व्यक्ति में आराम एवं सुख-चैन भरी जिंदगी की चाह एक स्वाभाविक इच्छा है, लेकिन इसकी अधिकता जीवन पर प्रतिकूल असर डालती है। ऐसे में व्यक्ति के अंदर जो संभावनाएं भरी होती हैं, उनका प्रकटीकरण नहीं हो पाता।
आज का मनोविज्ञान कहता है कि मानव के अवचेतन मन में अपार संभावनाएं हैं। भारतीय अध्यात्म तो इससे भी आगे सुपर चेतन की बात करता है और इसके आधार पर सदैव से प्रतिपादन करता रहा है कि मनुष्य के अंदर वह सब कुछ बीजरूप में निहित है, जो स्वयं परमात्मा में है, लेकिन इसका प्रकटीकरण, इसकी अभिव्यक्ति की अपनी प्रक्रिया है, जो चुनौतियों से भरे मार्ग से होकर गुजरती है।
जो चुनौतियों का सामना करना जानते हैं, हर विषम परिस्थिति का साहस के साथ मुकाबला करते हैं, वे ही वास्तविक सफलता के अधिकारी बन पाते हैं, जिसकी आलसी एवं आरामतलब व्यक्ति कल्पना भी नहीं कर सकता। उसके हिस्से में आती है सिर्फ असफलता, हताशा और निराशा वस्तुतः चुनौतियों से बचने वाला व्यक्ति अपने कम्फर्ट जोन में ही अटका रहता है, जहां उसकी शक्ल संभावनाओं पर तुषारापात होता है।
कहावत भी है कि कम्फर्ट जोन व्यक्ति के उत्कर्ष का कफन है, यह व्यक्तित्व के विकास में कैंसर रोग जैसा है। यह व्यक्ति की अंतर्निहित शक्तियों को प्रकट नहीं होने देता और उसमें जन्म से विद्यमान क्षमताओं एवं संभावनाओं को कुंद कर देता है। व्यक्ति जीवन में उन्नति के जिन शिखरों का आरोहण कर सकता था, वे सपने बनकर रह जाते हैं. कभी भी साकार नहीं हो पाते।
कम्फर्ट जोन एक ऐसी मनोवैज्ञानिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति चीजों से परिचित अनुभव करता है, सुख-चैन भरी सुरक्षित अवस्था में होने का बोध करता है तथा स्थिति पर नियंत्रण का आभास पाता है, लेकिन वास्तव में यह एक डरें का जीवन होता है, जिसमें उत्कर्ष के लिए आवश्यक सकारात्मक तनाव एवं उत्प्रेरणा की न्यूनता रहती है।
जबकि व्यक्तिगत विकास के लिए इस कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने की आवश्यकता होती है और कहावत भी प्रचलित है कि अर्थपूर्ण जीवन कम्फर्ट जोन के बाहर ही प्रारंभ होता है।
कम्फर्ट जोन से बाहर निकलने का अर्थ ऐसे कार्यों को हाथ में लेना है, जो आपको एक ढर्रे के जीवन से बाहर निकालते हैं, जिनमें आप सहज अनुभव नहीं करते, जो आपकी क्षमता एवं योग्यता को चुनौती देने वाले प्रतीत होते हैं, लेकिन जिनको आजमाने से आपकी अंतर्निहित क्षमताएँ प्रकट होती हैं। हालांकि यह भी एक कला है, जिसमें विवेक के आधार पर चुनौतियों का वर्णन किया जाता है। इसमें ऐसी अतिवादिता या हठवादिता से सावधान रहना होता है, जिसके परिणाम स्वयं के लिए घातक हो या समाज के लिए हितकर न हों।
इस तरह कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर चुनौतियों का सामना न केवल उत्पादकता को बढ़ाता है, बल्कि इससे व्यक्ति की रचनात्मक क्षमता में भी वृद्धि होती है और भविष्य में आने वाली अनिश्चितताओं से जूझने की क्षमता बढ़ती है। इस तरह नित नई चुनौतियों का सामना करने, इनसे कुछ सीखने, व्यक्तित्व के नए आयामों के उद्घाटन के साथ जीवन - विकास पथ पर बढ़ती एक रोमांचक यात्रा बन जाता है। निश्चित रूप में इसके साथ प्रसन्नता की बढ़ोत्तरी होती है और जीवन अधिक संतोषदायक बनता है।
इस तरह जीवन में उत्कर्ष के इच्छुक व्यक्तियों के लिए एक ही रास्ता है, वह है चुनौतियों का सहर्ष सामना करते हुए नित नवीन बुलंदियों को हासिल करना। अपने भय-दुर्बलताओं को आँखों में देखकर इन्हें काबू करना।
यदि चुनौतियां नहीं हैं तो स्वयं ही इनका निर्माण करना, ऐसी परिस्थितियों में स्वयं को झोंक देना। ऐसे साहसिक पथ पर बढ़ते हुए व्यक्ति नित नए शिखरों का आरोहण करता है और संतोष भरी उपलब्धि के गहन भाव के साथ स्वयं को धन्य अनुभव करता है; क्योंकि जो वह कर सकता था, वह उसने किया।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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