दूसरों को उपदेश देना सरल होता है पर खुद उसका पालन करना सरल नहीं होता।
अक्सर देखा जाता है कि लोगों की कथनी-करनी में फर्क होता है गोया जैसा उपदेश दूसरों को देते हैं वैसा खुद नहीं करते या कर नहीं पाते। ऐसे लोगों के विषय में ही कहा गया है- पर उपदेश कुशल बहुतेरे।
इस विषय में आम तौर से यह धारणा पाई जाती है कि जो व्यक्ति किसी आदर्श का पालन खुद न करता हो उसे उस आदर्श का दूसरों को उपदेश देने का कोई अधिकार नहीं मसलन जो खुद शराब पीता हो वह दूसरों को शराब न पीने का उपदेश कैसे दे सकता है? किस मुंह से दे सकता है?
एक महात्मा किसी व्यक्ति को, ऐसे पदार्थ को त्यागने का उपदेश देना चाहते थे जिसका वे स्वयं ही सेवन करते थे। महात्मा ने उस व्यक्ति को कुछ दिन बाद आने के लिए कह दिया और उसी दिन से उन्होंने उस पदार्थ का सेवन त्याग दिया।
कुछ दिन बाद वह व्यक्ति आया तो महात्मा ने उससे कह दिया कि अमुक पदार्थ का सेवन त्याग दो। वह व्यक्ति बोला यह बात तो आप उसी दिन कह सकते थे। महात्मा बोले "तब तक में स्वयं ही इस पदार्थ का सेवन करता था। अतः - तुमको इसका त्याग करने के लिए कैसे कह सकता था?
मैंने उसी दिन से स्वयं इस पदार्थ को त्याग दिया है अतः अब तुमको भी इसे त्यागने का उपदेश दे सकता हूं।' महात्मा ने जो आदर्श उपस्थित किया वह उचित ही था लेकिन अगर हम इस मामले को दूसरे पहलू से देखें तो एक और गहरी बात दिखाई दे सकेगी। इस मुद्दे को ज़रा समझें।
अगर कोई बुरा व्यक्ति अच्छी बात कहता हो तो उसे मान लेने और ग्रहण कर लेने में हर्ज क्या है? वह व्यक्ति भले ही खुद उस बात पर आचरण न भी करता हो, जिसका उपदेश दूसरों को देता है, तो इससे दूसरे की सेहत पर क्या फर्क पड़ता है?
शराबी की ही मिसाल ले लीजिए। यदि एक शराबी हमें उपदेश दे कि शराब पीना बुरा है शराब मत पियो तो हो सकता है कि यह बात वह अपने जाती तबे के आधार पर कह रहा हो! उसने शराब पीने के जो दुष्परिणाम भोगे हों -उनके कारण कह रहा हो!!
ऐसे ही हर वह बुरा व्यक्ति, जो खुद कोई बुरा आचरण करता हो और दूसरों को उपदेश देता हो यानी उसकी कथनी-करनी एक न हो, उपदेश देने का अधिकारी हो न हो हम तो उस उपदेश को ग्रहण करने के अधिकारी हो ही सकते हैं।
अच्छी बातें ग्रहण करने के लिए किस हकीम ने मना किया है? जैसे कमल कीचड़ में होता है इसीलिए अग्राह्य नहीं हो जाता वैसे ही यदि बुरे आदमी से अच्छी बात मिलती हो तो ले लेने में कोई हर्ज नहीं जैसा कि एक कवि ने कहा है- पड़ो अपावन ठौर पे, कंचन तर्ज न कोय। अपवित्र स्थान पर होना पड़ा हो तो कोई छोड़ता नहीं गंदगी वहीं रहेगी सोना ग्रहण कर लिया जाएगा।
इसी प्रकार बुरे व्यक्ति की बुराई उसी के साथ रहे और उसकी शिक्षा, उसका उपदेश हम ग्रहण कर लें तो इसमें हमारा ही भला है। उस आदमी को 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' का ताना मार कर यदि उसका उपदेश हम ग्रहण नहीं करते तो इससे नुकसान के सिवा हमें फ़ायदा क्या होगा?
मानव धर्म, सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण पहलू है..!!
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