Published By:धर्म पुराण डेस्क

अगर आप किसी भी वजह से अकेलापन महसूस कर रहे हैं, तो ये बातें आपके काम की हैं? 

समय पर शादी न कर पाने, जीवन भर के सफर के बीच में साथी द्वारा छोड़ दिये जाने या पति-पत्नी के आपस में नहीं बन पाने के कारण जब तलाक हो जाता है तो महिला इसी में एकाकी जीवन व्यतीत करने लगती है। 

परिस्थिति। लगभग 1 दशक पहले तक समाज में अकेली महिला का सम्मान नहीं किया जाता था और आमतौर पर वह अपने पिता, भाई या ससुराल वालों पर निर्भर रहती थी, लेकिन आज स्थिति अलग है। आज एक अकेली महिला आत्मनिर्भर, स्वावलंबी और अपने बल पर जीवन की हर परिस्थिति का सामना करने में सक्षम हो गई है। 

यह भी सच है कि हर रिश्ते की तरह पति-पत्नी के रिश्ते का भी जीवन में अपना महत्व होता है, लेकिन अगर आपके पास यह रिश्ता नहीं है, तो क्या आपको जीवन भर परेशान और तनाव में रहना सही नहीं है? यह अकेलापन केवल मन का भ्रम है, और कुछ नहीं। 

मैं अपनी इच्छानुसार जीने के लिए स्वतंत्र हूँ, एक इंसान और एक महिला होने का जीवन भर का सम्मान।" ये शब्द हैं प्रतिमा गोयल के, जो एक कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत 41 वर्षीय कुंवारी हैं. वह आगे कहती हैं, ''मैं आत्मनिर्भर हूं। मैं अपनी इच्छा के अनुसार खाती और पहनती हूं, अर्थात मैं अपना जीवन व्यतीत करती हूं। 

घर की स्थिति ऐसी थी कि मेरी शादी नहीं हो सकती थी, लेकिन जीवनसाथी की कमी मुझे कभी महसूस नहीं हुई, लेकिन मुझे लगता है कि अगर मेरी शादी हुई होती, तो शायद मैं इतनी आज़ाद और स्वतंत्र न होती। अगर मेरी शादी हुई होती तो मेरी जिम्मेदारी मेरी तरक्की के आड़े आती। मैंने अब तक 8 प्रमोशन लिए हैं। 

केंद्रीय विद्यालय से प्राचार्य के पद से सेवानिवृत्त हुईं विनीता  श्रीवास्तव का किसी समय पति से तलाक हो गया था। जब वह 45 साल के थे और उनका बेटा 15 साल का था। वह कहती हैं, "अकेलापन कैसा है? मैं आत्मनिर्भर था और अच्छी कमाई कर रहा था। उन्होंने अपने बेटे को अच्छी तरह से पाला और उसे डॉक्टर बनाया। 

अच्छा खाओ, अच्छा पहनो और खूब पियो, सारी उम्र अपनी मर्जी से जियो। क्या यह बुद्धिमानी नहीं है कि जो मेरे पास है उसकी सराहना न की जाए जो मेरे पास नहीं है या जो मेरे पास है? जब उसके पति ने उसे छोड़ा तब उसका बेटा 10 साल का और बेटी 8 साल की थी। उस वक्त उनकी उम्र 48 साल थी। उनके पति डीएसपी थे। 

एक दिन अचानक उन्हें अटैक आया और उनकी मौत हो गई। उस दिन को याद करते हुए वे कहती हैं, ''वाकई वो दिन मेरे लिए बहुत मुश्किल भरे थे. खुद को ठीक होने में थोड़ा वक्त लगा, लेकिन उसके बाद मैंने जिंदगी अपने दम पर जी। 

आज मेरा बेटा एक स्कूल का मालिक है और अमेरिका में है। जैसा कि मुझे अपने साथ बिताए पल याद आते हैं, लेकिन मुझे कभी किसी पुरुष की कमी महसूस नहीं हुई। मैं अपनी जिंदगी में बहुत खुश थी और आज भी हूं।'' 

साइकोलॉजिकल काउंसलर निधि तिवारी कहती हैं, ''अकेलापन और कुछ नहीं बल्कि मन का भ्रम है। बहुत अच्छी महिलाएं एक साथी और एक खुशहाल परिवार होने के बावजूद अकेलापन महसूस करती हैं। 

