Published By:अतुल विनोद

ज़रूरी है निष्क्रियता  … अतुल विनोद

ज़रूरी है निष्क्रियता  .. जरा भी टाइम मिला तो गेजेट्स उठा लेते हैं| फेसबुक, ट्वीटर पर हम बेहद प्रतिक्रियावादी होते हैं| हमे हमेशा कमेन्ट करना होता है| अपना स्टेट्स अपडेट करना, प्रोफाइल पिक चेंज करते रहना| हम सब अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के आदि हो गए हैं| हमने सेल्फ हेल्प बुक्स से भी यही सीखा है| 

खुद को आकर्षण का केंद्र बनाएं| घर में भी लोग हमारे उपर ध्यान न दें तो झगड़े खड़े करके अपनी मौजूदगी का अहसास कराने से नही चूकते| अध्यात्म, धर्म, दर्शन कहता है कि खुदकी मौजूदगी का अहसास कराने की ज़रूरत क्या है| यहाँ तक कि धर्म अपनी हस्ती मिटाकर परमात्मा के सामने समर्पित होने को कहता है| धर्म कहता है तुम खुदको मिटा दो ..इसका मतलब ये नही कि आप खुद को गोली मार दें, नही अपने मैं को, अपनी अहमियत को अपने अहंकार को मिटा दो… दुनियारी के सिद्धांत और हमारे रूल्स अलग हैं| 

हम छा जाना चाहते हैं, धर्म बिछा देना चाहता है| धर्म कहता है तुम खुदको प्रदर्शित करके, शोरगुल करके, दिखावा करके, अहसास दिलाकर दूसरों पर अत्याचार करते हो| क्यूंकि तुम दुसरे को खींचते हो, उनका समय खराब करते हो| “थोथा चना बाजे घना” भी धर्म दर्शन से निकली कहावत है|  जो जितना चीखता, चिल्लाता है उतना ही कमजोर और अहितकर होता है|  

जो लोग अपने अहंकार को खत्म कर देते हैं वे होने का अहसास तो नहीं देते लेकिन हितकर होते हैं| न सिर्फ अपने लिए दूसरों के लिए भी| अपनी और दूसरों की शांति के लिए खुदको थोड़ा निष्क्रिय करना पड़ेगा| दरअसल हमारी सक्रियता का ज्यादातर हिस्सा ऐसे कामों के लिए होता है जिससे अपनी और दूसरों की शांति भंग होती है| बेईमानी, गुंडागर्दी और झगड़ों का कारण यही सक्रियता है| व्यक्ति के मन में दूसरों के सामने हाईलाइट होने की चाह होती है, खुदको बड़ा, आलीशान, प्रभाशाली बन्नने के लिए वो क्या क्या नहीं करता| 

ये व्यक्ति में ही नहीं देश के चरित्र का भी हिसा बन जाता है| कुछ देश सत्ता,प्रतिष्ठा,आकार और की चाह में दुनिया पर युद्ध तक थोप देते हैं|

 

धर्म जगत

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