पुनर्जन्म क्या है, पुनर्जन्म क्यों होता है, पुनर्जन्म कब होता है, मोक्ष क्या है, मोक्ष कैसे मिलता है, क्या दूसरी दुनिया का अस्तित्व है, क्या मरने के बाद भी हम जीवित रहते हैं, आत्मा कहां जाती है, मरने के बाद क्या होता है, आत्मा और जीवात्मा में क्या अंतर है, क्या सब कुछ खत्म हो जाता है या मरने के बाद भी कुछ बचा रहता है?
परलोक, पुनर्जन्म और मोक्ष तत्त्व:
(लेखक- श्रीनीरजाकान्त चौधरी, एम प०. एल-एल० बी० पी० दीर्घसंसारवसु मां मधुसूदन। पुननांगन्तुमिच्छामि त्राहि।।
(श्रीशुकविरचित द्वादशाक्षरस्तोत्र) 'इस दीर्घ संसार-पथ में आवागमन करते-करते (बारंबार जन्म-मृत्यु को प्राप्त करते) मैं परिश्रांत हो गया हूँ। अब फिर यहां आना नहीं चाहता हे मधुसूदन ! मेरी रक्षा करो।"
मनुष्य मरकर कहाँ जाता है? क्या परलोक है? इस रहस्य का उत्तर पाने के लिये आदिकाल से सब देशों में मनुष्य चेष्टा करता आ रहा है। पर्दे के पीछे क्या है, यह जानने के लिये प्राणपण से अनवरत प्रयास कर रहा है। स्थानाभाव के कारण संक्षेप में परलोकवासी आत्मा के दर्शन के विषय में कुछ सत्य घटनाएं यहाँ लिखी जाती हैं।
परलोक सत्य है, विदेही आत्मा का दर्शन:
(1) 1933 ई० के 8 अगस्त को अपराह्न काल में मध्यप्रदेश नरसिंहपुर में बंगले के बरामदे में खाट पर सोयी हुई अपनी बीमार पत्नी के पास में बैठा था। अचानक वह चिल्ला उठी- 'भगवान को पुकारो, वे मेरी रक्षा करें।' पश्चात उसने बताया कि 'बरामदे के ठीक बगल में आँगन में खड़े-खड़े तीन ब्राह्मण न जाने क्या कह रहे थे।
आकृति देखने से जान पड़ता था कि वे मेरे परलोकवासी तीनों जेठ थे।' ठीक एक महीने के बाद 8 सितम्बर को मेरी पत्नी का स्वर्गवास हो गया। जान पड़ता है वे लोग उसको इस विषय में कुछ बताने की चेष्टा कर रहे थे। कहने की आवश्यकता नहीं कि वे लोग मेरे दृष्टिगोचर नहीं हुए थे।
(2) 1947 ई० के जुलाई महीने में मेरे पुत्र श्री प्रणव कान्त (21 वर्ष) अपने मामा के घर बागछी जमशेरपुर (जिला नदिया, पश्चिम बंगाल) गांव में दो तल्ले पर मेरे बगल में सो रहे थे। वे प्रतिदिन रात में एक वृद्ध आदमी को देखते थे। उनके बड़े-बड़े केश और दाढ़ी-मूँछ थी। वे मसहरी के बगल में घूमते रहते थे। वे अशरीरी आत्मा कलकत्ता के हमारे निवास स्थान में भी इसके बाद इसी प्रकार कुछ दिनों तक उनको दिखाई देते रहे। परंतु मैं कुछ भी नहीं देख पाता था।
(3) मेरे परम मित्र रायबहादुर परलोकवासी मनोमोहन लङ्गर एक निष्ठावान काश्मीरी ब्राह्मण वे महाराजा प्रताप सिंह के समय कश्मीर के गवर्नर रहे। पश्चात झालावाड़ राज्य के दीवान-पद पर रहे। तीर्थराज प्रयाग में 1954 ई० में कुंभ के अवसर पर दिन में उन्होंने अपनी परलोकगत पत्नी को अपने साथ संगम में स्नान करते देखा था। कुछ दिनों बाद इंदौर में उन्होंने यह बात मुझसे कही थी।
(4) श्रीयुत एक उच्च पदस्थ रेल कर्मचारी हैं। पत्नी के परलोक-गमन के कुछ महीने बाद उन्होंने गयाधाम में अपनी पत्नी के नाम से पिंडदान किया, परंतु उनके मन में यह खटका बना रहा कि सपिण्डीकरण के पूर्व इस प्रकार का पिंडदान कोई फल प्रदान करेगा या नहीं।
कलकत्ता लौटते समय वे ट्रेन में प्रथम श्रेणी के डिब्बे में सोये हुए थे। अचानक मानो किसी के जगाने पर देखते क्या हैं कि उनकी स्त्री, जिस वेश में मृत्यु हुई थी, ठीक उसी रूप में सामने खड़ी है और 'तुम चिंता मत करो, मेरा उद्धार हो गया है'- कहकर अंतर्धान हो गयी !
