Published By:धर्म पुराण डेस्क

ईश्वर की अभिन्न स्थिति

अगहन में ज्ञान अगिनि जागी, लोक सब दहन कहँ लागी। 

फेंक दिये ब्रह्मा अरु विष्नू, फेंक दिये राम अरु कृष्णू।

भावार्थ:

जैसा कि बताया गया है कि ईश्वर की प्रत्यक्ष जानकारी का नाम ज्ञान है। उसकी जानकारी होने के कुछ क्षण पूर्व ही पाप समूल नष्ट हो जाते हैं। अगहन पाप के हनन की स्थिति। पाप के निर्मूल होने की स्थिति में उस ज्ञान-अग्नि का संचार होता है, जिसमें लोक-परलोक सभी जल जाते हैं। उस अभिन्न जानकारी के अंदर की बात है राम और कृष्ण, ब्रह्मा और विष्णु। उस अभिन्न स्थिति में ब्रह्मा और विष्णु, राम और कृष्ण की स्थिति सर्वथा विलीन हो जाती है। 

कारण कि यह वहाँ तक की अवस्थाओं का ऊँचा-नीचा नामकरण है। ब्रह्मा (जैसे वह चेतन) जिस प्रकार ब्रह्म की जानकारी का प्रसार करता था, विष्णु योगक्षेम की रक्षा करता था, राम जिस प्रकार सर्वत्र रमण करते हुए व्यापकता दर्शाता था और कृष्ण जिस प्रकार आत्मा से कर्तव्य का पूरक था, आदि उसी स्थिति में विलीन हो गये। अभिन्न स्थिति के बाद कौन किसका पोषण करे, कौन किसका प्रसार करे, कौन रमण करे और किससे कर्तव्य की पूर्ति हो?

टिप्पणी:

यह तो ब्रह्म जिन-जिन युक्तियों से योगी के सामने प्रसारित होता है, उसी का रूप है। अब वह इन शक्तियों के मूल सहज स्वरूप में ही स्थित हो गया तो किसका पथ-प्रदर्शन करे? विलगता में यही शाखाएँ प्रसारित होकर समझाती थीं। याद रखें, जो अवतार बाहर पाये जाते हैं वे इसी के अपभ्रंश मात्र है। यह अपभ्रंश कालान्तर में हो जाया करता है; किन्तु इन्हीं के द्वारा प्रेरित हो प्रत्यक्ष स्थिति पाने वाले के लिए इनका कोई स्थान नहीं रह जाता। 

अन्तःकरण में जब तक वह इष्ट विशेष कृपा करके पथ-प्रदर्शन नहीं करता, तब तक ईसा, मूसा, मुहम्मद, राम, रहीम आदि की मान्यता है। उसी के द्वारा माध्यमिक स्तर तक बढ़ा जाता है। इसके आगे वही इष्ट बाहर से सम्बन्ध तोड़कर भीतर अन्तर्देश से अपने स्वरूप में जोड़ देते हैं। इस स्तरवाला साधक सामान्य व्यक्तियों की दृष्टि में नास्तिक-सा प्रतीत होता है; परन्तु सही कृपापात्र वही है।

दोहा:

जलत जलत ऐसी जली, जाको आर न पार। 

ईश्वर जीव ब्रह्म अरु माया, फेंक दियो संसार।

भावार्थ:

ईश्वर की अभिन्न स्थिति का नाम ज्ञान है। यह रहनी ऐसी विचित्र है कि उसका आदि एवं अंत नहीं है अर्थात् वह सर्वत्र है। इस स्थिति में माया एवं संसार तो मिथ्या हैं।

धर्म जगत

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