Published By:धर्म पुराण डेस्क

संयम का महत्व

संयम एक महत्वपूर्ण गुण है जो हमें जीवन में सफलता प्राप्त करने में मदद कर सकता है। संयम का मतलब है अपने विचारों, भावनाओं, और इच्छाओं को नियंत्रित करना और सही दिशा में उन्हें उपयोग करना। संयम के बिना, हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल नहीं हो सकते हैं।

सरकार का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह संयम विषय पर शिक्षा प्रदान करे और विद्यार्थियों को सावधान करे कि वे संयम बनाए रखें। संयम के माध्यम से, विद्यार्थी अपने मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बना सकते हैं और अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में मदद कर सकते हैं।

महापुरुषों के जीवन से हमें संयम का महत्व समझ में आता है। उन्होंने अपने जीवन में संयम बनाए रखने के माध्यम से अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया।

उदाहरण के रूप में, अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक इमर्सन के गुरु थोरो ब्रह्मचर्य के पालन करने से उन्होंने अपने जीवन को महत्वपूर्ण बनाया और अपने उपनिषद्गत ज्ञान को बढ़ावा दिया।

आध्यात्मिक साहित्य का अध्ययन करने से हम अपने जीवन में संयम को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित हो सकते हैं। संयम के माध्यम से हम अपने आत्मा को जानने और समझने का मार्ग ढूंढ सकते हैं, और इससे हमारे जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है।

संयम विकल्पों की ओर ध्यान केंद्रित करने की क्षमता है, जिससे आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अपने मार्ग को स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। संयम आत्म-नियंत्रण और स्वाध्याय की आदत को बढ़ावा देता है, जिससे आप अपने लक्ष्यों की प्राप्ति में सफल हो सकते हैं।

इसलिए, संयम एक महत्वपूर्ण गुण है जो हमें अपने जीवन में पूरी तरह से विकसित करना चाहिए। इसके माध्यम से हम अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में सफल हो सकते हैं और अपने जीवन को सफलता और सुख की दिशा में बदल सकते हैं। संयम पर लिखा गया साहित्य पहुँचायें। सरकार का यह नैतिक कर्तव्य है कि वह संयम विषय पर शिक्षा प्रदान कर विद्यार्थियों को सावधान करे ताकि वे तेजस्वी बनें।

जितने भी महापुरुष हुए हैं, उनके जीवन पर दृष्टिपात करो तो उन पर किसी-न-किसी सत्साहित्य की छाप मिलेगी। अमेरिका के प्रसिद्ध लेखक इमर्सन के गुरु थोरो ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। उन्होंने लिखा है : "मैं प्रतिदिन गीता के पवित्र जल से स्नान करता हूँ। यद्यपि इस पुस्तक को लिखने वाले देवता को अनेक वर्ष व्यतीत हो गये लेकिन इसके बराबर की कोई पुस्तक अभी तक नहीं निकली है।"

योगेश्वरी माता गीता के लिए दूसरे एक विदेशी विद्वान, इंग्लैण्ड के एफ. एच. मोलेम कहते हैं: "बाइबिल का मैंने यथार्थ अभ्यास किया है। जो ज्ञान गीता में है, वह ईसाई या यहूदी बाइबिलों में नहीं है। मैं ईसाई होते हुए भी गीता के प्रति इतना आदर- मान इसलिए रखता हूँ कि जिन गूढ़ प्रश्नों का हल पाश्चात्य वैज्ञानिक अभी तक नहीं कर पाये, उनका हल इस गीता ग्रंथ ने शुद्ध और सरल रीति से दे दिया है। 

गीता में कितने ही सूत्र अलौकिक उपदेशों से भरपूर देखे, इसी कारण गीताजी मेरे लिए साक्षात् योगेश्वरी माता बन गयी हैं । विश्व भर के सारे धन से भी न मिल सके, भारतवर्ष का यह ऐसा अमूल्य खजाना है।"

सुप्रसिद्ध पत्रकार पॉल ब्रिन्टन सनातन धर्म की ऐसी धार्मिक पुस्तकें पढ़कर जब प्रभावित हुआ तो वह हिन्दुस्तान आया और यहाँ के रमण महर्षि जैसे महात्माओं के दर्शन करके धन्य हुआ। देशभक्तिपूर्ण साहित्य पढ़कर ही चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, वीर सावरकर जैसे रत्न अपने जीवन को देशहित में लगा पाये।

इसलिए सत्साहित्य की तो जितनी महिमा गायी जाय, उतनी कम है। श्री योगवासिष्ठ महारामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, उपनिषद्, दासबोध, सुखमनी साहिब, विवेक चूड़ामणि, श्री रामकृष्ण साहित्य, स्वामी रामतीर्थ के प्रवचन आदि भारतीय संस्कृति की ऐसी कई पुस्तकें हैं, जिन्हें पढ़ो और अपने दैनिक जीवन का अंग बना लो। 

ऐसी-वैसी विकारी और कुत्सित पुस्तक - पुस्तिकाएँ हों तो उन्हें उठाकर कचरे के ढेर पर फेंक दो या चूल्हे में डालकर आग तापो, मगर न तो स्वयं पढ़ो और न दूसरों के हाथ लगने दो।

आध्यात्मिक साहित्य सेवन में संयम - स्वास्थ्य मजबूत करने की अथाह शक्ति होती है। संयम, स्वास्थ्य, साहस और झुरमुर- झुरमुर आत्मा-परमात्मा का आनंद व सामर्थ्य अपने जीवन में जगाओ। कब तक दीन-हीन होकर लाचार-मोहताज जीवन की ओर घसीटे जाओगे, भैया? 

प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात् दिन के व्यवसाय में लगने से पूर्व एवं रात्रि को सोने से पूर्व कोई-न-कोई आध्यात्मिक पुस्तक पढ़नी चाहिए। इससे वे ही सत्त्वगुणी विचार मन में घूमते रहेंगे जो पुस्तक में होंगे और हमारा मन विकारग्रस्त होने से बचा रहेगा ।

धर्म जगत

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