इसका उत्तर यह है कि वास्तव में भगवान उन्हीं पापियों को मारने के लिये आते हैं, जो भगवान के सिवा दूसरे किसी से मर ही नहीं सकते।
दूसरी बात, शुभ-कर्मों में जितना लगेंगे, उतना तो पुण्य हो ही जाएगा, पर अशुभ कर्मों में लगे रहने से यदि बीच में ही मर जाएंगे अथवा कोई दूसरा मार देगा तो मुश्किल हो जाएगी!
भगवान के हाथों मरकर मुक्ति पाने की लालसा कैसे पूरी होगी! इसलिये अशुभ कर्म करने ही नहीं चाहिये।
'धर्मसंस्थापनार्थाय'– निष्काम भाव का उपदेश, आदेश और प्रचार ही धर्म की स्थापना है। कारण कि निष्काम भाव की कमी से और असत् वस्तु को सत्ता देकर उसे महत्व देने से ही अधर्म बढ़ता है, जिससे मनुष्य दुष्ट स्वभाव वाले हो जाते हैं।
इसलिये भगवान अवतार लेकर आचरण के द्वारा निष्काम भाव का प्रचार करते हैं। निष्काम भाव के प्रचार से धर्म की स्थापना स्वतः हो जाती है।
धर्म का आश्रय भगवान हैं', इसलिये शाश्वत धर्म की संस्थापना करने के लिए भगवान अवतार लेते हैं। संस्थापना करने का अर्थ है- सम्यक् स्थापना करना।
तात्पर्य है कि धर्म का कभी नाश नहीं होता, केवल ह्रास होता है। धर्म का ह्रास होने पर भगवान पुनः उसकी अच्छी तरह स्थापना करते हैं।
'सम्भवामि युगे युगे'- आवश्यकता पड़ने पर भगवान प्रत्येक युग में अवतार लेते हैं। एक युग में भी जितनी बार जरूरत पड़ती है, उतनी बार भगवान अवतार लेते हैं।
'कारक पुरुष'' और संत-महात्माओं के रूप में भी भगवान का अवतार हुआ करता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024