पूजा का आदिकाल संकल्प के साथ होता है, जिससे पूजन का पूर्ण फल प्राप्त हो सकता है। इस संकल्प का अर्थ है कि पूजा करते समय हम अपनी श्रद्धा, भक्ति, और समर्पण के साथ ईश्वर की आराधना कर रहे हैं और हमारी मनोकामनाएं ईश्वर की कृपा से पूरी होगी।
संकल्प लेने की विधि:
ध्यान और शुद्धि: पूजा करने से पहले, हमें ध्यान में रहना चाहिए और अपने शरीर-मन को शुद्ध करने के लिए एक क्षण के लिए जल से स्नान करना चाहिए।
गणेश पूजा: संकल्प का शुरुआत गणपति बप्पा की पूजा से होती है। हाथ में जल लेकर गणेश जी का ध्यान करते हुए संकल्प लेना चाहिए। गणेश जी को हमारे कार्यों में सफलता प्रदान करने के लिए प्रार्थना करना चाहिए।
संकल्प लेना: गणेश पूजा के बाद हमें हाथ में जल लेकर संकल्प लेना चाहिए। संकल्प में हमें यह प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि हम ईश्वर की भक्ति में निरंतर रहेंगे और पूजा को पूरा करेंगे।
अपनी मनोकामनाएं: संकल्प के दौरान हमें अपनी मनोकामनाओं को ईश्वर के सामने रखना चाहिए और उन्हें पूरा होने की प्रार्थना करनी चाहिए।
अन्त में प्रणाम: संकल्प लेने के बाद, हमें अपने हृदय से ईश्वर की ओर से प्रणाम करना चाहिए और उनसे आशीर्वाद मांगना चाहिए।
संकल्प का लेना पूजा क्रिया को पूर्णता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बनाता है, जिससे भक्त को अधिक आत्म-समर्पण और ध्यान मिलता है। इससे पूजा में सार्थकता और भक्ति का अनुभव होता है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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