Published By:धर्म पुराण डेस्क

आरती का महत्व: जानिए पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती और क्या है इसका धार्मिक महत्व

आरती का महत्व सनातन शास्त्रों में दिन में पांच बार आरती करने का नियम है।

आरती करते समय साधक का मन स्थिर रहना चाहिए। ईश्वर भक्ति की भावना होनी चाहिए। 

भक्तों पर भगवान की विशेष कृपा होती है। भक्ति में पूजा और उपवास शामिल हैं। वहीं आरती के साथ पूजा का समापन होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पूजा के अंत में आरती क्यों की जाती है?

धार्मिक पंडितों के अनुसार आरती पूजा की एक विधि है। इस समय थाली में घी, कपूर और बाती जलाकर भगवान की आरती की जाती है। आइए विस्तार से जानते हैं भगवान की आरती करने का धार्मिक महत्व-

धार्मिक महत्व-

जो भक्त आरती करता है, उसे हजारों यज्ञ करने के बराबर अक्षय फल मिलता है।

आरती करते समय साधक का मन स्थिर रहना चाहिए। ईश्वर भक्ति की भावना होनी चाहिए। सनातन शास्त्र में दिन में पांच बार आरती करने का नियम है। इसके लिए पूजा की थाली में शुद्ध घी में लिपटे दीपक जलाकर आरती की जाती है। पांच दीपों से आरती करने को पंच प्रदीप आरती कहते हैं। 

पूजा के अंत में क्यों की जाती है आरती, इसका महत्व, यहां पढ़ें

शास्त्रों में पूजा में आरती का विशेष महत्व बताया गया है। आरती हिंदू पूजा परंपरा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।

पूजा के बाद क्यों की जाती है आरती, क्या है इसका महत्व..

हम सभी ने भगवान की पूजा करते हुए आरती जरूर की होगी। आरती पूजा का अभिन्न अंग है। सच्चे मन और भक्ति से की जाने वाली आरती बहुत ही लाभकारी मानी जाती है। लेकिन क्या आप जानते हैं पूजा में आरती का क्या महत्व है? शास्त्रों में पूजा में आरती का विशेष महत्व बताया गया है। आज हम आपको बता रहे हैं पूजा में आरती का महत्व।

यह एक धार्मिक मान्यता है कि यदि कोई व्यक्ति मंत्र नहीं जानता, पूजा की विधि नहीं जानता, लेकिन आरती करता है, तो भगवान उसकी पूजा को पूरी तरह से स्वीकार करते हैं। आरती का महत्व सर्वप्रथम "स्कन्द पुराण" में वर्णित है। आरती हिंदू पूजा परंपरा का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है।

किसी भी प्रकार की पूजा, यज्ञ-हवन, पंचोपचार-षोडशोपचार पूजन आदि के बाद अंत में आरती की जाती है। आरती आम तौर पर पांच दीपों के साथ की जाती है, जिसे 'पंचप्रदीप' भी कहा जाता है। 

पूरे परिवार के साथ रोज सुबह-शाम आरती करनी चाहिए। आरती घर और आसपास के वातावरण को भी शुद्ध करती है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है। 

आरती की थाली चांदी, पीतल या तांबे की बनी हो फिर उसमें आटे या किसी धातु का दीपक रखना चाहिए। इसमें घी या तेल मिलाकर उसमें रुई का दीपक रखा जाता है। 

यदि कपास की बाती उपलब्ध न हो तो कपूर का भी प्रयोग किया जा सकता है। अब थाली में कुछ फूल, अक्षत और मिठाई रख दी जाती है। कई मंदिरों में पुजारी केवल घी का दीपक जलाकर आरती करते हैं।

आरती न केवल पूजा का एक हिस्सा है, बल्कि हमारी संस्कृति को आगे बढ़ाने का भी प्रतिनिधित्व करती है क्योंकि आरती करने के बाद, यह आरती पूजा में शामिल लोगों द्वारा की जाती है। यह दर्शाता है कि ईश्वर हम सभी में है और हम सभी उसके सामने झुकते हैं।


 

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