Published By:धर्म पुराण डेस्क

विवाह में बाधा

जीवन के चार पुरुषार्थो में विवाह भी तीसरे पुरुषार्थ के नाम की गिनती में आता है। इस पुरुषार्थ के बाद शरीर जीवन और जीवन के उद्देश्य मिल जाते है जातक अपने जीवन को इसी पुरुषार्थ मे निकाल लेता है। 

कई बार ऐसी ग्रह युति बन जाती है कि सोच कर भी विवाह करना भारी पड जाता है और केवल भटकाव का रास्ता ही मिलता है. प्रस्तुत कुंडली वृश्चिक लग्न की है मालिक मंगल दसवें भाव में है। मंगल की दृष्टि में धर्म और भाग्य का मालिक चन्द्रमा है। 

जीवन का हर काम चन्द्रमा के ऊपर ही निर्भर है और चन्द्रमा को भी खुद मंगल ने अपने कंट्रोल में रखा हुआ है, मंगल को स्त्री कुंडली में भाई के रूप में भी मानते है पिता के घर में होने से पिता को भाई के रूप में मानते है और इस मंगल के अन्दर शुक्र और शनि का प्रभाव आने से मंगल का रूप नेक न होकर बंद के रूप में बन गया है। 

मंगल की नजर जब भाग्य और धर्म के कारक चन्द्रमा पर है तो जातिका का चाचा या चाचा जैसा रिश्तेदार जातिका के पिता के स्थान पर अपनी भूमिका को अदा कर रहा है शनि को बड़े भाई के रूप में जाना जाता है इसलिये जातिका के पिता का बडा भाई भी अपनी युति को विवाह नहीं करने और अपने अनुसार विवाह करने के लिए अपनी योजना को बनाता है| 

लेकिन मंगल की बदनीयती से शादी में दिक्कत का होना माना जाता है। पिता का कारक सूर्य लाभ और जोखिम के काम के अन्दर तथा केतु की पंचम नजर से आहत होने के कारण परिवार में अपने ही बच्चों को कोई सहायता नहीं दे पा रहा है वह अपने परिवार को संगठित रखने के लिये अपने को अपने बडे और छोटे भाई के प्रति समर्पित है| 

जबकि पिता के दोनो भाई अपनी योजना के अनुसार जातिका के दादा की दुश्मनी को निकालने के लिये कि जातिका के दादा ने एक अलग से रकम का बन्दोबस्त जातिका की शादी के लिये किया था और उस रकम का उपयोग दोनो भाइयों ने पिता को विश्वास में लेकर अपने कार्य और घर के निर्माण में लगा दिया|

जब जातिका का पिता उस धन के लिये जो शादी के लिये प्रयोग में लाना है की बात करते है तो वे दोनो कोई न कोई बहाना बनाकर शादी वाले कारण को और आगे बढा देते है। जातिका की माता भी अपनी तीन संतानों से परेशान है. पुत्र संतान शिक्षा के प्रति पहले तो जागरूक रहे लेकिन अपनी शिक्षा को प्राप्त करने के बाद अपने अपने कार्य में लग गये उनके लिये बहन या बहन का विवाह आदि सभी बातें दूर हो गयी उन्हे केवल अपने स्वार्थ की पूर्ति की खबर रह गयी।

विवाह के भाव को ग्यारहवें भाव में बैठा राहु देख रहा है पंचम भाव में बैठा केतु देख रहा है दसवें भाव में बैठा शनि अपनी वक्र दृष्टि से इस विवाह के भाव को आहत कर रहा है। गुरु जो सम्बन्ध का कारक है वह अष्टम में जाकर अपनी सम्बन्ध वाली नीतियों को भूल कर बैठा है|

दसवें भाव में बैठा मंगल चौथे प्रभाव से जातिका के मानसिक कारण और माता के प्रति अपनी कन्ट्रोल वाली नीति को अपना रहा है अपनी दृष्टि जातिका के माता के भाव में रखकर माता को अपने प्रभाव में रख रहा है और ननिहाल जो केतु का कारक होकर पंचम में विराजमान होकर अपने प्रभाव को देख रहा है तथा जातिका की प्राथमिक शिक्षा को अपने अनुसार देने के बाद जातिका की शादी आदि की बात की तो यह मंगल जातिका के ननिहाल परिवार को भी मारक दृष्टि से देख रहा है। 

जातिका की उम्र तैंतीस साल हो चुकी है, केतु की दशा चल रही है, केतु में शनि का अंतर चल रहा है इसलिये जातिका शिक्षिका के रूप में अपने निवास स्थान पर ही रह रही है और छोटे से स्कूल में अपनी शिक्षा को देकर माता की सहायता कर रही है जबकि पिता का कोई भी सहारा जातिका और जातिका की माता को नही मिल रहा है। 

जातिका की ताई का कहना है कि जातिका की शादी उसके रिश्तेदारों में कर दी जाये लेकिन जातिका की ताई के रिश्तेदार शराब कबाब आदि से बिगडे हुये लोग है, इसलिये जातिका उन लोगो से शादी नही करना चाहती है, जातिका के ऊपर जातिका के परिवार वाले नजर भी रख रहे है जिससे वह अपने प्रभाव को देकर और पंचम केतु का सहारा लेकर किसी के साथ भाग भी नही जाये|

लेकिन यह केतु अपने प्रभाव को छठे भाव मे आकर अपना असर देने लगेगा, जातिका का कमन्यूकेशन फ़रवरी दो हजार तेरह में किसी शिक्षा में साथ रहे व्यक्ति से बन जायेगा और और गुप्त रूप से सम्बन्ध बनाकर कोर्ट मैरिज या इसी प्रकार के काम कर लिये जायेंगे। 

यह अपने अनुसार एक साल तक गुप्त निवास करेंगे और फ़रवरी दो हजार चौदह से शुक्र की दशा लगने पर तथा गुरु का गोचर सप्तम में आते ही सामाजिक रूप से रहने के लिये अपना प्रभाव देने लगेंगे.

लेखक : रामेन्द्र सिंह भदौरिया


 

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