यमदूत, यम और यमलोक सत्य है यमदूत-दर्शन। मनुष्य मरने के बाद फिर शरीर में लौटकर कहते सुना गया है कि 'यमलोक में मुझे ले गये थे, यमराज ने कहा कि भूल हो गयी है और मुझे लौटा दिया है।' इस प्रकार की कई सत्य घटनाएँ लेखक को ज्ञात हैं। विस्तार भय से उनका वर्णन नहीं किया जाता है।
परलोक सत्य है। यमराज भी हैं और यमलोक भी है, इसमें संदेह नहीं है। कठोपनिषद में नचिकेता और यमराज के साक्षात्कार का वर्णन है। ऋग्वेद में यम वैवस्वत के बहुत-से मंत्र हैं।
ब्रह्मसूत्र (3।1।13 16) में यम, यमलोक, यम यातना तथा रौरव आदि सात नरकों का उल्लेख है। यहाँ तक कि श्री शंकराचार्य ने भी अपनी भाषा में चित्रगुप्त और यम के कर्मचारी के विषय में स्मृति-पुराण आदि की कथाओं को सत्य माना है।
जन्मान्तर और कर्मफल वाद:
जन्मान्तर वाद वैदिक सनातन धर्म का मूल सिद्धान्त है। जीव अपने किये हुए कर्म-प्रारब्ध के अनुसार इस जन्म में सुख-दुःख भोग करता है। मृत्यु के बाद पाप और पुण्य के वश नरक की यंत्रणा या स्वर्ग का सुख भोगने के पश्चात संचित (अवशिष्ट) कर्मफल के भोग के लिये फिर संसार में आकर विभिन्न योनियों में जन्म लेता है।
जड देह में बारंबार रोग-शोक, और मृत्यु, सुख दुःख की शृङ्खला में आबद्ध होकर आवागमन के चक्र में भटका करता है। इससे त्राण पाने का एकमात्र उपाय है– वर्णाश्रम-धर्म को मानकर अपने-अपने अधिकार के अनुसार निष्काम भाव से शास्त्र - निर्दिष्ट मार्ग से नित्य, नैमित्तिक और काम्य कर्मों का प्रवाह-पतितवत् करते जाना। इससे पाप-पुण्य, सुकृत-दुष्कृत का अतिक्रमण करके, भगवद्-दर्शन प्राप्त कर जीवामृत का अधिकारी हो जाता है।
संसार के और किसी धर्म में क्रम मुक्ति का इस प्रकार का उपाय नहीं है। भारत और वर्णाश्रमी भारती-जाति से आबाद द्वीपों तथा वृहत्तर भारत को छोड़कर अन्य किसी भी देश में मोक्ष की कल्पना भी नहीं थी। हम इस लेख में केवल सेमिटिक मत की संक्षेप में आलोचना करेंगे।
सेमेटिक एक जन्मवाद:
सेमिटिक (Semitic) अर्थात यहूदी, ईसाई और मुस्लिम-मत की कुछ विशेषताएं यहाँ संक्षेप में दिखलायी जाती हैं।
(1) यहूदी पुराण (Torah और Old Testa ment) या शास्त्र में परलोक का कोई उल्लेख नहीं है। इस जन्म के कृत कर्मों का फल भोग इसी जन्म में होता है।
(2) मनुष्य जाति के पुरुष के सिवा अन्य किसी जीव की, यहाँ तक कि नारी की भी आत्मा नहीं होती। मनुष्य का इस लोक में केवल एक बार जन्म होता है। सर्वव्यापी ब्रह्म की कोई कल्पना भी नहीं है। यहूदी का ‘यहोवा' (Yahveh or Jehovah), ईसाई के 'गाड' (God) और मुसलिम के 'अल्लाह' (Allah) 'ईश्वर' हैं। वे पुरुष हैं और स्वर्ग में रहते हैं। उनका अवतार नहीं होता। स्वर्ग में और कोई देवता नहीं और न कोई देवी है।
