 Published By:अतुल विनोद
 Published By:अतुल विनोद
					 
					
                    
परमात्मा सबके अंदर होते हुए भी सबसे अलग है। ऐसी कोई जगह समय चीज प्राणी भाव विचारधारा नहीं जिसमे परमात्मा न रहता हो।
धर्म शास्त्र कहते हैं कि वही सब कुछ है। यदि हमारा लक्ष्य ऐसे परमात्मा की प्राप्ति नहीं है तो फिर हम भ्रम में हैं। परमात्मा की प्राप्ति बहुत आसान है।
हम हर चीज में परमात्मा को देखें, साकार निराकार सब में परमात्मा को ही देखें क्योंकि परमात्मा ही एकमात्र सर्वत्र व्याप्त सर्व रूप सत्य है। इसके अलावा कुछ नहीं।
हर एक मानव का जन्म केवल परमात्मा की प्राप्ति के लिए ही होता है। परमात्मा की प्राप्ति के बगैर जीवन मरण का चक्र चलता रहता है और जीवन जब तक निरर्थक रहेगा तब तक हानि लाभ चलते रहेंगे।
सुख-दुख आता रहेगा। संसार बनने बिगड़ने होने मिटने संयोग वियोग का नाम है। संसार को नित्य नहीं बनाया जा सकता। संसार जन्म के साथ मृत्यु लिए हुए है।
कोई भी चीज यहां स्थाई नहीं। इसलिए यहां पर सुख भी स्थाई नहीं। यहां हर चीज का अभाव है। क्योंकि हर चीज अपूर्ण है। पूर्ण सिर्फ परमात्मा है।
नित्य सत्य और चेतन सिर्फ परमात्मा है। इसके बिना अभाव कभी खत्म नहीं होता। जब तक अभाव होता है तब तक दुख सुख चलते रहते हैं। इसलिए परमात्मा ही अभाव का नाश कर सकते हैं।
सारा संसार अपूर्ण है अनित्य है असद और जड़ है। इसलिए इनसे अभाव कभी खत्म नहीं हो सकता। जब तक जड़ में उलझे रहेंगे तब तक पूर्णता नहीं मिलेगी।
परमात्मा का भजन कीर्तन ध्यान ही जीवन है। इसके बिना मानव जीवन असफल है। परमात्मा ही मनुष्य का ध्येय है उसके अलावा कुछ भी नहीं।। मनुष्य का एकमात्र लक्ष्य पूर्णता की प्राप्ति है। पूर्णता की प्राप्ति के बगैर मनुष्य हमेशा उलझा रहेगा।
जीवन का हर क्षण परमात्मा की प्राप्ति का साधन बनना चाहिए। तभी जीवन सार्थक है। तभी जीवन का मूल्य है। मानव जीवन का सौभाग्य तभी है जब जीवन का हर क्षण परमात्मा में लगता हो। उठते बैठते खाते-पीते चलते-फिरते सुनते हर समय परमात्मा में मन लगाने का प्रयत्न करते रहना चाहिए।
करते करते एक समय मन परमात्मा में लय हो जाता है। फिर प्रयत्न की जरूरत नहीं पड़ती। पहले प्रयास करना पड़ता है क्योंकि मनुष्य स्वतंत्र इच्छा शक्ति के अधीन है। स्वतंत्र इच्छा शक्ति ही परमात्मा की प्राप्ति में मनुष्य को आगे ले जा सकती है।
यदि मनुष्य जगत के व्यर्थ और अनर्थ रूपी भोग में ही लगा रहे तो उससे बड़ा मूर्ख कोई नहीं। बाद में उसे पछताना ही पड़ता है। इसलिए भगवत कृपा से प्राप्त इस मानव जीवन के शुभ अवसर को गंवाना नहीं चाहिए। एक-एक क्षण परमात्मा की प्राप्ति के साधन में लगाना चाहिए।
 
 
                                मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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