धरती पर जीवन संतुलित बना रहे, आबाद रहे, इसके लिए प्रकृति ने जीव कोशिका के प्रादुर्भाव के साथ ही पादप कोशिका की भी रचना की थी। प्रकृति को यह भली भाँति ज्ञात था कि अपने अस्तित्व के लिए दोनों ही एक दूसरे पर आश्रित रहेंगे। यह सहजीवन जितना सहज होगा, दुनिया में उतनी ही खुशहाली-हरियाली रहेगी।
कई हजार सालों तक पादप जगत व जीव जगत के बीच यह संतुलन बरकरार रहा, लेकिन धीरे-धीरे जब इंसानी आबादी विस्तार लेने लगी और उसके अस्तित्व के लिए प्राकृतिक संसाधन कम पड़ने लगे, तो इसके लिए पेड़- पौधों को काटा जाने लगा।
पेड़-पौधों की यह काटने से धरती का प्राकृतिक संतुलन सबसे अधिक प्रभावित हुआ, इसके कारण धरती की जलवायु प्रभावित हुई, प्रदूषित हुई, असंतुलित हुई और इसका भयंकर परिणाम आज मौसमों पर एवं जलवायु पर पड़ता दिख रहा है, जिसके कारण कहीं अतिवृष्टि, कहीं अनावृष्टि, कहीं ओलावृष्टि, कहीं अत्यधिक ठंड तो कहीं अत्यधिक गरमी, कहीं भूकंप, तो कहीं समुद्री तूफान, तो कहीं भयंकर आँधी ने अपना कहर मचाया हुआ है।
धरती के इस जलवायु - असंतुलन को संतुलित करने का कार्य एकमात्र पेड़-पौधे ही कर सकते हैं। ये हमारे वातावरण को न केवल शुद्ध करते हैं, अपितु जलवायु के बीच आवश्यक संतुलन भी बैठाते हैं। पेड़-पौधों की शाखाएँ व पत्ते हमें छाया तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही ये हवा की रफ्तार को भी तेज करने में सहायक होते हैं।
यह पेड़-पौधों के महत्व को समझाने वाला हिंदी आर्टिकल है, जिसमें पेड़-पौधों के बिना हमारे जीवन और प्राकृतिक संतुलन के बारे में विचार किया गया है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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