Published By:अतुल विनोद

हम सृष्टि को विनाशी मानते हैं,जो पैदा होती है फिर नष्ट हो जाती है| सवाल ये है कि क्या आत्मा भी स्रष्टि के साथ ही नष्ट हो जाती है? स्रष्टि की शुरुआत में जब इस दुनिया में कुछ नहीं था तब आत्मा कहाँ थी? यहाँ समष्टि आत्मा की बात नहीं हो रही जो सर्वव्यापी है|यहाँ व्यष्टि आत्मा कि बार हो रही है जिसे जीव या जीवात्मा कहते हैं| तर्क और बुद्धि के कारण आत्मा को लेकर सवालों की फ़ेहरिस्त लम्बी है|दरअसल ये धारणा ही गलत है कि सृष्टि का अंत होता है|ईश्वरीय सृष्टि कभी नष्ट नहीं होती उसका स्वरूप बदलता है|
जैसे उर्जा रूपांतरित होती है उसकी टोटल वेल्यू कभी नही बदलती|ऐसे ही ईश्वर और उसकी सत्ता का कुल प्रमाण समान रहता है, उसके अंदर आकार और तत्वों में चेंजेस आते रहते हैं|ईश्वर,पुरुष और प्रकृति के रूप में हमेशा मौजूद रहता है| पहले समझा जाता था कि दुनिया में तीन मूल कण होंगे लेकिन जब इन इलेक्ट्रोन, प्रोटान और न्यूट्रान को तोड़ गया तो पता चला कि क्वार्क नाम का मूल प्राथमिक कण इनका निर्माण करता है| क्वार्क के 6 स्वरुप हैं (अप, डाउन, स्ट्रेन्ज, चार्म, टॉप और बॉटम।) जो विद्युत चुंबकत्व, गुरुत्वाकर्षण, प्रबल अंतःक्रिया और दुर्बल अंतःक्रिया महसूस करता है|
अब इस छोटे से कण में इतनी सारी शक्ति किसकी स्फुरण से आती है? विज्ञान इसे डार्क एनर्जी कहता है|डार्क एनर्जी “पुरुष” है और क्वार्क “प्रकृति” है|ज़ाहिर है पुरुष और प्रकृति दोनों अलग होने बावजूद एक ही इश्वर के ही दो स्वरुप हैं… जैसे पानी और बर्फ एक होते हुए भी अलग अलग दिखाई देते हैं| आप कल्पना कीजिये कि इस दुनिया में जो भी कुछ दिखाई दे रहा है वो क्वार्क और डार्क एनर्जी से मिलकर बना है जब परमाणु ही दिखाई नहीं देता तो उसे बनाने वाला क्वार्क कैसे दिखाई देगा|हर एक परमाणु में क्वार्क भी मौजूद है और डार्क एनर्जी भी … क्वार्क परमाणु का शरीर है और डार्क एनर्जी उसकी आत्मा|परमात्मा अपने मूलभूत रूप में हमेशा से मौजूद है|
उसकी दो शक्तियां पुरुष और प्रकृति भी|हर एक परमाणु की आत्मा विकास के क्रम के साथ विकसित होते होते मनुष्य की आत्मा तक की यात्रा करती है| मनुष्य का शरीर उस आत्मा को उसकी उर्जा के स्तर के अनुरूप मिलता है| “योग्यम योग्येन युज्यते” यानि कर्म से मिले गुणधर्म (कंडीशनिंग, क्वालिटी ऑफ़ एनर्जी, वाइब्रेशन, फ्रीक्वेंसी, प्रारब्ध, संस्कार, कर्माशय) के अनुरूप ही उसे शरीर मिलता है| शरीर के साथ माता पिता और अनुवांशिक गुण मिलते हैं| पूर्व जन्म के कर्म संस्कार और प्रारब्ध भी आत्मा के साथ जुड़े होते हैं|
इस तरह एक मानव का निर्माण होता है| आगे चलकर देश, काल और परिस्थिति के साथ नये सिरे से उसकी कंडीशनिंग(गुणधर्म का निर्माण) होती जाती है|
स्वामी विवेकानंद कहते हैं कि आत्मा एक ऐसा सर्कल है जिसकी परिधि(circumference) कही नहीं है| लेकिन केंद्र एक शरीर से दुसरे शरीर में ट्रांसफर हो जाता है|चूंकी आत्मा (डार्क मैटर) ईश्वर ही है इसलिए वो पूरी सृष्टि से जुडी है, इसलिए वो हर जगह व्याप्त है, लेकिन उसका केंद्र शरीर में होने के कारण वो गाय की तरह खूंटे से बंधी है| भारत के ऋषि कहते हैं ये आत्मा पवित्र और पूर्ण होते हुए भी शरीर से जुड़े होने के कारण बंधन में होती है| जैसे कोई भी पशु,पक्षी पालतू हो जाने पर बंधन महसूस करता है लेकिन स्वतंत्र कर देने पर भी मोह के कारण उस घर को नहीं छोड़ता|गाय यूँ तो गिरमा तोड़ने की कोशिश करती है लेकिन छोड़ देने पर दिन भर घूम फिर कर फिर वापस आती है|
ऐसे ही आत्मा मोह की कारण मृत्यु के बाद बार बार शरीर पकड़ लेती है जैसे मैंने पहले बताया शरीर पकड़ने का कारण आत्मा के साथ जुड़े गुणधर्म हैं| निष्कर्ष ये है कि जीव-आत्मा कभी पैदा नहीं होती, दुनिया में जितने परमाणु हैं उससे तीन गुनी संख्या में जीव-आत्मा की होनी चाहिए |
हर परमाणु में ELECTRON, PROTON, NUTRON तीन सब एटॉमिक पार्टिकल होते हैं| इन तीनो का निर्माण क्वार्क कण और श्याम कण से मिलकर होता है हर पार्टिकल में मौजूद ये श्याम कण ही आत्मा है| इनकी संख्या अनगिनत है| ये संसार जीवात्माओं का समन्दर है या ये समंदर ही आत्मा | सारी जीव-आत्माओं की समष्टि ही परमात्मा है परमेश्वर इनके अन्दर भी है और बाहर भी वो इन सबका आधार है| जैसे H2O पानी का एक कण है इन कणों से मिलकर एक बूँद भी बनती है एक नदी भी और एक समुद्र भी ...पूरी दुनिया में मौजूद पानी के कण मिलकर जलदेव कहलाते हैं इसी तरह जीव-आत्माओं के कण मिलकर परमात्मा कहलाते हैं|
इन जीव-आत्मिक कणों के महासमुद्र के कुछ कण विकसित होते होते.. कीट, पतंगे, पशु, मानव, देव और अवतार तक विकसित होते जाते है| इसके बाद भी इस आत्मिक कण के विकसित होने की अनंत संभावनाएं होंगी जिनके बारे में शायद हमे पता न चले|
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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