क्रोध पर नियंत्रण रखें, सकारात्मक विचार लावें, किसी के बुरा-भला कहने या करने पर ये लोग भला ही सोचें। हमेशा व्यस्त रहने की आदत डालें, कुछ न कुछ कार्य अध्ययन या लेखन करते रहें, तो सफल हो जाते हैं। इन्हें जीवन में सफलता आसानी से नहीं मिला करती, पूजा-आराधना का फल भी तुरंत नहीं मिलता लेकिन जब सफलता और ईश्वरीय कृपा इन्हें मिलती है, तो लोग दाँतों तले उंगली दबा लेते हैं।
अतः शिव भक्ति और केतु को प्रसन्न करने का प्रयास अंतरआत्मा से सदैव करते रहना चाहिए। भगवान शिव के प्रति पूर्ण आस्था और श्रद्धा रखनी चाहिये क्योंकि-
शिव है श्रद्धा के ही भूखे, भोग लगे, चाहे रूखे-सूखे।
(1). केतु धरती पर पड़ा हुआ धड़ है। वह आस्तिक है तथा प्रभु से प्रार्थना कर सुख-सम्पदा व मोक्ष पाने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
(2). अध्यात्मवाद, दर्शन तथा वेदान्त में केतु की सहज रुचि होती है। वह तांत्रिक साधना से सिद्धि प्राप्त करने को उत्सुक रहता है।
(3). केतु दुबला-पतला, जातिच्युत व धूम्रपान करने वाला होता है। केतु साहस, बल, पराक्रम, परिश्रम से सफलता पाने में रुचि लेता है।
(4). केतु के स्वभाव में सेवा, त्याग, निस्वार्थ भावना, वैराग्य सरीखे भाव उसके दैवीय गुणों की वृद्धि करते हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि केतु दुख व पीड़ा देकर मनुष्य के मन में अनासक्ति व वैराग्य के भाव को पुष्ट करता है।
(5). कभी केतु के कारण कोई कृपण व्यक्ति अपने धन से वंचित हो जाता है, कभी माता-पिता को अपनी संतान का वियोग सहना पड़ता है, कभी प्रिय पत्नी अपने प्रेमी के साथ भाग जाती है अथवा मृत्यु को प्राप्त होती है। दुःख, पीड़ा व संताप को बढ़ाकर केतु बहुधा जातक को भगवान की ओर मोड़ता है।
(6). केतु कभी बंधन देता है, तो कभी किसी समय अपनों से दूर रहने की विवशता देता है। केतु बहुधा मन पर गंभीर आघात देकर, संसार की नश्वरता का पाठ पढ़ाता है।
(7). केतु आध्यात्मिक प्रगति और आध्यात्मिक बल बढ़ाने तथा पुण्य संचय की भूख जगाता है। ऐसा जातक सभी भौतिक सम्बन्धों को तोड़कर आध्यात्मिक सुख पाना चाहता है।
(8). कुछ विद्वानों ने केतु को ध्वजा कहां है। वस्तुतः केतु जातक को, भौतिक वासनाओं के धरातल से ऊपर उठाकर, आध्यात्मिक ऊँचाइयों की ओर ले जाता है।
(9). केतु सभी वस्तुओं में छिपी दिव्यता या अलौकिक शक्ति का प्रतीक है। केतु जीव को सृष्टि व सृष्टा से जोड़ने में सेतु का काम करता है।
(10). कभी केतु धार्मिक कट्टरता, अंधविश्वास, जाति चिन्ह महत्ता, आडम्बर पूर्ण धार्मिक समारोह व तीर्थाटन में रुचि लिया करता है।
(11). केतु जातक को न्यायप्रिय, विवाद सुलझाने में कुशल, गहन चिंतन-मनन करने वाला तथा आध्यात्मिक चिकित्सक बनाता है।
(12). कोई जातक कन्दरा में रहकर भजन-पूजन करने वाला, आश्चर्यजनक काम करने में कुशल तथा धन-संग्रह व उसके उपयोग में, केतु के कारण, यश व मान पाने वाला होता है।
(13). अनेक विद्वानों ने केतु को देवोपासना, मंत्रज्ञान, मौन व्रत, वेदान्त, आत्मज्ञान, वैराग्य तथा तप का कारक कहा है।
(14). कोई जातक केतु के कारण पित्त पीड़ा, आँख दर्द, शत्रु पीड़ा या उदर रोग पाने वाला होता है। कभी फोड़े-फुंसी की परेशानी देता हैं। कभी घाव, पत्थर, मिलता है। काँटा अथवा धार वाले हथियार से कष्ट मिलता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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