सृष्टि में कोई भी ग्रह इस जीव जगत् का ना तो शत्रु है और ना ही मित्र। जिस प्रकार किसी भी देश का मुख्य न्यायाधीश किसी को सताता नहीं है अपितु वह तो केवल न्याय करता है ताकि अन्यायियों पर अंकुश लगा सके। यदि मुख्य न्यायाधीश के परिवार के किसी सदस्य द्वारा दंडनीय अपराध किया जाता है, तो उस अपराधी की सजा भी एक सामान्य अपराधी की तरह दी जावेगी। जिस प्रकार मुख्य न्यायाधीश की नजर में अपराधी-अपराधी है, ना कि कोई भाई-बहन रिश्तेदार है। बस, कुछ इस तरह की व्यवस्था सृष्टि के न्यायाधीश शिव के अवतार शनि की है।
जब तक हमारे पिछले जन्मों के पापों का क्षय नहीं होता, तो हम इस जन्म में शनि एवं राहु के दुष्प्रभाव से पीड़ित होकर जीवन दुःखमय बना लेते हैं। शनि एवं दुःख से मुक्ति हेतु प्रत्येक शनिवार को सूर्यास्त के बाद 27 शनिवारों तक विभिन्न शास्त्रोक्त औषध तैलों जैसे चिरायु महानारायण तेल, महाविषगर्भ तेल, लिनिमेन्ट, पोषक तेल सभी को बराबर मात्रा में मिलाकर भगवान शिव के किसी जीर्ण-शीर्ण मंदिर में रुद्राभिषेक कराना चाहिए एवं सरसों या तिल्ली के तेल से बने पकवान का प्रसाद चढ़ाकर जानवरों को भी खिलाना चाहिए।
शनि के दुष्प्रभाव एवं शनि से पीड़ित लोगों की विशेषताएं निम्नानुसार हैं-
शरीर में शिथिलता, सुस्ती एवं हमेशा आलस्य रहना, हमेशा तनावग्रस्त रहना, हाथ पैरों, जोड़ों में अचानक असहनीय दर्द होना, मलिनता, कुटिलता, अत्यधिक क्रोध रिश्रम के अनुसार आय न होना, असत्य भाषण, अवैध सम्बन्ध और सन्तति, दुष्टों से मित्रता या हमेशा वाद-विवाद होना, श्मशान साधना का प्रयास, आंतों संबंधी रोग, दृष्टि दोष, चेहरे का भद्दापन, कृष्णवर्ण, नीच स्त्रियों के प्रति झुकाव, दूसरों को वाणी से पीड़ा पहुँचाना, कठोरता, बहुत ही कंजूस प्रवृत्ति, हमेशा ठगे जाना, आंतरिक गर्मी, पत्थर से आघात, पिशाच आदि का प्रकोप और अचानक बार-बार गहन मानसिक कष्ट शनि से विचारणीय हैं।
यदि उपरोक्त परेशानियाँ आप महसूस कर रहे हैं, तो निश्चित ही शनि आपसे प्रसन्न नहीं है। अत: शनि को प्रसन्न करने हेतु उपरोक्त उपाय करें। निश्चित ही लाभ होगा और सुख-समृद्धि, सौभाग्य का आपके घर में प्रवेश होगा। जीवन में हर क्षेत्र में सफलता, शिव कृपा और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करेंगे।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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