शुक्र क्षेत्र का अच्छा विकसित होना अथवा जीवन रेखा का अपने मार्ग पर पूर्ण घुमाव द्वारा होकर चलना संतान या वंशवृद्धि क्षमता की संभावना बताता है।
जीवन रेखा का पूर्ण घुमाव लेकर चलने से वह शुक्र को विकसित एवं विस्तार होने का अवसर प्रदान करती है। शुक्र क्षेत्र से भोग क्षमता, पुरुषत्व एवं संतान या वंश वृद्धि का अध्ययन किया जाता है। अतः अंगूठे की जड़ एवं मणिबंध के मध्य स्थित आड़ी रेखाओं से इसी कारण संतान का अनुमान लगाया जाता है।
यदि जीवन रेखा संकुचित होकर चलती है तो यह शुक्र क्षेत्र को भी सीमित कर देती है और सीमित शुक्र से संतान संबंधी परेशानी देखी गई है।
हृदय रेखा का बिल्कुल सीधी डंडाकार तथा अंत में शाखा विहीन होना वात्सल्य एवं भावनाओं में कमी तथा वंशवृद्धि में अवरोध दर्शाता है जबकि कनिष्ठा के नीचे हृदय रेखा का शाखित या गौपुच्छाकार होना संतान होना दर्शाता है। अंगूठे की जड़ में यव का चिन्ह पुरुष संतान होना दर्शाता है।
पहला मणिबंध मेहराबदार होकर हथेली में शुक्र एवं चंद्र क्षेत्र के मध्य प्रवेश कर जाए तो यह संतान संबंधी बाधा या कष्ट दर्शाता है।
संतान रेखाओं का हुकनुमा मुड़ जाना अथवा काले रंग के चिन्ह से युक्त होना संतान हानि अथवा बाधा दर्शाता है। शुक्र पर्वत पर नीले हरे रंग की नसों का जाल दिखाई देना संतान कष्ट एवं देरी से संतान होना दर्शाता है। साथ ही स्त्रियों की मध्यमा के पहले पोर पर आड़ी रेखाएं गर्भनाश बताती है।
अत्यधिक विकसित चन्द्र पर्वत कन्या संतान की अधिकता दर्शाता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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