याददाश्त बढ़ाने का दावा करने वालों के नुस्खों और दवाओं की बाढ़ आयी हुई है लेकिन कुछ कहानी थोड़ी हकीकत और ज्यादा फसाने की है। फिर भी कुछ उपाय तो हैं जो आप कर सकते है।
दोस्तों के नाम याद आना या अलमारी की चाबी कहीं रखकर भूल जाना, अगर इसे भूलने की बीमारी कहें तो ज्यादातर लोग खुद को इसकी चपेट में पायेंगे। बढ़ती उम्र के लोगों में तो याद रखने की ताकत कम ही हो जाती है, कम उम्र के लोगों में भी ज्यादा से ज्यादा सफल होने के लिए बेहतरीन याददाश्त की चाहत होती है।.
लोगों की इसी कामना को देखकर बाजार में कई कंपनियों ने दिमाग चमकाने की दवा बेचनी शुरू कर दी है। ये दवाएं कितना असर करती हैं इसे जाने बिना लोग इन्हें धड़ाधड़ खरीद रहे हैं।
बुक स्टाल पर याददाश्त बढ़ाने के नुस्खे बताने वाली किताबों की भीड़ हैं। दवा की दुकानों पर दिमाग तेज करने वाली नयी-नयी दवाईयां आ रही है लोगों की बुद्धि बढ़ाने वाले प्रशिक्षकों की एक पूरी जमात तैयार हो गयी है। दिमागी हुनर विकसित करने की कई वेबसाइटें भी शुरू हो गयी हैं।
दवाइयां, किताबी नुस्खे, प्रशिक्षण वेबसाइट कितने उपयोगी हैं, ये तो बाद की बातें हैं। लोगों को यह मालूम नहीं कि वाकई वे किसी भूलने वाली बीमारी के शिकार हैं, या फिर वह उनका वहम है।
मनोरोग विशेषज्ञों का मानना है कि आपको लतीफे याद नहीं रहते तो परेशान होने की बात नहीं, चिंता की बात तब है जब आप एक ही चुटकुला हर दूसरे दिन दोस्तों को सुनाते रहें। आप अपने खास दोस्त के जन्मदिन पर उन्हें शुभकामना देना भूल जाएं, यह तो सामान्य है पर अगर हर हफ्ते आप उन्हें जन्मदिन की शुभकामना देने लगे तो जरूर डॉक्टर से मिलने की जरूरत है।
कुछ लोगों का मानना होता है कि उनकी याद रखने की शक्ति दूसरों के मुकाबले कम है। लोगों को बेहतर मेमोरी पावर का प्रशिक्षण देने वाले एक जानकार का कहना है- दरअसल, याददाश्त की क्षमता से ज्यादा महत्वपूर्ण है, उसका सही तरीके से इस्तेमाल करना। कोई भी साधारण आदमी कुछ तरीकों का इस्तेमाल करके अपनी याद रखने की क्षमता को काफी बढ़ा सकता है।
हैरी लॉरेन की 'पेज ए मिनट मेमोरी बुक', कैरोल टुकिंगटन की' 12 स्टेप टु ए बेटर मेमोरी', सिथिया ग्रीन की 'टोटल मेमोरी वर्कआउट' और केविन ट्रड्यूज की 'मेगा मेमोरी' आदि कुछ ऐसी किताबें हैं जो लोगों की याददाश्त बढ़ाने के तरीके बताने का दावा करती हैं।
इन किताबों में कोई अनोखी बात नहीं होती। इनमें खासतौर पर लोगों के नाम और उनकी पहचान याद रखने के तरीके बताये गये हैं। ज्यादातर लेखकों ने आम तौर पर प्रचलित तरीकों को ही थोड़े से रिसर्च और तैयारी के साथ कुछ बेहतर रूप दे दिया है। ये बताते हैं कि जब कभी आप किसी नये व्यक्ति से मिलते हैं तो सबसे पहले आप उसकी कुछ खासियत को पहचानने की कोशिश करें और फिर उसके नाम के साथ उसकी खासियत को जोड़ें।
अगर किसी के नाम का उच्चारण थोड़ा मुश्किल हो तो उससे पूछे कि मिस्टर वशिष्ठ, जैसा मैंने आपको बुलाया वह आपके नाम का सही उच्चारण था या नहीं? इसी तरह नाम पर कुछ टिप्पणी करना भी मदद कर सकता है। जैसे आप चन्द्रशेखर से मिलते हैं तो उनसे पूछें कि इस नाम के व्यक्ति तो भारत के प्रधानमंत्री भी रह चुके है|
न मिलने वाले का नाम कई बार बुलाकर भी आप उसे अपने जेहन में सुरक्षित रख सकते हैं। थोड़ी देर की बातचीत में आप कई बार उसक नाम ले सकते हैं। जहां तक सम्भव हो, बातचीत में सामने वाले का नाम लेने की कोशिश करें।
