Published By:अतुल विनोद

जीवन में दुःख ज्यादा है कि सुख?........अतुल विनोद

ज्यादातर लोगों की शिकायत ये है कि लाइफ में दुख ज्यादा है सुख कम| हालांकि यह दृष्टिकोण पर भी निर्भर करता है लेकिन फिर भी बहुसंख्यक आबादी दुख को ज्यादा फील करती है|  भारत के दार्शनिकों का मानना है जन्म लेने वाली हर चीज दुख भरी होगी| दरअसल हम दुख की एक बड़ी प्रक्रिया के  साथ ही जन्म लेते हैं| 

तब स्मृति उतनी मैच्योर नहीं होती कि आपको अपने जन्म की प्रक्रिया के समय महसूस हुआ जो याद हो|  लेकिन जब आप पैदा हो रहे थे तब आप जबरदस्त कष्ट में थे| पैदा होते से ही आप खूब रोये थे|  आप को जन्म देने में आपकी माता को कितना कष्ट हुआ होगा आप समझ भी नहीं सकते| जन्म लेने वाला और जन्म देने वाला दोनों ही अपने जीवन की सबसे तकलीफ देह स्थिति से गुजरते हैं| इससे साफ हो जाता है की तकलीफ  जन्म की अनिवार्य शर्त है|  

और जब जीवन की शुरुआत ही तकलीफ से हुई है तो उसके बिना जीवन पूरा हो जाएगा संभव नहीं|  तकलीफ हमारा पहला साथी है|  जन्म लेने के बाद हम पहले रोए थे हंसना तो हम बहुत बाद में सीखते हैं| इसलिए दुख और तकलीफ से भागा नहीं जा सकता क्योंकि यह गॉड गिफ्ट है|  इस बात का हमारे पास कोई जवाब नहीं  कि भगवान ने दुख क्यों दिया है| भारत के कुछ दार्शनिक और तत्वविद तो  जीवन को ही दुख ही मानते हैं|  इस पृथ्वी को मृत्यु लोक कहा गया है|  जहां जन्म के बाद मृत्यु अनिवार्य है|  जन्म और मृत्यु दोनों ही  दुख की प्रक्रिया से ही प्राप्त होते हैं|  

शरीर को मजबूत बनाना हो तो उसे हार्ड एक्सरसाइज की तकलीफदेह प्रक्रिया से गुजारना होता है| तपस्या में  कष्ट सहना पड़ता है| न सिर्फ मनुष्य का जन्म कष्ट से होता है बल्कि इस दुनिया में मौजूद निर्जीव वस्तुएं भी कष्ट से ही आकार लेती है| मिट्टी को तपाया जाता है तब वो घड़ा बनती है, हर वस्तु को आकार देने के लिए कष्ट(अग्नि) से गुजारा जाता है|  मशीनों के निर्माण के पीछे उसमें शामिल सभी तत्व की कठोर परीक्षा तोड़ मोड़ और अग्नि का ताप शामिल है| दरअसल सृष्टि की प्रक्रिया परिवर्तन से जुड़ी हुई है|  सृष्टि है तो परिवर्तन है जीवन में सब कुछ प्रतिक्षण बदल रहा है|  

बदलाव के कारण सुख और दुख की अवस्थाएं आती हैं| हमारे शरीर का एक हिस्सा टूट रहा है तो दूसरा निर्मित हो रहा है|  मृत्यु और जीवन की प्रक्रिया निरंतर चल रही है हमारे शरीर में हर क्षण  मृत्यु और जीवन घटित होता है|  हमारा शरीर अचानक पैदा नहीं होता ऐसे ही अचानक नहीं मरता|  पैदा होने की प्रक्रिया जन्म से पहले शुरू हो जाती है ऐसे ही मृत्यु की प्रक्रिया मृत्यु से पहले शुरू हो जाती है|  हमारे शरीर में ब्रह्मा, विष्णु, महेश लगातार कार्य करते हैं| ब्रह्मा लगातार शरीर का निर्माण करते हैं शरीर को आकार देते हैं| 

विष्णु शरीर का पालन करते हैं उसे बरकरार रखने की कोशिश करते हैं| जन्म के साथ ही शंकर प्रतिक्षण सेल्स का संहार भी करते हैं| वो एक सेल को मारते हैं तो ब्रम्हा तुरंत दुसरे का निर्माण कर देते हैं| इसी प्रक्रिया के कारण जीवन चलता है|  मान लीजिए हमारे शरीर की उम्र 60 साल है इन 60 साल तक  विष्णु की भूमिका स्थिर ही रहेगी,  वह हमेशा इस शरीर का पालन करने की कोशिश करेंगे अंतिम दम तक|  लेकिन शुरुआती 30 साल तक ब्रह्मा की सृजनात्मक शक्ति अधिक असरदार होगी इसलिए शरीर विकसित होता चला जाएगा|  

जीवन के बीच में ब्रह्मा की शक्ति चरम पर होगी| इसके बाद वो कमजोर होती चली जाएगी और महेश की शक्ति बढ़ती चली जाएगी| सृजन कम होगा संहार ज्यादा इसलिए हमारा शरीर बुजुर्ग होता चला जायगा एक समय ब्रम्हा का सृजन बंद हो जायेगा शरीर से प्राण निकल जायेंगे|  आत्मा प्राण और मन के साथ अगली यात्रा पर निकलेगी| प्राण और मन शरीर भी साथ छोड़ दें तो आत्मा को दूसरा जन्म लेने की ज़रूरत नही पड़ेगी वो मुक्त हो जाएगी| सुख और दुःख भी इसलिए लगे रहते हैं क्यूंकि सृष्टि में सर्जन के साथ संहार भी होता है| 

जब सृजन होता है तो हमें सुख महसूस होता है और जब संहार होता है तो हमें दुख महसूस होता है| सुख और दुख इसीलिए एक दूसरे के साथ चलते हैं| व्यक्ति जब दुःख से पीछा नही छुड़ाता और सुख के पीछे नहीं भागता तो साम्य हो जाता है | दोनों को भीगते हुए भी खुदको इसमें लिप्त नहीं करता तो वो साक्षी बन जाता है इसलिए कहा गया है कि सुख दुःख को शरीर की प्रक्रिया मानकर उनमे लिप्त नही होना|     

 

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