उपनिषद, ब्राह्मण ग्रन्थों (जो वेद के अंग होते हैं) तथा पुराण और इतिहास संबंधी ग्रंथों का उपहास करते हुए उन्हें जला दिया ।
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि ताकत से हिंदुओं की शिखा (चोटी) और यज्ञोपवीत से रहित करके उनको गृहविहीन कर अपने पैतृक देश से भगा दिया ।
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि हाथ में तलवार लिये हुये बार बार बाबर आया और लोगों को ललकार ललकार कर हत्या की । यह समय अत्यन्त भीषण था ।
(इस दोहा में ज्योतिषीय काल गणना में अंक दायें से बाईं ओर लिखे जाते थे, सर (शर) = 5, वसु = 8, बान (बाण) = 5, नभ = 1 अर्थात विक्रम संवत 1585 और विक्रम संवत में से 57 वर्ष घटा देने से ईस्वी सन् 1528 आता है।)
श्री तुलसीदास जी कहते हैं कि सम्वत् 1585 विक्रमी (सन 1528 ई) अनुमानतः ग्रीष्मकाल में जड़ यवनों अवध में वर्णनातीत अनर्थ किये । (वर्णन न करने योग्य) ।
जन्मभूमि का मंदिर नष्ट करके, उन्होंने एक मस्जिद बनाई । साथ ही तेज गति उन्होंने बहुत से हिंदुओं की हत्या की । इसे सोचकर तुलसीदास शोकाकुल हुए ।
मीर बाकी ने मंदिर तथा राम समाज (राम दरबार की मूर्तियों) को नष्ट किया। राम से रक्षा की याचना करते हुए विदीर्ण हृदय तुलसी रोये ।
तुलसीदास जी कहते हैं कि अयोध्या के मध्य जहाँ राम मंदिर था वहाँ नीच मीर बाकी ने मस्जिद बनाई ।
तुलसीदास जी कहते है कि जहाँ रामायण, श्रुति, वेद, पुराण से सम्बंधित प्रवचन होते थे, घण्टे, घड़ियाल बजते थे, वहाँ यवनों की कुरआन और अज़ान होने लगे।
गोस्वामी तुलसीदास जी की इस रचना में जन्मभूमि विध्वंस का विस्तृत रूप से वर्णन किया किया है!
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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