परिवार के पालन-पोषण के लिए और शारीरिक जरूरतों के लिए पति जरूरी है, लेकिन मन और विचार मेल नहीं खाते तो क्या उसे अकेलापन माना जा सकता है? इसलिए अकेलेपन की भावना को कभी भी मन में नहीं आने देना चाहिए।'' 

अकेली महिलाएं ज्यादा सफल कुछ समय पहले एक दैनिक समाचार पत्र में एक सर्वेक्षण प्रकाशित हुआ था, जो अविवाहित, तलाकशुदा और विधवा महिलाओं पर किया गया था, इस सर्वेक्षण के अनुसार 93 प्रतिशत अकेली महिलाओं का मानना ​​है कि गृहणियों की तुलना में उनका अकेलापन जीवन के सभी क्षेत्रों में सफल होने में अधिक सहायक होता है। आइसोलेशन के कारण उन्हें आजादी से जीवन जीने का अधिकार मिला है।

65 प्रतिशत महिलाएं जीवन में पति की आवश्यकता को अनावश्यक मानती हैं और वे विवाह के लिए बिल्कुल भी इच्छुक नहीं होती हैं।

मजबूरी में शादी करने की बजाय उसने एक अनाथ बच्चे को गोद लेना बेहतर समझा। उसे कभी खालीपन महसूस नहीं होता। वह अपने टेस्ट के अनुसार सामाजिक और सांस्कृतिक मनोरंजन सुविधाओं का लाभ उठाती है। बेफिक्र होकर चैन की नींद सोती है। इस सर्वेक्षण के अनुसार जीवित पुरुषों की संख्या महिलाओं की संख्या की तुलना में बहुत कम पायी गयी।

बढ़ती एकल महिलाओं की प्रवृत्ति: पिछले दशक की तुलना में अकेले रहने वाली महिलाओं की संख्या में 39 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। विदेशों में अकेली रहने वाली महिलाओं की मौजूदगी लंबे समय से समाज में मौजूद है। 

यूं तो महिलाएं विदेशों में भी उपेक्षा और उत्पीड़न की शिकार नहीं होती हैं, लेकिन अब पिछले 1 दशक में भारतीय समाज में भी महिलाओं की स्थिति में तेजी से सुधार हुआ है। हाल ही में प्रकाशित पुस्तक 'ऑल द सिंगल लेडीज अनमैरिड वीमेन एंड राइज ऑफ एन इंडिपेंडेंट नेशन' की लेखिका रेबेका टेस्टर के अनुसार वर्ष 2009 के औसत में इस दशक में एकल महिलाओं की बढ़ती संख्या समाज में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाती है। यह भी सच है कि हर रिश्ते की अपनी मर्यादा और महत्व होता है। 

अकेलापन मन की चाहत मात्र है, लेकिन उसकी सबसे बड़ी शर्त यह है कि स्त्री अगर आत्मनिर्भर नहीं है तो उसे अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। निर्भरता के रूप में हमेशा दर्दनाक होता है। 

आत्मनिर्भर होने के कारण वह किसी के दबाव में नहीं आता और अपनी ओर उंगली उठाने वालों को ठीक-ठीक जवाब देने में सक्षम होता है। 

विनीता श्रीवास्तव कहती हैं, 'अकेली रहने वाली महिलाओं को अपना आत्मबल मजबूत रखना चाहिए। आपने जो जीवन चुना है, उसमें खुश रहें। किसी को भी कभी भी अपने पति से शादी करने के बारे में नहीं सोचना चाहिए ताकि उसका दिमाग कमजोर हो जाए।'' 

जीवन में जब भी ऐसी कोई घटना आए, तो बस इसे अपने दिमाग की उपज समझिए और इस तथ्य को स्वीकार कर जीवन के साथ आगे बढ़िए। जीवन ही जीवन का नाम है। किसी पर निर्भर नहीं। स्वयं को भीतर से मजबूत बनाना चाहिए और अपनी शक्ति का उपयोग सामाजिक और रचनात्मक कार्यों में करना चाहिए। कुछ ऐसे संसाधन भी खोजें, जिनसे आप जुड़ सकती हैं।
 

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