Published By:दिनेश मालवीय

दीपावली पर लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की पूजा का महत्त्व -दिनेश मालवीय

दीपावली पर लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी की पूजा का महत्त्व -दिनेश मालवीय

 

भारत के त्योहारों के पीछे एक गहरी सोच और वैज्ञानिकता होती है. अधिकतर लोग इसको जाने बिना सिर्फ परम्परा के चलते त्यौहार मनाते चले जाते हैं, जिससे वे उनका सही अर्थ नहीं समझ पाते. बिना समझे भी त्यौहार का आनंद तो आ ही जाता है, लेकिन जानकर यह आनंद कई गुणा बढ़ सकता है. इससे हम आने वाली पीढ़ी को भी हर त्यौहार के पीछे छुपे रहस्य को समझा सकते हैं. दीपावली आ गयी है. इस दिन धन की देवी माँ लक्ष्मी के साथ ज्ञानप्रदाता श्रीगणेशजी की पूजा की जाती है. वैसे देखा जाए तो लक्ष्मीजी के पौराणिक परिवार में गणेशजी शामिल नहीं हैं. उनके साथ संसार के पालक भगवान श्रीहरि विष्णु की पूजा की जानी चाहिए. लेकिन उनकी पूजा ग्यारह दिन बाद होती है. दीपावली पर देवी लक्ष्मी और गणेशजी के साथ विद्या-कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा का भी विधान है, हालाकि यह जानकार लोग ही करते हैं. दिवाली के दो दिन पहले ही धनतेरस पर लक्ष्मीजी के साथ स्वास्थ्य के देवता भगवान् धन्वन्तरी की पूजा की जाती है.

 

इस रहस्य को समझने की कोशिश करने पर हमें अपनी संस्कृति के बहुत रहस्यमय और उत्साहवर्धक तथ्यों का पता चलता है. दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी की ही पूजा करने वाले लोग इस तथ्य को नहीं जानते कि हमारी संस्कृति में धन की नहीं, बल्कि समृद्धि की कामना की जाती है. कोई पूछ सकता है कि धन और समृद्धि में क्या अंतर है? क्या धनवान व्यक्ति समृद्ध नहीं होता? इसका उत्तर है “नहीं”. धनवान तो कोई भी हो सकता है, लेकिन समृद्ध लोग बहुत कम होते हैं. भगवान् श्रीगणेश ज्ञान के देवता हैं. ज्ञान यानी शिक्षा नहीं है. ज्ञान यानी सद्सद विवेक. नित्य और अनित्य की पहचान. शाश्वत और क्षणिक की समझ. यह ज्ञान होने पर ही धनवान व्यक्ति धन का सही उपयोग कर पाता है. वह अपने धन को ईश्वर की देन और धरोहर मानकर इसका उपयोग अच्छे कामों में करता है. वह  जनकल्याण के काम करता है. ज़रूरतमंदों और ग़रीबों की मदद करता है. यह ज्ञान और विवेक होने पर ही कोई धनवान समृद्ध या श्रीसम्पन्न कहलाता है. हमारी संस्कृति में धन पर एकतरफा बल नहीं दिया गया है. इसके साथ विवेक होने पर ही इसकी सार्थकता मानी गयी है.

 

इसके विपरीत, इस ज्ञान के अभाव में धन का उपयोग गलत रास्तों में अधिक होता है. हमारे सामने ऐसे उदाहरण बहुत हैं कि धनवान लोग अपने पैसे को ऐसे कामों में खर्च करते रहते हैं, कि उसे पानी में बहाना ही कहा जा सकता है. ऐसे लोगों को सामान्यत: ‘नव धनाड्य’ कहा जाता है.अब ज़रा दिवाली के दो दिन पहले धनतेरस की बात करते हैं. इस दिन माँ लक्ष्मी के साथ स्वास्थ्य के देवता भगवान् धनवंतरि की पूजा का तात्विक अर्थ यह है कि धन के साथ स्वास्थ्य भी होना चाहिए. ऐसे अनेक उदाहरण देखे जाते हैं कि व्यक्ति के पास धन तो खूब है, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी कारणों से वह उसका कुछ भी उपयोग नहीं कर पाता. खाने-पीने की मामूली चीजों के लिए तरसता रहता है. इसके अलावा, कोई बड़ी बीमारी हो जाने पर धन पानी की तरह खर्च होता है. इसलिए धन की देवी के साथ स्वास्थ्य के देवता की पूजा की जाती है. स्वास्थ्य के बिना धन का कोई मोल नहीं है. इसका उपयोग दूसरे ही करेंगे.

 

दिवाली के दिन हर व्यक्ति अपने व्यवसाय से सम्बंधित उपकरणों की पूजा करता है. लेखक और कवि माँ सरस्वती और कलम की पूजा करते हैं. इसके पीछे भाव यही रहता है कि हम आजीविका के लिए जो भी कार्य करते हैं, उसे इस तरह करें, कि वह पूजा का रूप ले ले. इसमें उपयोग किये जाने वाले उपकरणों की पूजा के पीछे भी यही सोच है कि साध्य के साथ हमारे साधन भी शुद्ध और पवित्र होने चाहिए. दिवाली के बीस दिन पहले दशहरे पर हम बुराई के प्रतीक रावण का प्रतीकात्मक दहन कर धर्म पर अडिग रहने का संकल्प लेते हैं. इसके ठीक पहले नवरात्रि में पाणी  सात्विक शक्तियों को जाग्रत करते हैं. दशहरे से ही हम अपने घरों की सफाई करने लगते हैं. फालतू चीजों को नष्ट करते हैं, नयी वस्तुएं खरीदते हैं और घर के वातावरण को अधिकतम स्वच्छ और स्वास्थ्यप्रद बनाते हैं. स्वच्छ घर में ही सम्पन्नता आती है.

 

 इस तरह दिवाली जीवन को नए उत्साह के साथ पवित्रता से जीने की ओर प्रेरणा देने वाला त्यौहार है. आइये, दिवाली पर पूजा-पाठ, पकवान सेवन और बाकी सभी अनुष्ठान करने के साथ हम अपने घर में प्रकाश के इस पर्व को इस तरह मनाएं कि हमारे बच्चे इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व को समझ सकें. वे अच्छे जीवन मूल्यों को आत्मसात कर सार्थक जीवन का मूलमंत्र प्राप्त कर सकें. दिवाली पर दीपक जलाने का उद्देश्य सिर्फ बाहर का अँधेरा दूर करना न होकर मन के भीतर के तमस और अज्ञान को दूर कर जीवन में सात्विकता का प्रकाश प्रसारित करना भी है. ध्यान और जप साधना करने वालों के लिए दिवाली की रात सिद्धिदायक होती है. इस दिन अपने इष्ट के साथ ही अपने गुरुदेव का पूजन भी करना चाहिए. ऐसा करके ही ही हम दिवाली के पवन पर्व को सार्थक बना पाएँगे और अपनी संस्कृति की थाती को आने वाली पीढ़ियों के लिए सहेज सकेंगे.

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