जय श्रीराम,
परिदृश्य अतीत का हो या वर्तमान का, जनमानस ने रामजी के आदर्शों को खूब समझा-परखा है! लेकिन भगवान राम की प्रासंगिकता को संक्रमित करने का काम भी हमारे धर्म धुरंधरों ने ही किया है! रामजी का पूरा जीवन आदर्शों, संघर्षों से भरा पड़ा है, उसे अगर सामान्यजन अपना ले, तो उसका जीवन स्वर्ग बन जाए!
लेकिन जनमानस तो सिर्फ रामजी की पूजा में व्यस्त है, यहाँ तक की हिंसा से भी उसे परहेज नहीं है! राम सिर्फ एक आदर्श पुत्र ही नहीं, आदर्श पति और भाई भी थे! आज हम न तो आदर्श पति बन पाते है, और न ही आदर्श पुत्र या भाई बन पाते!
जो व्यक्ति संयमित, मर्यादित और संस्कारित जीवन जीता है, मर्यादा पुरुषोत्तम राम के आदर्शों की झलक उसी में परिलक्षित हो सकती है! राम के आदर्श, लक्ष्मण रेखा की उस मर्यादा के समान है, जो लाँघी तो अनर्थ ही अनर्थ, और सीमा की मर्यादा में रहे तो खुशहाल और सुरक्षित जीवन!
प्रजा का सच्चा जनसेवक राम जैसा आदर्श सच्चरित्र आज के युग में दुर्लभ जैसा ही प्रतीत होता है! हमारे आज के जनप्रतिनिधि, जनसेवा की बजाए, स्वसेवा में ज्यादा विश्वास करते हैं! जबकि भगवान राम ने खुद मर्यादा का पालन करते हुए स्वयं को तकलीफ और दुःख देते हुए प्रजा को सुखी रखा, क्योंकि उनके लिए जनसेवा सर्वोपरि थी!
हरि अनंत हरि कथा अनंता। कहहिं सुनहिं बहुबिधि सब संता।।
जब जब होइ धरम कै हानी। बाढ़इ असुर अधम अभिमानी।।
तब तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
जब जब पृथ्वी पर अधर्म फैला, मानवता भटक गयी, तब तब धरती के उद्धार और लोक कल्याण के लिये ईश्वरीय शक्ति प्रगट हुई। त्रेता युग के अवतार श्री राम का जीवन ऋषि, मुनियों और जनसाधारण को सदा से प्रेरणा देता आ रहा है, मार्गदर्शन करता आ रहा है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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