नाम-पते आदि याद रखने में वे किताबी फार्मूले एक हद तक मददगार भी होते हैं। इसी तरह कुछ वेबसाइट्स भी हैं, जो याददाश्त तेज करने में सहयोग करते हैं। यूँ तो ऐसी वेबसाइट बहुतायत में है, पर इनमें से कुछ ही ऐसे हैं जिनका जिक्र किया जा सकता है।
इनमें माइन्ड टूल्स, कॉम का नाम खास है। इस साइट पर दूसरे नुस्खों के अलावा अंकों को याद रखने सम्बन्धी एक महत्वपूर्ण नुस्खा बताया गया है। इसमें 1 से लेकर 9 तक हर अंक के लिए कुछ अक्षर तय किये गये हैं। जैसे एक के लिए टी. डी. और टी एच, दो के लिए एन और तीन के लिए एम अंको को याद रखने में अक्षरों की मदद लेने से आसानी हो सकती है।
आज के झटपट युग में इन नुस्खों का उपयोग करना कुछ लोगों को शायद रास न आये। ऐसे लोगों के लिए बाजार में कुछ गोलियां भी आ गयी है जो दावा करती हैं कि सिर्फ ये दवा खाकर ही आप एक बेहतरीन दिमाग के मालिक हो सकते हैं। इन गोलियों को बनाने वाले के दावों में कितनी सच्चाई है, यह अब तक साबित नहीं हो सका है।
कुछ दवाओं के इस्तेमाल के गलत प्रभाव जरूर सामने आये हैं। मस्तिष्क विशेषज्ञों का मानना है कि विटामिन बी और ई दिमाग की ताकत बढ़ाने में मददगार होते हैं। पर इनकी काफी बड़ी मात्रा ही कुछ असर दिखा पाती है और उनका काफी कुप्रभाव भी हो सकता है। विटामिन ई खून को पतला कर देता है और इससे अन्दर खून बहने का खतरा रहता है।
विशेषज्ञ बताते हैं कि बढ़ती उम्र के साथ चीजें याद रखने की ताकत कम हो जाना कोई असाधारण बात नहीं है। दिमाग के कई हिस्सों में यादें सुरक्षित रहती हैं पर इसका सामने का हिस्सा, जिसे फ्रंटल लोब कहते हैं, सबसे खास होता है। फ्रंटल लोब ही जरूरत पड़ने पर यादों को ताजा करता है।
बाकी हिस्सों से आंकड़े जुटाने का काम भी इसी के जिम्मे होता है। उम्र बढ़ने के साथ इसकी क्षमता कम होती जाती है पर यह बहुत साधारण क्रिया है। इसमें 50-60 की उम्र तक आपके दिमाग की दीवारों से रंग-रोगन तो उखड़ जाता है, पर दीवार की मजबूती पर बहुत ज्यादा असर नहीं होता है. कुछ लोगों में फ्रंटल लोब की ताकत चिंताजनक रूप से कम हो जाती है। यह बीमारी की शक्ल अख्तियार कर लेती हैं, जिसे अल्जाइमर्स रोग कहते हैं।
अल्जाइमर्स वजह क्या होती है? ज्यादा मात्रा में शराब या नशीली दवाओं का सेवन करना दिमाग के लिए सबसे ज्यादा, नुकसानदेह साबित होता है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर या तनाव दूर करने वाली दवाएं या ऐसा कोई भी कारण जो केन्द्रीय संवेदी तंत्र को प्रभावित करे, आदमी की याददाश्त को कमजोर कर सकता है। पर यह नहीं भूलना चाहिए कि भूलने की बीमारी का शक करने वाले ज्यादातर लोगों को हकीकत में यह बीमारी होती नहीं।
इतना तो तय है कि बेहतर याददाश्त आपको बेहतर नतीजे दिलवाती है। दूसरी तरफ नेपोलियन बोनापार्ट का उदाहरण है जिनकी अपनी विशाल सेना के सभी सैनिकों का नाम याद था। वैसे यह तय है कि इस मामले में किसी भी नुस्खे से ज्यादा अहम है एकाग्रता। जब तक आप किसी चीज पर ध्यान नहीं देंगे, दुनिया की कोई दवा या फार्मूला उसे आपके दिमाग में नहीं डाल सकता है!
योग से आपकी याददाश्त को बेहतर किया जा सकता है। आप योग करके आजमा सकते हैं।
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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