(3) यहूदी-मत से ईश्वर के प्रेरित दूत मसीहा (Messiah) भविष्य में पृथ्वी पर आवेंगे। ईसाइयों के मत से वह मसीहा ईसा (Jesus) हैं। वे ईश्वर के पुत्र हैं और पृथ्वी पर अवतीर्ण हो गये हैं। मुस्लिम के मत से मुहम्मद ईश्वर के दूत (अल्लाह के पैगंबर) हैं।
ईसाई-समाज में, रोमन कैथलिक और पूर्वदेशीय ग्रीक चर्च आदि में ईसा की कुमारी माता (Virgin) मेरी (Mary)-की उपासना होती हैं। परंतु 'मेरी' ईश्वर की महाशक्ति या महामाया नहीं हैं। उनकी पूजा भी पहले नहीं थी।
पाँचवीं शताब्दी में मिस्र के आइसिस (Isis) और ग्रीक आर्टेमिस (Artemis) आदि देवी की उपासना का अनुकरण में पहले-पहल प्रवर्त्तित हुई। और दूसरे ईसाई देवी की उपासना नहीं करते। प्रोटेस्टैण्ट मुसलिम-स्वर्ग में कोई देवी नहीं है। जान पड़ता है कि किसी स्त्री को वहाँ प्रवेश करने का अधिकार नहीं है।
(4) ईसाई और मुस्लिम के मत से आत्मा और देह का सम्बन्ध प्रायः अविच्छेद्य है। इसी कारण मित्र देश के 'ममी' के अनुसरण में मृत देह को दाह न करके शव देह के उपयुक्त आकार की शव-पेटिका कफन (Coffin) में सुरक्षित कर उसे भूमि में दफना देते हैं। ये देह सुदूर भविष्यत् काल में अंतिम विचार के दिन (Last day of Judgment) ईश्वर के सिंहासन के दोनों ओर उठकर खड़े हो जाएँगे। दाहिनी ओर रहेंगे धार्मिक लोग और बायीं ओर पापी लोग खड़े होंगे।
(5) एकमात्र इसी जन्म के कर्मफल से पुण्यात्मा को अनन्त काल तक स्वर्ग और पापात्माओं को अनन्त काल तक नरक भोगना पड़ेगा। जो लोग ईसाई या मुसलमान नहीं हैं, वे लोग यथाक्रम से ईसाई और मुस्लिम दर्शन के अनुसार अवश्य ही अक्षय नरकाग्नि में दग्ध होंगे। जैसे बुतपरस्त वर्णाश्रमी हिंदू, चाहे वह कितना ही भला आदमी क्यों न हो, उसके लिये निखालिस नित्य स्थायी नरक भोग अनिवार्य है।
मुश्किल यह है कि रोमन कैथलिक लोग समझते हैं कि प्रोटेस्टैण्ट आदि ईसाई भी नरक में गिरेंगे, केवल वे ही अनन्त स्वर्ग में जायेंगे। प्रोटेस्टैण्ट भी इसी प्रकार समझते हैं कि रोमन कैथलिक नरक में जाएंगे। मुस्लिम शिया-सुन्नी आदि की भी ठीक इसी प्रकार की अवस्था है।
(6) इन सभी धर्मों के दर्शन में समग्र जीव-जगत् (तथा नारी भी) पुरुष के भोग के उपादान मात्र हैं। जब पुरुष (नर) के सिवा और किसी में आत्मा ही नहीं है, तब जिस प्रकार भी हो, जिस किसी प्राणी की हत्या क्यों न की जाए, उस जीव हिंसा में कोई पाप न होगा। जान पड़ता है कि इन मतों में अहिंसा के लिये कोई स्थान ही नहीं है।
