 Published By:दिनेश मालवीय
 Published By:दिनेश मालवीय
					 
					
                    
भारत की धर्म-संस्कृति बहुत अनूठी है. सनातन धर्म-संस्कृति में अनेक ऐसे विधि-विधान और अनुष्ठान हैं, जिन्हें लगभग सभी लोग करते तो हैं, लेकिन उनके पीछे का कारण उन्हें पता नहीं होता. मंदिरों में तीन बार भगवान की आरती होती है. ईश्वर की आरती तो की ही जाती है, लेकिन विशेष अवसरों पर माता और बहने अपने भाई की आरती करती हैं. ख़ास अवसरों पर पत्नी भी पति की आरती करती है. गुरुदेव की भी आरती की जाती है. नदियों और प्रकृति के बहुत से पवित्र माने जाने वाले अवयवों की भी आरती होती है. हर धार्मिक अनुष्ठान का समापन आरती के साथ ही होता है.
सनातन धर्म में ईश्वर की साकार उपासना का बहुत सुविचारित प्रावधान है. इसके पीछे एक पूरा मनोविज्ञान और दर्शन है. ईश्वर की पूजा के बाद आरती का बहुत महत्त्व है. सनातन धर्म में हमारे लिए वे पत्थर या धातु की प्रतिमा नहीं, बल्कि जीवंत ईश्वर स्वरूप ही होती हैं. इस रूप में रात में और दोपहर में उनका शयन कराया जाता है और सुबह तथा शाम को जगाया जाता है. विभिन्न पवित्र नदियों की आरती के दृश्य को इतने अलौकिक होते हैं, कि उनमें शामिल होने या उन्हें देखने वाले लोगों के मन अलौकिक आनंद से भर जाते हैं.
सुबह भगवान् को जगाया जाता है. उन्हें स्नान कराकर भोग लगाया जाता है. उनकी पूजा करने के बाद उनकी आरती की जाती है. इसमें ईश्वर के विग्रहों की पूजा-आरती की जाती है. पहली आरती प्रात:, दूसरी आरती शाम को और तीसरी आरती रात को की जाती है. भक्त-कवियों ने सभी देवताओं की बड़ी सुंदर आरतियां लिखी हैं, जिन्हें संगीतबद्ध रूप से कोरस में गाया जाता है. आरती के समय घंटे-घड़ियाल, नंगाड़े, शंख और अन्य सुरीले वाद्ययंत्र मजाये जाते हैं. आरती में उपस्थित लोग ताली भी बजाते हैं, जिसका भी अपना महत्त्व है. आरती के स्वर जहाँ-जहाँ तक जाते हैं, सनातन धर्मियों के कान में अमृत जैसा घुल जाता है.
ये सभी बातें मिलकर मनुष्य के मन-मस्तिष्क को शान्ति प्रदान करने के लिए एक तरह से थेरेपी का काम करती हैं. आइये, हम यह बताते हैं, कि आरती क्यों की जाती है. आरती में दीपक और कपूर जलाकर विग्रह या जिसकी भी पूजा की जा रही हो, उसके समक्ष दायीं तरफ घुमाई जाती है. कपूर जलने से एक बहुत सात्विक सुगंध उत्पन्न होती है. आरती संपन्न होने के बाद हम अपने हाथ से आरती के दीपक के ऊपर हाथ घुमाकर आरती लेते हैं. ऐसा करने से मन एक अद्भुत सात्विक भाव से भर जाता है.
कपूर को हमारी आन्तरिक प्रवृत्तियों का द्योतक माना गया है. जिस तरह अग्नि से कपूर जल जाता है, उसी तरह जब ज्ञान रुपी अग्नि से ये प्रवृत्तियां जलकर हमारे शुद्ध, सच्चिदानंद स्वरूप को उजाकर करती हैं. आरती की लौ की तरह हमारी वासनाएं जल जाती हैं. जिस तरह मंदिर के पुजारी आरती कि लौ में चमकती हुयी प्रतिमा के दर्शन कराते हैं, उसी तरह सद्गुरु भी हमें हमारे वास्तविक दिव्य स्वरूप से परिचित करते हैं. आत्मा ज्योतिस्वरूप है. आरती के दीपक की ज्योति आत्मा का ही स्वरूप है. इसके अलावा दीपक की लौ सदा ऊपर की ओर जाती है. यह चेतना के ऊपर उठने का प्रतीक है.
इसके अलावा, सूर्य, चंद्रमा, नक्षत्र और अग्नि सहज रूप से प्रकाशमान हैं. इस सभी प्रकाश के स्रोत ईश्वर हैं. पूरी सृष्टि उन्हीं के प्रकाश से आलोकित है. वेदों में ईश्वर को प्रकाश रूप कहा गया है. सूर्य को बुद्धि का, चंद्रमा को मन का और अग्नि को वाणी का देवता माना गया है. ईश्वर परमचेतना स्वरूप हैं, जिनसे सारा जगह-चराचर प्रकाशमान है. जब हम युद्ध में जाते हुए वीर, विजय प्राप्त करके लौटे योद्धा, सद्गुरु, संत, भाई, पिता, पति की आरती उतारते हैं, तो उनके भीतर स्थित दिव्य चेतना का उन्हें अनुभव कराते हैं. उन्हें यह अहसास कराते हैं, कि आप कोई साधारण मानव नहीं हैं. आप दिव्य हैं. जिसकी आरती की जाती है, उसमें अपने भीतर एक नया आत्मविश्वास जागता है. अब आप जब भी आरती में शामिल हों या आरती करें, तो इस भाव से परिपूर्ण होकर करें. इससे आरती का आनंद कई गुणा बढ़ जाएगा. यदि आप अपने आसपास मंदिर में आरती में शामिल नहीं होते, तो आप एक बहुत अद्भुत आनंद से चूक जाते हैं. आरती में शामिल होने की कोशिश अवश्य करें.
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024 
                                यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024 
                                लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024 
                                संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024 
                                आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024 
                                योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024 
                                भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024 
                                कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                 
                                
                                