केवल एक जन्म के पाप-पुण्य तथा धार्मिक विश्वास के फल से अनन्त नरक या अनन्त स्वर्ग का भोग एक भ्रान्त सिद्धांत है; यह तर्कयुक्त नहीं है। फलतः, सेमिटिक धर्मो के दर्शन अत्यंत दुर्लभ हैं।
पाश्चात्य देशों में भी बहुत से लोग अब दूसरे धर्मों में विश्वास करने लगे हैं। श्रीमती एनी बेसेंट सुनते हैं अपनी शिशु-कन्या की अकाल मृत्यु का कोई संतोषजनक उत्तर ईसाई धर्म में न पाकर, हिंदू धर्म की ओर आकृष्ट हुई थीं। राइडर हग्गार्ड (Rider Haggard) और मोरी करेली (Morie Coralie) के उपन्यासों में पुनर्जन्म की कहानी है। एक आधुनिक उपन्यास के निम्न अवतरण से ज्ञात होता है कि ईसाई लोगों में भी तर्क जाग रहा है।
'कोई बुद्धिमान आदमी ईसाइयों के ईश्व रमें विश्वास नहीं कर सकता। सामूहिक रूप में मरे हुए लोगों का उठ खड़ा होना और उसके बाद इन्साफ के फलस्वरूप अनन्त सुख और अनन्त काल के लिये यातना का भोग एक युक्तिहीन प्रस्ताव है। जो जन्म से ही जड़ बुद्धि हैं या अपराधी माता-पिता की संतान हैं, उन अभागे लोगों को कुत्सित जीवन-यापन के लिये दण्ड विधान एक प्रहसन मात्र होगा। उनके जीवन में क्या संभावना थी ? और जो लोग किशोरावस्था में ही मर जाते हैं, वे क्या अपने कर्मों के लिये पूर्ण उत्तरदायी हैं?
जिस ईश्वर ने मानव जाति को इस प्रकार अनर्गल शर्त पर जन्म दिया है, उसके न्यायालय में लाये जाने पर उसके ऊपर हम लोग घृणा के सिवा और कुछ नहीं अनुभव करते। अतएव ईसाई की ईश्वर के अस्तित्व की कहानी ही मिथ्या है।
(7) सेमेटिक धर्म ग्रंथों के अनुसार अनुमानतः 4004 ई० पूर्व, अर्थात केवल छः हजार वर्ष पहले जगत की सृष्टि हुई थी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आधुनिक विज्ञान की भूतत्व, नृतत्व आदि की गवेषणा के द्वारा यह प्रमाणित हो रहा है कि यह सिद्धांत बिलकुल भ्रान्त है और सृष्टि कोटि-कोटि वर्ष पूर्व हो चुकी है।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
February 24, 2024यदि आपके घर में पैसों की बरकत नहीं है, तो आप गरुड़...
February 17, 2024लाल किताब के उपायों को अपनाकर आप अपने जीवन में सका...
February 17, 2024संस्कृति स्वाभिमान और वैदिक सत्य की पुनर्प्रतिष्ठा...
February 12, 2024आपकी सेवा भगवान को संतुष्ट करती है
February 7, 2024योगानंद जी कहते हैं कि हमें ईश्वर की खोज में लगे र...
February 7, 2024भक्ति को प्राप्त करने के लिए दिन-रात भक्ति के विषय...
February 6, 2024कथावाचक चित्रलेखा जी से जानते हैं कि अगर जीवन में...
February 3, 2024